अवधेश कुमार। जिन नेताओं, पार्टियों और विश्लेषकों ने मसूद अजहर मामले पर नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की, उनको चीन के बदले हुए स्वर से परेशानी हो रही होगी। भारत की कूटनीति से चीन दबाव में है और वह अकेला पड़ गया है। आखिर भारत में चीन के राजदूत लुओ झाओहुई ने यूं ही तो बयान नहीं दिया है कि मसूद अजहर से जुड़ा मसला बातचीत के जरिये जल्द हल कर लिया जाएगा। वस्तुत: मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव को वीटो द्वारा अड़ंगा लगाने के बाद जो स्थितियां बनीं, शायद चीन को उसका आभास नहीं था। इसके तुरंत बाद फ्रांस ने ऐलान कर दिया कि वह मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी मानकर जैश व मसूद की संपत्ति को जब्त करेगा। फ्रांस के गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय द्वारा जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि फ्रांस मसूद को यूरोपीय संघ की आतंकी सूची में शामिल करने को लेकर बात करेगा। यूरोपीय संघ में इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है। यूरोपीय संघ में प्रतिबंधित होने का मतलब प्रमुख देशों के सबसे बड़े समूह द्वारा मसूद आतंकी घोषित कर दिया गया। उसके बाद दूसरे वैश्विक और क्षेत्रीय संगठनों द्वारा उसे वैश्विक आतंकी घोषित किया जा सकता है।

सच यह है कि अड़ंगा डालकर चीन प्रमुख देशों के निशाने पर आ गया है। अमेरिका का कहना है कि यदि चीन इसी तरह अड़ंगा लगाता रहा तो सदस्य देशों को दूसरे विकल्प पर ध्यान देना पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध समिति में होने वाला विचार-विमर्श गोपनीय होता है और इसलिए सदस्य देश सार्वजनिक रूप से इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते। मीडिया में सदस्य देशों के राजनयिकों का जो बयान आया उसमें चीन के खिलाफ गुस्सा है। सुरक्षा परिषद के एक राजनयिक ने चीन को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर वह इस कार्य में बाधा पैदा करना जारी रखता है तो जिम्मेदार सदस्य देश, सुरक्षा परिषद में अन्य कदम उठाने पर मजबूर हो सकते हैं। अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य ब्रैड शेरमैन ने चीन के इस कदम को अस्वीकार्य करार दिया। उन्होंने चीन से अपील की है कि वह संयुक्त राष्ट्र को अजहर पर प्रतिबंध लगाने दे। अगर सुरक्षा परिषद के सदस्य देश ही चेतावनी दे रहे हैं कि चीन ने ऐसा करना जारी रखा तो उनके पास दूसरे रास्ते हैं तो भारत के लिए इससे बड़ा संबल और कुछ हो ही नहीं सकता।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस तरह दुनिया के प्रमुख देश इस मामले में भारत के साथ खड़े हैं, उस तरह हमारे देश के अंदर एकजुटता नहीं रही। इस तथ्य को भुलाया गया कि इस बार सुरक्षा परिषद में भारत ने नहीं, बल्कि फ्रांस की अगुवाई में ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर प्रस्ताव पेश किया था। परिषद के पांच में से तीन स्थायी सदस्य देशों का प्रस्ताव लाना, भारत की विश्वसनीयता और बढ़ी हुई अहमियत का परिचायक है। वैसे भी सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव खत्म नहीं हुआ है। चीन ने वीटो के प्रयोग से इस पर तकनीकी रोक लगाया है। मसूद अजहर को सुरक्षा परिषद द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की राह में पिछले दस वर्ष में चीन ने चौथी बार अड़ंगा लगाया है। चीन वर्ष 2009 में, फिर वर्ष 2016 और 2017 में भी मसूद को बचाने के लिए वीटो का इस्तेमाल कर चुका है। परिषद में चीन को छोड़कर सभी 14 सदस्यों ने इसका समर्थन किया था। ये देश भारत के साथ हैं तो इसका कारण भारतीय कूटनीति का प्रभाव ही है।

आज स्थिति यह है कि भारत की शांत और आक्रामक कूटनीति के कारण फ्रांस, ब्रिटेन एवं अमेरिका चीन से बातचीत कर रहे हैं कि आपको समस्या क्या है? इस बातचीत का लक्ष्य एक ही है कि चीन उसे वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए तैयार हो जाए। चीन प्रस्ताव की भाषा को लेकर कुछ आपत्ति उठा रहा था तो उसे ठीक करने पर बात हो रही है। कहने का तात्पर्य यह कि चीन के पास इसमें विश्व समुदाय के साथ आने या फिर पाकिस्तान के लिए विश्व के प्रमुख देशों की नाराजगी ङोलने का विकल्प है। भारत ने साफ कहा है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को जिस ढंग से पालता-पोसता और प्रायोजित करता है, वह चीन के लिए भी चिंता की बात होनी चाहिए। दुनिया में इस समय खुलकर मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किए जाने का विरोध करने वाला देश शायद ही कोई हो। चीन भी यह नहीं कह सका कि वह इसका विरोध कर रहा है। उसने कहा कि मसूद अजहर पर प्रतिबंध से पहले जांच के लिए समय चाहिए, ताकि सभी पक्ष ज्यादा बातचीत कर सकें और एक अंतिम निर्णय पर पहुंच सकें जो सभी को स्वीकार्य हो।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा कि चीन इस मुद्दे को ठीक से संभालने के लिए भारत सहित सभी पक्षों से संवाद और समन्वय के लिए तैयार है। हालांकि उसके इस बयान का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि मसूद अजहर आतंकवादी है और वह भारत में पिछले 19 वर्षो से हमले करा रहा है जिसकी सप्रमाण जानकारी दुनिया को मिल गई है। चीन की अपनी दुर्नीति है। वह पाकिस्तान की पीठ पर खड़ा होकर एक साथ कई स्वार्थ साधने की रणनीति अपना रहा है। पाकिस्तान को उसने इतना ज्यादा कर्ज दे दिया है कि वह उसके चंगुल से आसानी से निकल नहीं सकता। चीन की सोच है कि भविष्य में पाकिस्तान पर कर्ज के एवज में शर्तो के अनुसार कार्रवाई की नौबत आए तो आतंकवादी संगठन उसका विरोध न करे। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा को भी चीन आतंकी संगठनों के हमलों से सुरक्षित रखना चाहता है।

अफगानिस्तान के तालिबान से अमेरिका पाकिस्तान के माध्यम से बातचीत कर रहा है। चीन मानता है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद वहां उसकी विस्तारित भूमिका में पाकिस्तान का साथ मिलने से विरोध या विद्रोह की स्थिति पैदा नहीं होगी। चीन अपने शिकियांग प्रांत में उइगुर मुस्लिमों को जिस तरह कुचल रहा है, वहां आतंकवाद का जिस क्रूरता से दमन कर रहा है, इससे जेहादी संगठनों में नाराजगी है। शायद यह नाराजगी न बढ़े, इसलिए भी वह ऐसा कर रहा है। लेकिन उसे यह समझना होगा कि जिस दिन भारत को उसके छिपे होने के जगह की पक्की सूचना मिल गई, उस दिन उसे खत्म कर दिया जाएगा, क्योंकि यह बदला हुआ भारत है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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