मुरली मनोहर श्रीवास्तव

द्रोणाचार्य के रथ मे जुते घोड़ों ने जैसे ही कदम आगे बढ़ाने से इन्कार किया वैसे ही गुरु द्रोण वस्तुस्थिति का जायजा लेने जमीन पर उतरे तो चिंतित हो उठे। वह अपनी जिज्ञासा शांत करने जैसे ही आगे बढ़े तो एक खुले मैदान में लैपटॉप पर अपनी फोटो अपलोड किए किसी को यूट्यूब पर वीडियो के जरिये धनुर्विद्या का अभ्यास करते पाया। इससे पहले कि वह इस शिष्य से कुछ पूछ पाते वह साक्षात गुरु को सम्मुख पाकर नतमस्तक हो गया। गुरु का सीना भी गर्व और अभिमान के मिश्रित भावों के साथ और चौड़ा हो गया। अपने आश्चर्य भाव को और न बढ़ाते हुये एकलव्य बोला-हे महामानव आप ही मेरे गुरु हैं और रणभूमि में धनुर्विद्या (आप चाहे तो धनुर्विद्या को वाकचातुर्य कह सकते हैं) में जो मैंने महारत पाई है वह आप को गुरु मानकर ही हासिल की है। मुझे स्वयं प्रतियोगिता में टिके रहने योग्य बनाने के लिए वर्तमान युग की मुफ्त 4जी सेवा से संचालित यूट्यूब पर उपलब्ध आपके वीडियो का सहारा लेना पड़ा सो जाने-अनजाने आप ही मेरे गुरु हैं। अब गुरुदेव की पेशानी पर बल पड़ने लगे। यूट्यूब वीडियो ही सही उस पर कॉपीराइट तो बनता है। गुरु द्रोण की चिंता किसी के धनुर्धर बन जाने से नहीं जुड़ी थी। असल में गुरुदेव सत्ता और उसके प्रति अपनी निष्ठा से बंधे हुए थे, लिहाजा उनकी चिंता इससे जुड़ी थी कि कहीं भारत में अर्जुन से बड़ा धनुर्धर न हो जाए।
नैतिकता के तकाजे व्यावहारिकता की कसौटी पर आते ही कूटनीतिक तरीके से व्यवहार करने लगते हैं। जीत में इस बात के मायने नहीं रह जाते कि वह छल से मिली है, नैतिक बल से या फिर बाहुबल से। इसे आप बहुमत सिद्ध करने के तौर-तरीकों की उपमा मे बांध कर समझ लीजिए। इससे पहले कि सत्ता द्वारा पोषित शिक्षा व्यवस्था जीत जाती और बाजार की कोचिंग में पैसे लुटाकर पढ़ा हुआ छात्र हारता, गुरु द्रोण के मुख से अचानक प्रस्फुटित हुआ-हे शिष्य, गुरु दक्षिणा! आधुनिक एकलव्य अभिभूत हुआ। गुरु की लाइव क्लास न सही वर्चुअल क्लास के बावजूद वह उसे अपना वास्तविक शिष्यत्व प्रदान करते हैं तो इसमें गलत क्या है? कुछ भी हो मुझे एक बड़े और महान गुरु का शिष्य कहलाने का सौभाग्य तो प्राप्त होगा। वैसे भी बिना बड़े गुरु का टैग लगे कोई अपनी जगह नहीं बना पाता। इस मामले में मुझे सैलून सबसे अधिक ईमानदार लगे जो किसी नामी हेयर ड्रेसर की फ्रैंचाइजी लेने के बाद भी खुद को उसी का ही शिष्य बताते हैं और हर गली-मुहल्ले में पच्चीस से तीस रुपये हेयर कटिंग पर ब्रांडिंग का मुलम्मा चढ़ाकर लोगों के मन में आम से खास आदमी बनने का भाव भरकर आसानी से खुशी-खुशी 150-250 रुपये तक सीधे कर लेते हैं। बहरहाल एकलव्य नतमस्तक होकर अपने दाहिने अंगूठे को अर्पित करने का उपक्रम करने लगा। एक क्षण के लिए तो गुरु द्रोण भावविभोर हो उठे। अपने शिष्य की ऐसी आस्था एवं समर्पण से गदगद वह उसे सीने से लगाने वाले ही थे कि एकाएक उनका माथा ठनका कि कलियुग का नेटसेवी एकलव्य मुझे सम्मान देते हुए एकनिष्ठ भक्त तो नहीं हो सकता और वह जरूर बड़ा नेता होगा। इस युग में धनुर्धर का अंगूठा मांग लेना और एकलव्य द्वारा खुशी-खुशी वह प्रदान करना अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ स्थापित करने के लिए मानक सत्य नहीं है ।
वह बोले-रुको एकलव्य शिष्य के त्याग और गुरुदक्षिणा की तुम्हारी यह मिसाल युगों-युगों तक दी जाएगी, किंतु इस युग में न जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि मैं अंगूठे के बजाय कुछ और मांग लूं। एकलव्य ने युद्ध में विजय के लिए मांगे जाने वाले सामानों की सूची गूगल पर खंगाली परंतु उसमें कवच-कुंडल और अंगूठे कहीं नहीं मिले। फिर अनमना सा होकर मर्यादा का ध्यान रखते हुए वह बोला कि ठीक है-गुरुदेव, मांगिए मैं देखता हूं। द्रोणाचार्य बोले, ‘हे शिष्य, मुझे गुरुदक्षिणा में तुम्हारी जुबान चाहिए।’ एकलव्य सन्न रह गया। बोला कि आपने तो मुझसे आधुनिक युग में युद्ध का सबसे बड़ा हथियार मांग लिया। इस पर मीडिया के माधव अवतरित हुए और बोले कि लोकतंत्र में यह पक्षपात नहीं चलेगा और मैं एकलव्य की जुबान मांगने पर वीटो पावर लगाता हूं। इस युग में सभी को बराबरी से बोलने का अधिकार मिलेगा और बाकी के अस्त्र-शस्त्र तुम खुद चुन सकते है। इसके साथ ही तथास्तु कहकर वह अंतर्धान हो गए। इस पर एकलव्य ने अचानक अवतरित हुए मीडिया के माधव का हृदय की अनंत गहराइयों से अभिनंदन किया कि आज उनकी वजह से वह अपना ब्रह्मास्र गंवाने से बच गया। साथ ही उसने फैसला किया कि आगे से किसी भी सेलेब्रिटी शख्सियत के सामने आने पर वह भावनाओं में बहकर बेजा पेशकश करने से बचेगा।

[ हास्य-व्यंग्य ]