अरविंद पानगड़िया

वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी आजादी के बाद संभवत: पहला ऐसा आर्थिक सुधार है जिस पर व्यापक रूप से इतनी चर्चा हो रही है। 1991 के ऐतिहासिक सुधारों पर एक सीमित वर्ग ने ही गौर किया था। 1990 के दशक की शुरुआत में कराए गए विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार आबादी के एक बहुत बड़े तबके को उन सुधारों की कोई भनक ही नहीं थी या यूं कहें कि देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा उन सुधारों से अनभिज्ञ था। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय किए गए तमाम दूरगामी सुधारों की भी सुधि तमाम जानकारों ने नहीं ली जबकि वे ऐसे सुधार थे जिनके चलते 2003 से 2012 के बीच आठ फीसदी से ऊंची आर्थिक वृद्धि दर हासिल करना मुमकिन हुआ। अगर जीएसटी की बात करें तो इसने समाज के सभी तबकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इसके लिए पिछले एक दशक के दौरान लोगों के जीवन में मीडिया की बढ़ी पैठ एक बड़ी हद तक जिम्मेदार है। इसके अलावा जीएसटी पर आम सहमति कायम करने लिए मौजूदा सरकार के हरसंभव उपाय भी हैं। ये सभी पहलू भी जीएसटी को मिल रही खासी तवज्जो को कुछ हद तक ही बयान करते हैं।

यह कर सुधार इतने अधिक लोगों का ध्यान इसलिए खींच रहा है, क्योंकि वह उनसे सीधा जुड़ा है। कारोबारी लोगों को तो अपनी कारोबारी गतिविधियां जारी रखने के लिए जीएसटी नेटवर्क यानी जीएसटीएन से जुड़ना ही है। उन्हें आज से ही इसकी शुरुआत करनी होगी। इसके तहत समूची बिक्री पर टैक्स का ब्योरा देकर उस पर जीएसटीएन प्लेटफॉर्म के दौरान अपने इनपुट पर अदा किए गए कर के एवज में कर छूट का दावा भी करना होगा। दूसरे तमाम लोग उपभोक्ता के रूप में इससे प्रभावित हो रहे हैं और अब उन्हें अतीत में अदा किए जाने वाले तमाम अप्रत्यक्ष करों के स्थान पर केवल जीएसटी का ही भुगतान करना होगा। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे देश के किसी भी कोने से उत्पाद खरीदें उस पर टैक्स की वही समान दर लगेगी। अब वे किस्से बीती बात बनकर रह जाएंगे कि अमुक ने वाहन उस राज्य जाकर खरीदा जिस राज्य में उस पर कर की दर कम थी।

राजनीतिक एवं नौकरशाही के स्तर पर भी जीएसटी को लेकर काफी जागरूकता का भाव है। एक ओर जहां इस सुधार को सिरे चढ़ाने के लिए संविधान संशोधन करने से लेकर तमाम तरह के विधेयकों को पारित कराने की जरूरत थी वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार और विभिन्न राज्यों के बीच जीएसटी के तानेबाने और जीएसटी परिषद के गठन पर विचार के लिए वार्ताओं के लंबे दौर भी चले। इस सुधार पर सहमति के लिए केंद्र और राज्यों के बीच अनुकरणीय साङोदारी की दरकार थी। उसके बिना इसका अस्तित्व में आना संभव नहीं था। इस सबके बीच सरकार के समक्ष जनता को यह समझाने की चुनौती थी कि जीएसटी समूची कर व्यवस्था में कितना क्रांतिकारी बदलाव का वाहक बनेगा। 1वास्तव में जीएसटी का प्रभाव देश की सीमाओं से परे भी दिखेगा। विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत संबंधित देश इसका लाभ उठा सकते हैं कि वे अपने यहां से निर्यात होने वाली वस्तुओं को अप्रत्यक्ष करों में रियायत देकर उन्हें आयात से संबद्ध कर लें। अतीत में भारत इन नियमों का आंशिक रूप से ही लाभ उठा पाया है, क्योंकि हमारे अप्रत्यक्ष कर ढांचे में एकरूपता नहीं थी। वह ढांचा पूरी तरह से छिन्न-भिन्न था। जीएसटी के साथ इस पुराने ढांचे की विदाई होगी। इस सुधार ने विदेशी निवेशकों का ध्यान भी आकर्षित किया है, क्योंकि यह कर ढांचे को सुगम बनाने के साथ ही उसमें व्यापक निरंतरता को लेकर भी आश्वस्त करता है।

आर्थिक क्षमता बढ़ाने का सामान्य सिद्धांत यही कहता है कि समूची उत्पादन श्रंखला यानी वैल्यू चेन में किसी आगमवस्तु यानी इनपुट पर एक बार टैक्स लगने के बाद उस पर आगे टैक्स नहीं लगना चाहिए। मिसाल के तौर पर विनिर्माण में असंगत रूप से इस्तेमाल होने वाली मशीनरी पर उत्पादकों को अवश्य ही कर अदा करना पड़ता है, लेकिन उन सॉफ्टवेयर इंजीनियरों पर नहीं जिनका सेवा उद्योग में असंगत रूप से इस्तेमाल होता है। वैल्यू चेन में सभी आगमों पर कर हटाकर जीएसटी आदर्श रूप में इस पक्षपात को खत्म करता है। जीएसटी का एक बड़ा लाभ यह भी है कि यह करवंचन यानी कर चोरी के चलन पर भी विराम लगाएगा। कई विक्रेता बिक्री रसीद जारी करने से कतराते हुए कर चोरी की फिराक में लगे रहते हैं। जीएसटी के तहत खरीदार को यह लाभ मिलेगा कि वह दुकानदार से रसीद देने के लिए जोर दे ताकि वह इनपुट पर अदा किए कर की क्षतिपूर्ति के दावे के लिए उस रसीद को पेश कर सके। अगर कोई गड़बड़ी करने की कोशिश करेगा तो उसे पकड़ने का भी तंत्र इन-बिल्ट मैकेनिज्म के रूप में है।

मीडिया में हो रही बहस में दो तरह की आलोचनाओं को कुछ ज्यादा ही तूल दिया जा रहा है। एक तो जीएसटी की अलग-अलग दरों को लेकर टिप्पणीकार काफी आलोचना कर रहे हैं। वे सवाल कर रहे हैं कि ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर के उलट भारत ने विभिन्न वस्तुओं के लिए जीएसटी की अलग-अलग दरों को क्यों चुना? उनका दूसरा सवाल है कि क्या सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया की तरह जीएसटी के बाद भारत में भी महंगाई में इजाफा नहीं होगा? इस पर मैं यही कहना चाहूंगा कि इन दोनों आलोचनाओं की एक साथ पड़ताल करें तो परस्पर विरोधाभास नजर आता है। जीएसटी की विभिन्न दरों को अपनाने से भारत को यह गुंजाइश मिली है कि तमाम जिंसों पर कर की दरों में पहले की तुलना में ज्यादा बदलाव न आए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि पुरानी कर प्रणाली की जगह लेने वाले जीएसटी के बाद अधिकांश वस्तुओं की कीमतों में बड़े पैमाने पर बदलाव न आए। इसके उलट ऑस्ट्रेलिया में एकल दर अपनाने से उन उत्पादों की कीमतें आसमान पर पहुंच गईं जिन पर पहले कर की दर कम हुआ करती थी। इससे औसतन महंगाई में इजाफा हुआ। इसीलिए भारत ने इस आपाधापी से बचने के लिए कर की विभिन्न दरों को अपनाया है। इससे वस्तुओं को उनके पुराने दाम के आसपास रखने में मदद मिलेगी।1यह सवाल उठना सहज है कि अगर हम जीएसटी के लिए एकल दर रखते तो क्या उससे हमें और ज्यादा फायदा होता? एकरूपता-सरलता के लिहाज से जरूर कुछ फायदा होता, लेकिन सैद्धांतिक रूप से ऐसा कोई प्रमाण नहीं जो यह सिद्ध कर सके कि दो या तीन दरों के बजाय एकल दर वाला जीएसटी ज्यादा फलदायी होता। अगर लोगों के नजरिये से देखें तो जीएसटी की एकल दर कम आमदनी वालों के लिए नुकसानदेह साबित होती। बहुस्तरीय दरों में हमें यह गुंजाइश मिली कि विलासिता की महंगी वस्तुओं पर अधिक कर लगाकर कर ढांचे को प्रगतिशील बना सकें।

(लेखक नीति आयोग के उपाध्यक्ष हैं)