समझ

इंसान की यह आम वृत्ति होती है कि जब तक वह किसी चीज को प्रत्यक्ष रूप से देख-सुन, जान-समझ नहीं लेता है, तब तक उस पर यकीन नहीं करता है। उदाहरण के लिए हाल-फिलहाल के तमाम बदलाव गिनाए जा सकते हैं। मोबाइल क्रांति, बैंक लेनदेन क्रांति, टेलीविजन क्रांति को पहले लोग बताने पर अजूबा समझते थे। आज जब इन बदलावों को वे भौतिक रूप से अनुभव कर रहे हैं तो यकीन के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है। यही बात धरती के संकट को लेकर भी है। कुछ समय पहले जो लोग धरती को हो रहे नुकसान को सिरे से खारिज करते थे, आज उसको बचाने की पहल की अगुआई कर रहे हैं।

समस्या

1896 में पहली बार स्वीडिश वैज्ञानिक स्वांते आर्हीनियस ने बताया कि जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल से धरती का औसत तापमान बढ़ रहा है। तब लेकर हुए तमाम अध्ययन के नतीजों ने इसकी पुष्टि ही की। मानव लोभ से धरती के संसाधनों का क्षय और क्षरण जारी है। प्राणवायु दमघोंटू हो चली है। अमृत समान जल मौतों और रोगों की बड़ी वजह बन चुका है। पृथ्वी की स्वाभाविक उर्वरा शक्ति को विषैले रसायन चाट चुके हैं। मौसम चक्र बदल और बिगड़ रहा है। समुद्र तल ऊपर उठ रहा है। वैश्विक तापमान बढ़ रहा है। सांस लेने के लिए स्वच्छ ऑक्सीजन सिलेंडर में मिल रही है। फसलों की उत्पादकता गिर रही है। प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और आकार में इजाफा हो रहा है।

संकल्प

जब चोट लगी तब जाना...इंसानी फितरत है। जब चोट लगी तब दर्द का अहसास हुआ। धरती के इन खतरों ने जब जन-जीवन पर अपना दुष्परिणाम डालना शुरू किया तो उनकी चेतना जाग्र्रत हुई। लोगों के बीच पर्यावरण, वायु गुणवत्ता, प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण, ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषय चर्चा के मसले होने लगे हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर धरती के इस संकट को काटने की कोशिशें तेज हुई हैं। पिछली सदी अगर इंसानी जरूरतों के चलते धरती को हुए सर्वाधिक विनाश के लिए जानी जाएगी तो वर्तमान सदी उन चूकों को सुधारने के लिए जानी जाएगी। इसके लिए जरूरी है कि धरती के संसाधनों का उपभोग करने वाला हर प्राणी इस यज्ञ में अपने कर्तव्यों की आहूति दे। 22 अप्रैल, को पृथ्वी दिवस है। यही मौका है जब हम धरती को बचाने का संकल्प लें और इसके लिए औरों को भी प्रेरित करें।

जनमत

क्या लोगों में वायुमंडल-पर्यावरण की शुद्घता के प्रति जागरूकता बढ़ी है?

हां 49%

नहीं 51%

क्या वायुमंडल में हर तरह के प्रदूषण के स्तर में वाकई कमी आई है?

हां 33%

नहीं 67%

आपकी आवाज

पिछले कुछ वर्षों से तुलना करें तो निश्चित रूप से सरकार के प्रयासों का असर दिख रहा है। लोग इस विषय पर जागरूक हो रहे हैं। यह सकारात्मक है। -अश्विनी सिंह

मुझे नहीं लगता कि वायुमंडल में प्रदूषण कम हुआ है। इसके उलट सड़कों पर वाहनों की बढ़ रही संख्या की वजह से दिन ब दिन प्रदूषण के स्तर में इजाफा हो रहा है। -आशीष

प्रदूषण के स्तर में कोई कमी नहीं आई है। यदि इसे कम करना है तो सरकार को जरूरी कदम उठाने होंगे। आजकल के लोग प्रदूषण को अपनी जीवनशैली का हिस्सा मान चळ्के हैं। उन्हें इस विषय में जागरूक बनाने की जरूरत है तभी कुछ फायदा होगा।

-शुभम कुमार

वायुमंडल में प्रदूषण के स्तर में कमी आई है यह कहना तो वाकई मुश्किल है। जिस प्रकार जलवायु में परिवर्तन हो रहा है, उसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थिति में कितना सुधार है या नहीं। -नवनीत कुमार शर्मा

अगर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ को हम आविष्कार कहते हैं तो इसके दुष्परिणाम हमें भुगतने होंगे और हमें बुरा नहीं लगना चाहिए। जब हम अपने वायुमंडल की हिफाजत नहीं करेंगे तो वह हमको सुरक्षित कैसे रखेगा। बेमौसम बरसात, अनियंत्रित तापमान ,सूखा, यह हमारे कर्मों का ही नतीजा हैं। यही वजह है कि वायुमंडल को बचाने के लिए हमें गंभीरता से प्रयास करने होंगे। -रजत श्रीवास्तव

सांसों का संकट