जब हमारे आत्मविश्वास में कमी आती है, तो हमारे भय का जन्म होता है। इसका हमें कोई सटीक आभास नहीं होता है कि भविष्य में क्या होगा, लेकिन हम अक्सर इसे लेकर मन ही मन बहुत कुछ सोचने लगते हैं। ऐसे में यदि हमारे विचार सकारात्मक होते हैं, तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ जाता है, लेकिन जब हम अंजाम के बारे में नकारात्मक बातें सोचने लगते हैं, तो हमारा आत्मविश्वास डिगने लगता है और जाने-अनजाने हम भय के जाल में फंस जाते हैं। इस स्थिति में मनुष्य के लिए भय को अनदेखा करना आसान नहीं होता, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वह भय का सामना ही न कर पाए। भय से बचने के लिए मनुष्य को थोड़ा साहस जरूर दिखाना पड़ता है। जान लीजिए कि जो डर से डर गया, वह मर गया वरना डर के आगे जीत है। डर और साहस का एक संबंध है, क्योंकि साहस का न होना ही डर के पैदा होने का कारण होता है। साहस एक ऐसी शक्ति है, जिसके सामने डर अपना सब कुछ खो देता है। मनुष्य को सर्वप्रथम अपने भय की पहचान करनी चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि अपने भय को पहचाने बगैर हम कभी उससे छुटकारा नहीं पा सकते। जिस बात या कार्य से आपको भय लग रहा है, उस कार्य को बार-बार करें। इसके बावजूद आपका भय कायम है, तो उस कार्य को तब तक करते रहें, जब तक आपका भय पूरी तरह से भाग न जाए। आप जितनी बार भय देने वाले कार्य को करेंगे, उतनी आपकी हिम्मत बढ़ती जाएगी। एक समय ऐसा जरूर आएगा, जब आपके भय को उलटे पैर भागना ही पड़ेगा। वैसे यह दुनिया बड़ी मनोरम और सुंदर है, इसमें भय जैसा कुछ भी नहीं है। भय तो हमारे ही मन की एक स्थिति है।
किसी के लिए ऊंचे पहाड़ रोमांच का एक साधन हैं, तो दूसरे को पहाड़ की ऊंचाई मृत्यु का भय दिखाती है। पहाड़ अपनी जगह खड़े हैं, लेकिन मनुष्यों की मनोदशा बदली हुई है। भय कुछ और नहीं, बल्कि पाने की लालसा और खोने का डर है। जो मनुष्य यह बात जानते हैं कि वे इस धरती पर खाली हाथ आए हैं और उन्हें खाली हाथ ही जाना है, तो उन्हें कभी किसी बात का भय नहीं होगा। अगर आपको यह पता चले कि आज आपकी जिंदगी का आखिरी दिन है, तो आप भय में दिन गुजारेंगे या प्रसन्नता में? मनुष्य को अपनी मृत्यु का भय अपने दिमाग से निकाल देना चाहिए। उसकी मृत्यु अटल सत्य है, इसलिए उसे मृत्यु से डरने के बजाय उसका स्वागत करना चाहिए और हर दिन को ऐसी भावना से जीना चाहिए कि यह उसकी जिंदगी का आखिरी दिन है।
[ महायोगी पायलट बाबा ]