सम्मान और यश प्राप्ति की अभिलाषा प्रत्येक मनुष्य में होती है। फिर भी जिन कार्यों से सम्मान मिलना संभव होता है, उन्हें करने के लिए बहुत कम लोग राजी होते हैं। झूठे सम्मान के लोभी मनुष्यों को अथक प्रयास करने पर भी असफलता ही हाथ लगती है। जिस योग्यता पर यश मिलता है और सम्मान बढ़ता है, उसे बढ़ाया न जाए तो यह महत्वाकांक्षा अधूरी ही रहेगी। उचित योग्यता के अभाव में क्या किसी को सम्मान मिला भी है? योग्यता, परिश्रम और अभ्यास से मिलती है। इसके लिए सबसे पहले अतुलनीय साहस पैदा करना पड़ता है। साहस के बिना वह शक्ति नहीं आती, जो विपन्न स्थिति में धैर्य को स्थिर रख सके। साहस से कष्ट-सहिष्णुता आती है, जिससे लोग हंसते हुए उन कठिनाइयों को झेल जाते हैं, जो किसी गुण को उच्चतम नैतिक स्तर पर धारण करने से आती है।

जब इस तरह का विशाल हृदय मनुष्य का बन जाता है, तो यश मिलने लगता है। यह उच्चता सम्मान की अभिलाषा से न हो। कर्तव्य-बुद्धि के परिष्कार से ही गुणों की पराकाष्ठा तक पहुंच पाना संभव है। यश की अभिलाषा आंतरिक हो और किसी आदर्श के लिए हो, तो मनुष्य कठिनाइयों के उच्च शिख्रर पर चढ़ता चला जाता है। श्रेष्ठता प्राप्त करने का अभ्यास, आदेश या अंधानुकरण पर आधारित न हो अन्यथा अधिक देर तक उस सत्कर्म में टिके रहना संभव न होगा और उतना परिश्रम व्यर्थ चला जाएगा। इसलिए विचार करें कि अपनी प्रकृति, स्थिति और शक्ति के अनुसार कौन-सी विशेषता सहज ही में प्रकट कर सकेंगे। दान, सेवा, भक्ति, चरित्र की निर्मलता, ब्रह्मचर्य आदि का चुनाव अपनी स्थिति को ध्यान में रखकर करें। विपरीत स्थिति और शक्ति से बढ़कर किए गए प्रयास प्राय: निष्फल होते हैं। इससे अच्छा यही है कि अपनी सामथ्र्य को ध्यान में रखकर ही गुणों का रचनात्मक विकास करें। सामान्य स्तर के व्यक्ति के लिए भी जीवन में सम्मान प्राप्त करने का एक सीधा-सच्चा उपाय है और वह है सबके प्रति बैर-भाव, ईष्र्या-द्वेष और प्रतिशोध की भावना न रखना। सबके साथ मिलकर प्रेम, न्याय, दया, करुणा और सहृदयता से यह स्थिति सहज में ही प्राप्त की जा सकती है। ऐसे निर्मल स्वभाव के व्यक्तियों का किसी के साथ विरोध नहीं होता। उन्हें सभी ओर से सम्मान मिलता है। सम्मान प्राप्ति के लिए हमें अपनी श्रेष्ठता और विशेषता निरंतर बढ़ाते रहना चाहिए।

[डॉ. विजय प्रकाश त्रिपाठी]