मनुष्य शिशु बनकर संसार में जन्म लेता है। जन्म के बाद उसे सांसारिक विषयों का ज्ञान होने लगता है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करता हुआ आगे चलकर व्यवसाय अथवा नौकरी करने लगता है। समयानुसार उसका विवाह हो जाता है। इसके बाद बच्चे होते हैं। वे बच्चे बड़े हो जाते हैं, तब वह वृद्धावस्था की ओर धीरे-धीरे बढ़ते हुए अंत में एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। फिर उन बच्चों के साथ भी यही क्रम चलता है और अपना जीवन क्रम पूरा करके संसार से विदा हो जाते हैं। तीसरी पीढ़ी, चौथी पीढ़ी और पांचवीं पीढ़ी इस प्रकार अंतहीन सिलसिला चलता ही रहता है। यह सब क्या है? हम कैसे इस चक्र में फंस गए हैं। यहां हमें स्वयं से प्रश्न करना आवश्यक है कि हम क्यों संसार में उत्पन्न होते हैं और मर जाते हैं? क्या इससे छूटने का कोई उपाय है। प्रथम यहां यह समझना होगा कि जन्म-मृत्यु का चक्र तो इसी प्रकार चलता रहेगा। संसार में पूर्व से ही इसी प्रकार से चलता चला आ रहा है। हां इस दुष्चक्र से निकलने का उपाय है। किसी ऐसे तत्वदर्शी संत जो पूर्ण परमात्मा के तत्व को जानने वाले हों, उनकी शरण में जाकर उनसे ज्ञान उपदेश लेकर परमेश्वर की सद्भक्ति करें तो सांसारिक चक्र से छूटकर अपने मूल निवास धाम को हम जा सकते हैं, जहां जाकर फिर इस संसार में नहीं लौटेंगे। सारा जन्म-मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाएगा। ‘गीता’ के अनुसार ऐसा तत्वदर्शी सद्गुरु उलटे-लटके संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग को जड़, तना, डाल, शाखा और पत्ते सहित सभी भागों को पूर्ण रूप से जानता हो। संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भागों की ठीक-ठीक जानकारी रखने वाले ऐसे तत्वदर्शी पूर्ण गुरु के पास जाकर उस ज्ञान को जानने व समझने के लिए उन्हें भली-भांति दंडवत प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से परमतत्व को भलीभांति जानने वाले गुरु का उपदेश उपयोगी होगा। गुरु आपको उस ज्ञान से परिपूर्ण करेंगे, जो पूर्ण रूप से गुप्त है।
प्रचलित ज्ञान से वह तत्वज्ञान बिल्कुल अलग है। ऐसे तत्वदर्शी पूर्ण गुरु से ज्ञान उपदेश प्राप्त कर परमेश्वर की भक्ति कर मानव जीवन को सफल बनाकर मनुष्य इस भव सागर को पार कर उस अमर लोक को चला जाता है, जहां जाकर जन्म मृत्यु रूपी संसार में फिर वापस नहीं लौटकर आता।
[ अशोक वाजपेयी ]