जयंत सिन्हा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने अपने तीन साल के कार्यकाल में देश का कायाकल्प करने वाले जो बदलाव किए हैैं वे अब आम आदमी की जिंदगी में नजर भी आने लगे हैं। दस पैमानों पर यह बात प्रमाणित होती है कि विकास का जो बीड़ा 2014 में उठाया गया था वह अब धरातल पर दिख रहा है। यह तय है कि 2022 तक हम जन-साधारण के जीवन में कई और क्रांतिकारी परिवर्तन देखेंगे। सबसे पहला मापदंड है मुद्रास्फीति यानी महंगाई की दर। 2004 से 2014 के बीच बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाना सबसे बड़ी चुनौती थी। महंगाई की मार ने विकास की रफ्तार को एक तरह से कुंद कर दिया था और लगातार चढ़ती कीमतों की मार गरीबों पर पड़ रही थी। कम प्रति व्यक्ति आय वाले विकासशील देश के लिहाज से इस समस्या पर तत्काल कार्रवाई और समाधान की जरूरत थी। सरकार ने कुशल खाद्य प्रबंधन और कीमतों पर कड़ी निगरानी के जरिये महंगाई पर सफलतापूर्वक लगाम लगार्ई। परिणामस्वरूप 2014 में 9.5 फीसद के स्तर पर टिका उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 2017 में घटकर तीन प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया।
दूसरा अहम बदलाव आया छोटे एवं मझोले उद्यमियों को मिलने वाले कर्ज के मोर्चे पर। ये कारोबारी साहूकारों से ऊंची ब्याज दर पर कर्ज लेने को मजबूर थे। इन्हें साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत की गई। मुद्रा योजना के तहत 7.4 करोड़ लोगों ने बिना गारंटी के 3.2 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया। इसमें से 70 फीसद से अधिक महिलाएं हैं। वित्तीय समावेशन को नए क्षितिज पर पहुंचाते हुए पिछले तीन वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री जनधन खातों के तहत अप्रत्याशित रूप से 29 करोड़ खाताधारक जोड़े गए हैं। इसी तरह आधार कार्ड धारकों की संख्या भी 2014 के 63 करोड़ से बढ़कर 2017 में 116 करोड़ हो गई। जनधन और आधार की जुगलबंदी अर्थव्यवस्था को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने में बेहद मददगार साबित हुई है।
तीसरा प्रमुख परिवर्तन प्रत्यक्ष लाभ अंतरण यानी डीबीटी के रूप में हुआ। इसने सुनिश्चित किया कि सरकारी मदद सुपात्र लाभार्थियों तक पहुंचे। इसके सफल क्रियान्वयन ने 2014 में डीबीटी के तहत लाभार्थियों की 11 करोड़ की संख्या को बढ़ाकर 36 करोड़ पर पहुंचा दिया। इसी अवधि में डीबीटी के तहत हस्तांतरित राशि भी 7,368 करोड़ रुपये से बढ़कर 74,608 करोड़ रुपये हो गई। सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाली मदद में किसी तरह की धांधली न हो और सभी प्रकार का ब्योरा इलेक्ट्रॉनिक रूप में दर्ज हो, इसके लिए करीब सभी राशन कार्डों का डिजिटलीकरण कर दिया गया है।
बदलाव का चौथा चरण स्वच्छता के पड़ाव पर आता है जिसने खुले में शौच के खिलाफ जंग सी छेड़ दी है। स्वच्छ भारत अभियान अब एक जन आंदोलन बन रहा है। साफ सफाई और स्वास्थ्य के पैमाने पर नए प्रतिमान गढ़ते हुए 2017 में 2.1 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए जा रहे हैं जबकि 2014 में यह आंकड़ा बमुश्किल 50 लाख था। केवल पिछले तीन वर्षों में ही 3.8 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए हैं। इसने स्वच्छता के दायरे को बढ़ाकर 61 प्रतिशत तक कर दिया है जो 2014 में 41 फीसद था। आज दो लाख से अधिक गांव, 147 जिले और सिक्किम, हिमाचल, केरल, उत्तराखंड और हरियाणा जैसे पांच राज्य खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। यह अपने आप में किसी ऐतिहासिक उपलब्धि से कम नहीं।
परिवर्तन का पांचवां रूप एलपीजी यानी रसोई गैस कनेक्शन के वितरण में दिखता है। चूल्हे पर खाना पकाना महिलाओं की सेहत के लिए एक बड़ा खतरा था। कई अध्ययनों के अनुसार चूल्हे पर खाना पकाने के दौरान 400 सिगरेट के बराबर धुआं अंदर जाता है। सरकार ने तीन वर्षों के दौरान 6.9 करोड़ से अधिक नए गैस कनेक्शन दिए जिसमें से 3.3 करोड़ तो 2017 में ही जारी हुए हैं जो किसी भी साल के लिहाज से सबसे बड़ा आंकड़ा है। इसकी तुलना में 2004 से 2014 में संप्रग सरकार के 10 वर्षों के शासन में कुल 5.3 करोड़ नए गैस कनेक्शन ही दिए गए थे। 2017 में देश में एलपीजी कनेक्शनों की संख्या बढ़कर 21 करोड़ हो गई जो 2014 में 14 करोड़ थी।
छठा बदलाव ग्रामीण विद्युतीकरण के स्तर पर हुआ है। आजादी के 67 साल बाद भी देश के 18,452 गांवों में बिजली नहीं पहुंची थी। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से ऐलान किया था कि 2018 के अंत तक कोई भी गांव बिजली सुविधा से अछूता नहीं रहेगा। 2014 में जहां 1,197 गांवों तक ही बिजली पहुंची वहीं 2017 में 6,016 गांवों का विद्युतीकरण किया जा चुका है। इसका अर्थ है कि 2014 तक बिजली से महरूम 18,452 गांवों में से अब केवल 4,941 गांव ही बिजली से वंचित हैं। प्रधानमंत्री के विजन के अनुरूप 2018 तक देश शत प्रतिशत विद्युतीकरण की राह पर अग्रसर है। पिछले तीन वर्षों के दौरान पीक आवर में बिजली किल्लत का भी समाधान तलाश लिया गया है।
सातवां बदलाव ग्रामीण संपर्क के मोर्चे पर आया है। 2014 में जहां 25,316 किमी ग्रामीण सड़कें बनाई गई थीं वहीं 2017 में उनका दायरा 47,447 किमी को पार कर गया है। देशभर में रोजाना 133 किमी की दर से ग्रामीण सड़कें बनाई जा रही हैं जो 2014 के प्रतिदिन 69 किलोमीटर के स्तर से तकरीबन दोगुनी है।
आठवां बदलाव तीन वर्षों के दौरान जारी 7.2 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्डों के रूप में हुआ है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने आपदा में किसानों को एक बड़ी ढाल मुहैया कराई है। 2014 में बीमित खरीफ फसल में 2.1 करोड़ किसानों का आंकड़ा 2017 में बढ़कर 4 करोड़ हो गया है।
बदलाव का नौवां पड़ाव आवासीय कार्यक्रम के रूप में सामने आता है। 2004-2014 के दौरान जहां हर साल 80,000 नए मकान तैयार हो रहे थे वहीं 2014 से 2017 के दौरान उनकी संख्या बढ़कर सालाना 1.6 लाख हो गई। संप्रग सरकार के दस वर्षों में 13.8 करोड़ किफायती मकानों के निर्माण की मंजूरी दी गई थी। इसकी तुलना में पिछले तीन वर्षों में 17.7 करोड़ ऐसे मकानों के निर्माण को हरी झंडी दिखाई जा चुकी है। साथ ही 3 से 4 फीसद की किफायती ब्याज दर पर कर्ज भी मुहैया कराया जा रहा है।
दसवां, हवाई संपर्क के रूप में बेहद क्रांतिकारी बदलाव आया है। लोगों की आमदनी में हो रहे इजाफे को देखते हुए ‘उड़े देश का आम नागरिक’ के रूप में सरकार की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत से उड़ान सुविधा आम आदमी की पहुंच में भी आ रही है। 2017 में हवाई यात्रियों की संख्या 16 करोड़ के ऊंचे स्तर को छू चुकी है जबकि 2014 में यह 10 करोड़ थी। कम दूरी के लिए किफायती दरों की कीमत ने बेहद अहम भूमिका निभाई है जो अमूमन पांच रुपये प्रति किमी के आसपास है। इतने में तो किसी शहर में ऑटो-रिक्शा या टैक्सी भी नहीं मिलती।
उपरोक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि जमीनी स्तर पर व्यापक बदलाव आकार ले रहे हैं। सरकार 125 करोड़ नागरिकों के निरंतर विकास के लिए प्रतिबद्ध है। यही प्रतिबद्धता 2022 तक एक नए भारत के निर्माण हेतु प्रधानमंत्री के ‘संकल्प को सिद्धि’ तक ले जाने के लिए प्रेरित करेगी।
[ लेखक केंद्रीय उड्डयन राज्य मंत्री हैं ]