स्मार्टफोन मिलने से आम आदमी दुनिया के हर हिस्से की गुलाबी और चमचमाती तस्वीर देख रहा है। अपने लिए नए-नए सपने देख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब स्मार्ट सिटी का सपना दिखाया है। ऐसा शहर जहां आम आदमी के जरूरत की हर चीज सिर्फ कुछ कदमों की दूरी पर उपलक्ध होगी। स्मार्ट शहर के निवासियों को बिजली कटौती से नहीं जूझना होगा, बारिश के दिनों में जलजमाव की समस्या नहीं होगी। बच्चों को कुछ कदमों की दूरी पर ही अच्छी शिक्षा उपलक्ध होगी यानी आधुनिक जरूरत के मुताबिक हर सुविधा से स्मार्ट सिटी लैस होंगे।

भारत जैसे देश में स्मार्ट सिटी की कल्पना ही लोगों को रोमांचित कर देती है, लेकिन क्या भारत जैसे बड़े और घनी आबादी वाले देश में पश्चिम की तर्ज पर स्मार्ट सिटी बसाने और उसमें रहने वाले लोगों को कड़े नियम-कायदों में बांधना संभव होगा। स्मार्ट सिटी बनाने की दिशा में मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान और मेक इन इंडिया के जरिये पहले ही रन-वे बनाने का काम शुरू कर दिया है, लेकिन हमारे देश की चुनौतियां थोड़ी अलग किस्म की हैं। बनारस की गलियां हों या फिर पुरानी दिल्ली के तंग रास्ते, अजमेर में शहर के बीचों-बीच खड़े जानवर हों या फिर बरसात के दिनों में पुराने अमृतसर में जगह-जगह घुटने भर पानी, ऐसी तस्वीर देश के ज्यादातर हिस्सों में आसानी से दिख जाती है।

छोटे-छोटे शहरों में बरसात के दिनों में क्या आलम होता है यह वहां के निवासियों से पूछिए, उनके दर्द की दास्तां खत्म ही नहीं होगी। गर्मी में बिजली के आने-जाने का कोई वक्त नहीं होता और लोग बिजली के इंतजार में रात सड़कों पर गुजारते देश के अलग-अलग हिस्सों में आसानी से दिख जाते हैं। ऐसे शहरों की सेहत में सुधार तो फिलहाल नहीं दिख रहा है, लेकिन सिंगापुर की तर्ज पर चमचमाते शहर और सबको सुंदर घर देने का सपना जरूर दिखाया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर स्मार्ट शहर बसाने के लिए सरकार पैसे का इंतजाम कहां से करेगी। स्मार्ट सिटी के लिए आधारभूत संरचना तैयार करने में मोटा पैसा खर्च करना होगा। एक अनुमान के मुताबिक एक स्मार्ट सिटी को तैयार करने में करीब तीन लाख करोड़ रुपये की लागत आएगी।

अगर स्मार्ट सिटी का आकार थोड़ा छोटा भी किया जाए तो लागत में थोड़ी कमी आ सकती है। लेकिन तीन लाख करोड़ रुपये के हिसाब से 100 स्मार्ट सिटी बनाने पर करीब 300 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार इतने पैसे का इंतजाम कहां से करेगी? राज्य सरकारें चाहेंगी कि स्मार्ट सिटी पर होने वाले खर्च का बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार की जेब से निकले और उनकी जेब से मामूली रकम। ये भी हो सकता है कि पैसे की कमी का रोना रोते हुए कुछ राज्य सरकारे केंद्र से ही पूरा खर्च वहन करने की मांग करें। मतलब साफ है कि स्मार्ट सिटी की राह में पैसे का जुगाड़ सबसे बड़ा रोड़ा है। स्मार्ट सिटी के लिए बड़े पैमाने पर जमीन की जरूरत होगी यानी सरकार को भूमि अधिग्रहण करना पड़ेगा।

ऐसे में सरकार को भूमि अधिग्रहण के दौरान आंदोलन और विरोध से भी दो-चार होना पड़ सकता है। भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर विपक्ष के तेवर पहले से तल्ख हैं। स्मार्ट सिटी के चयन का पैमाना भी काफी कड़ा है। कड़ी प्रतिस्पर्धा के आधार पर स्मार्ट सिटी का चुनाव होगा। ऐसे में शहरों की पहली परीक्षा राज्य स्तर पर और दूसरी राष्ट्रीय स्तर पर होगी। स्मार्ट सिटी की सूची में अपने शहर को जगह दिलाने में अहम भूमिका उस शहर के लोगों और शहरी निकाय की होगी। इसके लिए अलग-अलग मानक तय किए गए हैं और उसके लिए प्वाइंट निर्धारित हैं।

मतलब साफ है कि स्मार्ट सिटी का सपना साकार करने के लिए शहर के लोगों और वहां के निकाय को कड़ी परीक्षा से गुजरना होगा। ऐसे में स्मार्ट सिटीज के चुनाव के लिए तय मानकों को लेकर भी सवाल उठ सकते हैं। शहरों में शायद ही कोई मां-बाप सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को भेजना चाहता है। गरीब से गरीब मां-बाप भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं। अब सवाल उठता है कि क्या भारत के स्मार्ट सिटी के स्कूल भी सिंगापुर की तर्ज पर बनेंगे जहां मां-बाप अच्छी शिक्षा की उम्मीद में अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजना पसंद करेंगे। स्मार्ट सिटी का भारत में सपना जितना सुहाना है, उसकी राह फिलहाल उतनी ही मुश्किल है। लोगों की उम्मीदों को पूरा करना आसान काम नहीं।

(लेखक विजय शंकर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)