डॉ. भरत झुनझुनवाला

राजस्थान में सौर ऊर्जा से जुड़ी एक कंपनी का दावा है कि उसने 2.44 रुपये प्रति यूनिट की बेहद कम दर पर बिजली आपूर्ति की है। यह दावा ऐसे समय किया गया है जब भारत सरकार ने स्वदेशी तकनीक आधारित दस परमाणु संयंत्र स्थापित करने की घोषणा की है। सौर बिजली की इतनी कम दर हैरान करने वाली है, क्योंकि कोयले से बनने वाली तापीय बिजली, पनबिजली और परमाणु बिजली के दाम छह से दस रुपये प्रति यूनिट के दायरे में आते हैं। इसमें एक पेंच यही है कि सौर उर्जा का उत्पादन केवल दिन में होता है जबकि बिजली की मांग सुबह और शाम को ज्यादा होती है। सौर ऊर्जा की तुलना में तापीय और परमाणु बिजली 24 घंटे उपलब्ध होती है जिसे बेस बिजली कहा जाता है। इसमें सुबह-शाम के पीक आवर भी शामिल होते हैं। तापीय और परमाणु संयंत्रों को चालू और बंद करना कठिन होता है। बॉयलर को गरम-ठंडा करने में समय लगने के साथ ही खर्च भी आता है। पनबिजली इनकी तुलना में उत्तम होती है। नदी के पानी को रोककर बांध के पीछे तालाब बना दिया जाता है। वांछित समय पर तालाब से पानी छोड़ कर पीकिंग बिजली बनाई जा सकती है। अब तक सरकार का प्रयास तापीय अथवा परमाणु और पनबिजली के मेल से बिजली की पूर्ति करना था। 24 घंटे के लिए तापीय अथवा परमाणु बिजली का उपयोग किया जाता था जबकि सुबह शाम की जरूरत के लिए पनबिजली का। इन सभी तकनीकों के माध्यम से बनने वाली बिजली छह से दस रुपये यूनिट में मिल रही है जबकि सौर उर्जा से बनी बिजली केवल तीन रुपये में उपलब्ध है। समय के साथ तापीय, परमाणु एवं पनबिजली तीनों की उत्पादन लागत बढ़ रही है जबकि सौर बिजली की लागत घट रही है। दस साल पहले तापीय एवं पनबिजली की उत्पादन लागत लगभग तीन रुपये प्रति यूनिट थी जबकि सौर बिजली की उत्पादन लागत 15 रुपये प्रति यूनिट। इस अवधि में तापीय और पनबिजली की उत्पादन लागत तीन रुपये प्रति यूनिट से बढ़कर छह रुपये प्रति यूनिट हो गई है जबकि सौर बिजली की उत्पादन लागत 15 रुपये से घटकर तीन रुपये प्रति यूनिट रह गई है।
पनबिजली की राह में तमाम पर्यावरणीय समस्याएं भी सामने आ रही हैं। गंगासागर जैसे देश के तटीय क्षेत्रों का तेजी से क्षरण हो रहा है, क्योंकि हिमालय से आने वाली मिट्टी टिहरी जैसे बांधों से रुक रही है। पनबिजली के लिए बनाए गए बांधों ने मछलियों के रास्तों को रोक दिया है। गंगा द्वारा बदरीनाथ और केदारनाथ से लाई जा रही आध्यात्मिक ऊर्जा का क्षरण पनबिजली टरबाइनों मे हो रहा है।
तापीय, परमाणु और पनबिजली के ऊंचे और लगातार बढ़ते दाम के कारण बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए सौर बिजली को शामिल करना बेहद जरूरी हो चला है। साथ ही पनबिजली को लेकर आ रही पर्यावरणीय समस्याओं को देखते हुए उससे किनारा भी करना होगा। इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति सौर ऊर्जा के साथ पंप स्टोरेज को अपनाकर की जा सकती है। पंप स्टोरेज योजना पनबिजली का बदला हुआ रूप है। पनबिजली नदी के पानी को रोककर उसके वेग को टरबाइन पर डालकर बनाई जाती है। नदी के स्वाभाविक ढलान का उपयोग बिजली उत्पादन में किया जाता है। टरबाइन से निकाले पानी को वापस पंप से ऊपर के तालाब में डाल दिया जाता है। जिस समय बेस बिजली का उत्पादन पर्याप्त होता है और मांग कम होती है उस समय बिजली का दाम लगभग दो रुपये प्रति यूनिट होता है। इस बिजली को खरीदकर नीचे के पानी को ऊपर झील में डाल दिया जाता है। फिर जिस वक्त बिजली की मांग अधिक होती है और दाम लगभग 10 रुपये होता है तब उस पानी को पुन: टरबाइन में डालकर बिजली बना ली जाती है जैसे आयुर्वेदिक उपचार में शिरोधरा के तेल को नीचे के बर्तन से उठाकर ऊपर के बर्तन में डाला जाता है और उसका पुन: उपयोग किया जाता है उसी प्रकार बेस बिजली को पीकिंग बिजली में परिवर्तित कर लिया जाता है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अध्यक्ष के अनुसार बिजली के ऐसे रूपांतरण में केवल 40 पैसे प्रति यूनिट का खर्च आता है। लिहाजा दो रुपये में बेस लोड को खरीदकर मात्र 40 पैसे मे इसे पीकिंग लोड में परिवर्तित कर 10 रुपये में बेचा जा सकता है। यही कारण है कि सरकार पंप स्टोरेज योजनाओं को बढ़ावा दे रही है।
पंप स्टोरेज योजनाओं में समस्या यह है पनबिजली परियोजना के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों की। इसका उपाय है कि नदी को छोड़कर अन्य स्थानों पर स्वतंत्र पंप स्टोरेज योजना बनाई जाए। जैसे पहाड़ के ऊपर और नीचे नदी के पाट को छोड़कर दो कृत्रिम तालाब बनाए जा सकते है। दिन के समय जब सौर बिजली उपलब्ध हो तो नीचे से पानी को ऊपर पंप किया जा सकता है और पीकिंग बिजली की जरूरत के समय ऊपर के तालाब से पानी छोड़ कर बिजली बनाई जा सकती है। ऐसा करने से सौर बिजली को पीकिंग बिजली में बिना नदी को बर्बाद किए परिवर्तित किया जा सकता है।
वर्तमान मे पनबिजली बनाने का खर्च लगभग छह रुपये प्रति यूनिट आ रहा है। देश में पनबिजली परियोजनाओं द्वारा लगभग 80 प्रतिशत बिजली वर्षा के समय बनाई जाती है। बांध और टरबाइन में किया गया निवेश साल में आठ महीने व्यर्थ पड़ा रहता है। स्वतंत्र पंप स्टोरेज परियोजना को साल के 12 महीने बराबर चलाया जा सकता है। इसलिए इसमें किया गया निवेश पूरे साल काम आएगा। मेरा अनुमान है कि स्वतंत्र पंप स्टोरेज योजना से बिजली उत्पादन का खर्च केवल तीन रुपये प्रति यूनिट आएगा। सौर उर्जा का खर्च तीन रुपये मान लें तो स्वतंत्र पंप स्टोरेज के साथ पीकिंग बिजली का सम्मिलित खर्च छह रुपये आएगा। तापीय और परमाणु उर्जा द्वारा उत्पादित बेस उर्जा का लगभग यही दाम आता है। इसी दाम पर हमें पीकिंग उर्जा उपलब्ध हो सकती है। सौर बिजली उत्पादन में कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है। इस प्रकार हम नदियों को बचाए रखते हुए साफ पीकिंग बिजली उत्पादित कर सकते है।
पीकिंग बिजली की मांग कम करने के भी प्रयास करने चाहिए। विकसित देशों में दिन के समय के अनुसार बिजली के दाम में परिवर्तन किया जाता है। बिजली के मीटर में व्यवस्था होती है कि अलग-अलग समय पर उपयोग की गई बिजली की अलग-अलग गणना करे। जैसे सुबह और शाम में बिजली का दाम 10 रुपये, दिन मे छह रुपये और रात मे तीन रुपये कर दिया जाए तो उपभोक्ता का प्रयास होगा कि गरम पानी के गीजर आदि का उपयोग रात में अधिक करें। उद्योगों का प्रयास होगा कि दिन के स्थान पर रात में उत्पादन करें जिस समय बिजली के दाम कम होते हैं। पीकिंग बिजली की मांग कम हो जाएगी तो स्वतंत्र पंप स्टोरेज योजनाओं की आवश्यकता भी स्वत: कम हो जाएगी।
सौर बिजली के घटते दाम एक सुखद उपलब्धि है। तापीय और परमाणु बिजली के उत्पादन के लिए कोयले और यूरेनियम के आयात पर हमारी निर्भरता को सौर बिजली कम कर सकती है। इसे स्वतंत्र पंप स्टोरेज के साथ जोड़ने से हम अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। कोयले और परमाणु ईंधन के आयात पर भी हम निर्भर नही रहेंगे और हमारी उर्जा सुरक्षा स्थापित होगी। स्वतंत्र पंप स्टोरेज बनाने से हमारी नदियां, पर्यावरण और संस्कृति की भी रक्षा होगी।
[ लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री एवं आइआइएम बेंगलुरु के पूर्व प्रोफेसर है ]