हर व्यक्ति को यही लगता है कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों हुआ या फिर दुनिया के सारे दुख-दर्द मैं ही क्यों ङोल रहा हूं? अगर सोचा जाए तो महत्वपूर्ण यह नहीं होता कि आपके पास पीड़ाएं कितनी हैं, जरूरी यह होता है कि आप उस दर्द के साथ किस तरह खुश रह जाते हैं। इसलिए खोए हुए का गम मनाने के बजाय जो कुछ भी बचा है उसे गले लगाएं। जीवन में आने वाली हर समस्या को हौसलों से हटाते चलते चलें तो एक दिन सफलता के शिखर पर जरूर आरोहण कर सकेंगे। कष्टों से क्या डरना है?

आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार-सहन करो, सफल बनो। श्रम करो, सफल बनो। सेवा करो, सफल बनो। संयम करो, सफल बनो। स्वभाव में रमण करो, सफल बनो। जीवन की सफलता के लिए उपरोक्त सूत्रों पर अमल करना जरूरी है। जो धैर्य, बुद्धि, संकल्प, श्रम की शक्ति से संपन्न होता है वही सफलता के शिखर पर आरूढ़ हो सकता है। गांधीजी के अनुसार-बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो। मेरी दृष्टि में अच्छा सोचो, अच्छा देखो, अच्छा बोलो, अच्छा सुनो, अच्छा करो, सबके प्रति अच्छे भाव रखो तो सफलता जरूर मिलेगी। किसी के लिए कुछ करके जो संतोष मिलता है उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।

जीवन में कभी ऐसा भी घटित होता है कि ईश्वर पर से ही भरोसा उठ जाता है। अपनों को खो देना या पूरी मेहनत करने के बाद भी असफल हो जाना जैसी परिस्थितियों से लगता है ‘अब सब कुछ खत्म हो गया है’ या ‘अब कुछ नहीं हो सकता।’ समय सबसे बड़ी दवा है और इसलिए बहुत-से लोग समय के साथ अपने को उबार लेते हैं, लेकिन कुछ लोग इस विषाद से बाहर आने में असमर्थ हो जाते हैं। वे भी इस चुनौती को जीत सकते हैं। ओशो कहते हैं कि पूर्ण निराशा के क्षणों में जब यह लगे कि ‘अब कुछ नहीं हो सकता’ तब योग की सर्वोच्च स्थिति को प्राप्त करने के लिए छलांग लगाने का स्वर्णिम अवसर हो सकता है। जब कभी ऐसा लगे कि सब कुछ खत्म हो गया है बस वहीं से नई शुरुआत होती है। इस संदर्भ में प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. विक्टर फ्रेंकल कहते हैं कि वह कौन-सी ताकत है जो दुखों और कष्टों से बढ़कर है और मनुष्य उसे कैसे प्राप्त कर सकता है? मनुष्य सारे कष्टों को सहनकर उनसे बाहर निकल सकता है, खुशी पा सकता है, सफल हो सकता है।

(ललित गर्ग)