भारत की घेरेबंदी में जुटा चीन
2020 तक चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी नौसेना बनने के अपने लक्ष्य को हासिल कर लेगा।
करीब पांच साल पहले 2012 में चीनी नौसेना ने अपने पहले विमानवाहक पोत लायोनिंग का जलावतरण किया था। वह सोवियत दौर का बना जहाज था। मरम्मत के बाद वह चीनी सेना के काम लायक बन सका था। पिछले महीने चीनी नौसेना ने शांदोंग नाम के अपने दूसरे विमानवाहक पोत को समंदर में उतारा। इसे सीवी-001ए का नाम दिया गया है। पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से बना यह 70,000 टन वजनी विमानवाहक पोत 2020 तक सेवा देने के लिए तैयार हो जाएगा। इसे चीनी नौसेना की उस महत्वाकांक्षी योजना के तौर पर देखा जा रहा है जिसमें चीन अपनी तकनीक के दम पर विमानवाहक पोतों के निर्माणको बढ़ावा देने की तैयारी कर रहा है। अगर यही रुझान कायम रहा तो 2020 तक चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी नौसेना बनने के अपने लक्ष्य को हासिल कर लेगा। नया विमानवाहक पोत चीनी नौसेना की उस महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है जिसके तहत 2020 तक 250 से अधिक युद्धपोत, पनडुब्बियों और अन्य जहाजों का बेड़ा तैयार करने का लक्ष्य है। अमेरिकी नौसेना में अभी 275 युद्धपोत तैनात हैं जिसमें 10 विमानवाहक पोत सहित 62 विध्वंसक पोत भी हैं जबकि चीन के पास केवल 32 हैं। इसी तरह अमेरिका के पास जहां 75 पनडुब्बियां हैं, वहीं चीन के पास 68 पनडुब्बियां हैं।
चीन उभरती हुई शक्ति है। ऐसे में सैन्य मोर्चे पर भी उसकी ताकत बढ़ना स्वाभाविक ही है। चीन अपने समुद्री किनारों से परे भी अपनी नौसैनिक ताकत की प्रदर्शन करना चाहता है। इस महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए चीन को ‘ब्लू वॉटर नेवी’ यानी गहरे समंदर में दूर तक असाधारण मारक क्षमताएं रखने वाली नौसेना का दर्जा हासिल करना जरूरी होगा। पूर्वी चीन सागर से लेकर दक्षिणी चीन सागर तक अपनी सागरीय परिधि में वह तमाम सामुद्रिक विवादों में फंसा हुआ है। वृहद प्रशांत और हिंद महासागर में चीनी नौसेना की मौजूदगी लगातार बढ़ती जा रही है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने रक्षा सुधारों की शुरुआत की है। इन सुधारों में थल सेना के बजाय नौसेना और वायुसेना के लिए अधिक संसाधनों की व्यवस्था की जा रही है। चीनी रक्षा मंत्रालय भी चीनी नौसेना के कार्यक्षेत्र में परिवर्तन को आकार दे रहा है। चीनी नौसेना के लिए यह तय किया जा रहा है कि वह तटीय सुरक्षा से इतर चरणबद्ध तरीके से अपनी भूमिका को खुली समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में केंद्रित करे। हालांकि 10 विमानवाहक
पोतोें के साथ अभी भी अमेरिकी नौसेना का कोई तोड़ नहीं, लेकिन क्षेत्रीय शक्तियों के लिए चीनी नौसेना नई चुनौती खड़ी कर रही है।
अधिकांश पश्चिमी और क्षेत्रीय विश्लेषक एक गंभीर नौसैनिक शक्ति के रूप में चीन के उभार को बहुत तवज्जो नहीं देते रहे हैं। उनका अनुमान था कि चीनी नौसेना विमानवाहक पोतों पर बड़ा दांव नहीं लगाएगी, मगर चीन से मिलते संकेत तो किसी भी अन्य नौसैनिक शक्ति की तरह ही नजर आ रहे हैं। बेहद कम समय में चीन के पास दो विमानवाहक पोत सेवा में आ जाएंगे और कई पोतों की योजना बनाई जा रही है। चीनी विशेषज्ञ खुलेआम इसकी पैरवी करते हैं कि पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी चीन सागर की सुरक्षा के लिए कम से कम तीन विमानवाहक पोतों की जरूरत है। चीनी नौसेना परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण पर भी खासा जोर दे रही है जो उसकी लघु एवं दीर्घावधिक प्राथमिकताओं के लिहाजसे बेहद अहम हैं। पनडुब्बी और हल्के-भारी युद्धपोतों जैसे नौसैनिक साजोसामान बनाने में चीन के पास कुशल मानव संसाधन का अभाव है, मगर इस चुनौती को भी दृढ़निश्चयी लक्ष्य के साथ मात दी जा सकती है। चीन जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य ठिकाना बना रहा है। पूर्वोत्तर अफ्रीका में स्थित जिबूती में सैन्य केंद्र बनाने का मकसद अदन की खाड़ी और सोमालियाई जल क्षेत्र में गश्त पर लगे चीनी नौसैनिकों को आराम के लिए ठिकाना मुहैया कराना है।
वास्तव में इसके पीछे असल मंशा पूर्वोत्तर अफ्रीका में चीन को एक नौसैनिक शक्ति के रूप में स्थापित करना है। फिर भारत से लगता ग्वादर बंदरगाह भी है। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की नौसैनिक मौजूदगी लगातार बढ़ रही है। चीनी पनडुब्बियों ने समुद्री लुटेरों के खिलाफ कार्रवाई के बहाने दिसंबर, 2013 से ही गाहे-बगाहे हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी सक्रियता लगातार बढ़ाई है। चीनी सामुद्रिक रेशम मार्ग का मकसद भी हिंद महासागर क्षेत्र में अपना कद बढ़ाना और यहां भारत को हासिल भौगोलिक फायदे को घटाना है। अपने व्यापारिक एवं ऊर्जा हितों को सुरक्षित रखने के लिए चीन अब हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित देशों के साथ साझेदारी की पींगें बढ़ा रहा है। चीनी नौसेना को स्थापित करने के लिए जिबूती से लेकर श्रीलंका में हंबनटोटा और पाकिस्तान में ग्वादर तक नए-नए सैन्य केंद्र बनाए जा रहे हैं। इस सबसे यही संकेत मिलता है कि चीनी नौसेना अब अपनी ताकत की दुंदुभी बजाने को तैयार है। हालांकि चीन के लिए अमेरिका को सीधी चुनौती देना अभी भी दूर की कौड़ी ही है। हाल फिलहाल चीन का मकसद अपने आसपास के इलाकों में ही वर्चस्व बढ़ाना है।
मिसाल के तौर पर दक्षिण चीन सागर में विमानवाहक पोत की तैनाती क्षेत्रीय समीकरणों को ही पलट देगी। लिहाजा क्षेत्रीय शक्तियों के समक्ष गंभीर चुनौतियां उभर रही हैं। चूंकि चीन पोत के पैमाने पर बेहद मजबूत अमेरिकी नौसेना को चुनौती देने के लिए पोत से इतर पनडुब्बी और एंटी-शिप मिसाइल जैसी क्षमताओं में खुद को बेहतर बना रहा है इसलिए क्षेत्रीय शक्तियों को भी उसकी बढ़ती नौसैनिक चुनौती का तोड़ तलाशना होगा। चीन जिस तरह भारतीय हितों की राह में दुश्वारियां बढ़ा रहा है वह भारत के लिए चिंता का सबब होना चाहिए।
भारतीय नौसेना भी अपने विमानवाहक पोत के बेड़े पर काम कर रही है, लेकिन ढुलमुल रवैया इन योजनाओं को सिरे चढ़ाने में लगातार अड़चन बना हुआ है। स्वदेशी तकनीक से बनने वाले भारत के पहले विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रांत का 2013 में अनावरण किया गया था, मगर देरी के चलते 40,000 टन वजनी यह जहाज 2020 तक ही सेवा देने के लिए तैयार हो पाएगा। 65,000 टन क्षमता वाले दूसरे स्वदेशी विमानवाहक पोत आइएनएस विशाल की तैनाती में भी दशक भर देरी की आशंका है।
नतीजतन अगले कुछ वर्षों में समंदर में सुरक्षा का पूरा दारोमदार 44,670 टन के आइएनएस विक्रमादित्य पर ही रहेगा। भारत की कोशिशों पर चीन के सरकारी मीडिया ने हाल में यह कहकर चुटकी ली है कि भारत विमानवाहक पोत विकसित करने को लेकर कुछ ज्यादा ही उतावला है। वह अभी भी उद्योगीकरण की शुरुआती अवस्था में है और विमानवाहक पोत विकसित करने में तमाम तरह की तकनीकी बाधाएं हैं। चीनी मीडिया ने यह भी कहा, ‘हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए विमानवाहक पोत विकसित करने के लिए व्यग्रता दिखाने के बजाय नई दिल्ली को अपनी अर्थव्यवस्था पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए।’ यक्ष प्रश्न यही है कि क्या भारतीय नौसेना को अपनी दूसरी जरूरतों को नजरअंदाज करते हुए विमानवाहक पोत को ही प्राथमिकता बनाना चाहिए। चीन की तरह भारत भी ब्लू वॉटर नेवी बनकर हिंद महासागर में अपने प्रभुत्व को कायम रखना चाहता है। चीन की चुनौती को देखते हुए भारत को तात्कालिक तौर पर कुछ विकल्प तलाशने होंगे। विमानवाहक पोत के लिए दशक भर का इंतजार शायद कारगर विकल्प नहीं होगा।
(लेखक हर्ष वी पंत, लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफेसर हैं)