दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने डीडीसीए के कथित घोटाले की जांच के लिए केजरीवाल सरकार की ओर से गोपाल सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में गठित आयोग को अवैध करार दिया है। अब यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में भी पहुंच गया है, जिसके निर्णय का इंतजार है। गोपाल सुब्रमण्यम देश के जाने-माने वकील हैं। वह वर्षों संप्रग सरकार के महाधिवक्ता रहे हैं। इस दायित्व का निर्वाह करते समय उन्होंने बहुत बार संवैधानिक मामलों में सरकार को सलाह भी दी है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि वह संविधान के प्रावधानों से पूरी तरह वाकिफ हैं। उन्हें न केवल राज्य और केंद्र के संबंधों तथा अधिकार एवं दायित्व के क्षेत्राधिकार का संज्ञान होगा, अपितु इस बात का भी कि पूर्ण राज्य और केंद्रशासित राज्य व्यवस्था में 'अधिकार' की सीमा क्या है? फिर भी उन्होंने डीडीसीए में कथित घोटाले की जांच के लिए केजरीवाल सरकार द्वारा बनाए आयोग की अध्यक्षता स्वीकार करने का फैसला किया। यह तो समझ में आता है कि केजरीवाल और उनके सहयोगी ऐसा आचरण कर राजनीतिक विस्तार की अपेक्षा रखते हों, लेकिन एक विधि विशेषज्ञ भी इस प्रकार का आचरण करे तो क्या कहा जा सकता है। कहा जा रहा है कि किसी के प्रति बदले की भावना के चलते वह सारा ज्ञान भूल गए हैं। केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली से उनकी पुरानी अदावत की चर्चा उसी समय उभरी जब बिना औपचारिक प्रस्ताव के ही उन्होंने डीडीसीए के खिलाफ अपने को जांच के लिए प्रस्तुत कर दिया था। जो लोग केंद्रीय सरकार और केंद्रशासित क्षेत्रों की व्यवस्था से परिचित हैं वे भली भांति जानते हैं कि जब तक दिल्ली के उपराज्यपाल की स्वीकृति नहीं होती, राज्य सरकार या विधानसभा किसी प्रस्ताव को अमलीजामा नहीं पहना सकती। गोपाल सुब्रमण्यम इस स्थिति से अनभिज्ञ हों, यह मानने का कोई कारण नहीं है। यह बात उनके इस बयान से भी स्पष्ट है कि उन्होंने केजरीवाल सरकार और दिल्ली विधानसभा द्वारा गठित जांच आयोग का प्रमुख बनना स्वीकार कर लिया है।

गोपाल सुब्रमण्यम ने न केवल आयोग का प्रमुख बनना स्वीकार किया है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को बाकायदा पत्र लिखकर आइबी, सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय के पांच-पांच चुनिंदा अधिकारियों को उनके काम में सहयोग देने के लिए उपलब्ध कराए जाने की मांग भी कर डाली है। ऐसा ही पत्र उन्होंने केजरीवाल सरकार और डीडीसीए को भी लिखा है। अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक स्वरूप विषयांतरण से लोकप्रिय बने रहने और दायित्व के अनुरूप जवाबदेही पर लोगों को सवाल उठाने देने का अवसर न देने का उभर रहा है। वह दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा न मिलने को सभी बुराइयों की जड़ मानते हैं तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसके लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार। उनकी प्रधानमंत्री के लिए प्रयुक्त भाषा निम्नस्तरीय मानसिकता से सराबोर है। उन्हें अपेक्षा है कि वह अगले निर्वाचन में मोदी विरोधी राजनीतिक ध्रुवीकरण के केंद्र में होंगे। इसलिए वह अनर्गल आरोपों के सहारे अपने को मोदी के समकक्ष उभारने की कोशिश को परवान चढ़ा रहे हैं।

उन्होंने उपराज्यपाल को केंद्र सरकार का एजेंट कहने के बाद उन्हें भाजपा का एजेंट तक कह डाला। अब उनको दिल्ली और अंडमान निकोबार कैडर के सभी अधिकारी भाजपा की बी टीम नजर आने लगे हैं। जो व्यक्ति नरेंद्र मोदी को कायर और मनोरोगी कह सकता है वह कितना कुंठित हो सकता है, यह बताने की जरूरत नहीं है। यदि वह उपराज्यपाल को या प्रशासनिक सेवा को भाजपा का कैडर कहें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। आम आदमी पार्टी प्राय: किसी मसले पर पकड़े जाने पर मुखरित होकर किसी अन्य विषय को पकड़कर पहले पर पर्दा डालने की कोशिश करती है। इससे राजधानी की व्यवस्था प्रभावित हो रही है। दुनियाभर में मोदी के अभ्युदय से भारत की छवि भी निखरी है, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए वह कायर और मनोरोगी हैं। उनका यह कथन ही खुद उनका व्यक्तित्व सामने ला देता है।

यह बात तो बहुत स्पष्ट हो चुकी है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली अभूतपूर्व सफलता ने अरविंद केजरीवाल के सहयोगियों की जो मानसिकता बना दी है उसमें कोई बदलाव होने वाला नहीं है। आरोपों की धुंआधार बौछार से अपनी अकर्मण्यता को छिपाने का उनका अभियान जारी रहेगा, लेकिन जब ऐसे गैर जिम्मेदार नेताओं के साथ कोई समझदार समझा जाने वाला व्यक्ति खड़े होने के लिए दौड़ पड़ता है तब यह विचार करना आवश्यक हो जाता है कि हमारा बुद्धिजीवी वर्ग किस रोग से ग्रस्त है। दिल्ली सरकार का आयोग वही हो सकता है जिसे राज्यपाल स्वीकृति प्रदान करें। वह अपनी जांच तभी शुरू कर सकता है और उसके लिए दिल्ली सरकार से सुविधा मांग सकता है।

देश के सुरक्षा सलाहकार से केंद्रीय जांच एजेंसियों के कर्मियों को नियुक्त करने का आग्रह कोई भी नहीं कर सकता। सर्वोच्च न्यायालय का वकील और पूर्व महाधिवक्ता जब ऐसा व्यवहार करे तो उसमें और केजरीवाल में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। गोपाल सुब्रमण्यम को पता है कि उन्होंने जिस आयोग का अध्यक्ष बनना स्वीकार किया है वह हवा-हवाई ही है। इसीलिए उन्होंने नौ मन तेल की फरमाइश कर डाली है। इससे इस समय देश के माहौल में विषमता को बढ़ावा देने वालों की गतिविधियों में विस्तार होते जाने से इंकार नहीं किया जा सकता। यह सब इसलिए मात्र नहीं हो रहा है कि कुछ लोग निजी हितों तक ही सीमित हैं, बल्कि इसका लाभ उठाने में भारत विरोधी तत्व भी अपना योगदान कर रहे हैं।

[लेखक राजनाथ सिंह सूर्य, भाजपा के राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं]