राजनाथ सिंह ‘सूर्य’

भाजपा को जनता की निगाहों में गिराने के लिए कांग्रेस और कथित सेक्युलरिज्म के झंडाबरदार संस्थाएं और बुद्धिजीवी इन दिनों काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं, लेकिन मर्यादा की सारी सीमाएं लांघकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रवादी शक्तियों को सांप्रदायिक साबित करने के लिए एक के बाद एक चलाए जा रहे अभियानों का परिणाम भाजपा के पक्ष में ही नजर आ रहा है। गांवों में एक कहावत कही जाती है कि ‘पीठ पीछे की छींक और ससुराल की गाली शुभ होती है। देखा जाए तो यह यहां बिल्कुल सटीक बैठ रही है। उदाहरणस्वरूप सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को गुजरात में मौत का सौदागर साबित करने का जो अभियान शुरू किया था उसके परिणाम सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं रहे। 2014 के लोकसभा और बाद के राज्य विधानसभा चुनाव परिणामों से यह साबित होता गया कि कुत्सित अभिव्यक्ति से किसी व्यक्तित्व या संगठन को घेरने के प्रयास का परिणाम क्या होता है? न भूलें कि यह अभियान उन लोगों द्वारा चलाया जा रहा जो सत्ता को भोग की वस्तु बनाने के कारण आज भी अदालतों का चक्कर लगा रहे हैं। अपनी अनर्गल टिप्पणियों के कारण चर्चा में बने रहने वाले दिग्विजय सिंह ने गौरी लंकेश की हत्या के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जिस शब्दावली का इस्तेमाल किया है वह बताता है कि मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से वे कितने हताश-निराश हैं। लोगों की जुबां पर एक ही सवाल है कि आखिर गौरी की हत्या के पांच मिनट के अंदर ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी सहित कथित बुद्धिजीवियों को कैसे पता चल गया कि यह कृत्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की विचारधारा के कारण हुआ है। देखा जाए तो यह कोई पहला ‘इल्जाम’ नहीं है। जिस मुंबई हमले में एक पाकिस्तानी पकड़ा गया और उसे फांसी हुई उसे अंजाम देने का आरोप दिग्विजय सिंह आरएसएस पर लगा चुके हैं। विडंबना देखिए कि कांग्रेस नेतृत्व ने उनके बयान को निजी बता अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया। शायद इसी कारण दिग्विजय सिंह के बाद कांग्रेस के एक अन्य नेता मनीष तिवारी ने भी अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल किया। जिन लोगों ने भी गौरी की हत्या के कारणों और हत्यारों के बारे में जिक्र किया है, विशेष जांच दल को सर्वप्रथम उनसे ही पूछताछ करनी चाहिए।
कांग्रेस अपनी ऐसी अमर्यादित अभिव्यक्तियों के कारण ही इस गति को प्राप्त हुई है। करीब छह दशक तक केंद्र की सत्ता पर राज करने वाली कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त करने लायक नहीं रह गई है। यही नहीं राज्यों में भी शून्यता की ओर बढ़ रही है। देश की सबसे पुरानी पार्टी को अपना अस्तित्व बचाने के लिए भ्रष्ट क्षेत्रीय नेताओं का पिछलग्गू बनना पड़ रहा है। जिन राज्यों में उसकी सरकार है वहां के शीर्ष नेताओं में गुटबाजी एक अलग जी का जंजाल बनी हुई है। कांग्रेस हाईकमान तक की बातें वे सुनने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। सच्चाई यह है कि कांग्रेस जिन लोगों के दम पर भाजपा को रोकने की कवायद कर रही है वे स्वयं परिवारवाद और भ्रष्टाचार के शिकार हैं। कांग्रेस को ऐसे लोगों का साथ इसलिए भी गवारा हो रहा है, क्योंकि उसका भी स्वभाव कुछ-कुछ ऐसा ही है। लालू यादव का उदाहरण सामने है। वे स्वयं और उनके परिवार के लोग तथा सगे-संबंधी सभी कानूनी घेरे में आ गए हैं। बहरहाल जब ऐसे लोगों की हरकतें ही जनता के सामने उनकी पोल खोल रही हों और भाजपा के पक्ष में जनमत तैयार कर रही हों तो फिर भाजपा और आरएसएस को उनसे उलझने की जरूरत ही नहीं है। इसके बजाय भाजपा को सबका साथ सबका विकास के अपने एजेंडे पर आगे बढ़ने पर ध्यान केंद्रित रखना चाहिए जिससे इतनी घेरेबंदी के बावजूद भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता पर कोई असर नहीं है। इसी कारण विभिन्न राजनीतिक दलों में भगदड़ मची हुई है।
प्रधानमंत्री ने विश्व में भारत की साख को मजबूत बनाने का जो काम अपने प्रथम विदेश प्रवास और योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति दिलाकर किया था वह डोकलम पर चीन की हठधर्मिता को धराशायी करने और ब्रिक्स में आतंकवाद पर चीन के रुख में बदलाव लाने में मिली सफलता के बाद और भी सुदृढ़ हुई है। एक समय ऐसा आ गया था कि छोटे-छोटे पड़ोसी देश भी भारत की नहीं सुनते थे, लेकिन आज वे न सिर्फ हर मौके पर हमारा साथ दे रहे हैं, बल्कि विश्व के ताकतवर देशों का भी हमारे प्रति दृष्टिकोण बदल गया है।
अब यदि बंगाल की ही बात करें तो वहां सत्ता चाहे कांग्रेस के हाथ में हो या सीपीएम या फिर ममता बनर्जी के, लेकिन ऐसा अभियान चलाया जाता रहा है कि वहां होने वाले हर अपराध की जिम्मेदारी ‘भाजपा’ की है। जैसा इन दिनों गौरी लंकेश की हत्या के मसले में कर्नाटक में हो रहा है। कर्नाटक, केरल और बंगाल में लंबे समय से आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो रही है, लेकिन कांग्रेस और कथित सेक्युलर तबका इसकी अनदेखी करता रहा है। अभी कुछ ही दिनों पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत सरकार से यह जानना चाहा कि 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री की हैसियत से दिल्ली की शाही जामा मस्जिद के मालिकाना हक को आखिर किस कानून के अंतर्गत एक इमाम को दे दिया? यह सवाल अदालत ने एक मुसलमान द्वारा मनमोहन सिंह के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका के संदर्भ में पूछा है। जामा मस्जिद देश की धरोहर है। ऐसी सभी धरोहरों के रखरखाव का दायित्व और स्वामित्व पुरातत्व विभाग का होता है। जामा मस्जिद का रखरखाव तो पुरातत्व विभाग ही करता है, लेकिन मालिकाना हक एक इमाम के परिवार को मिला हुआ है जो प्रत्येक वर्ष होने वाली करोड़ों रुपये की आमदनी का लुत्फ उठा रहा है। यह प्रकरण सामने आते ही शोर मच गया कि भाजपा मस्जिद पर कब्जा करना चाहती है। यह नरेंद्र मोदी और भाजपा को मुस्लिम विरोधी साबित करने के अभियान की ही एक कड़ी है। इसी कड़ी में म्यांमार से विस्थापित रोहिंग्या मुसलमानों के भारत में शरण देने के लिए प्रदर्शन और अभियान शुरू हो गया है। यह अभियान वे चला रहे हैं जो अपने देश में विस्थापित का जीवन बिता रहे पांच लाख कश्मीरी पंडितों के पक्ष में मुंह खोलने से परहेज करते रहे हैं। आज देश के लोग इनकी सच्चाई से रूबरू हो गए हैं। भारतीय जनमानस को इनकी असलियत का ज्ञान होना देश के भविष्य के लिए शुभ लक्षण है।
[ लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं ]