मनुष्य को अपने प्रत्येक कार्य में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहिए। कोई भी कार्य छोटा-बड़ा नहीं होता, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि कार्य के प्रति हमारी मनोदशा कैसी है। यदि हम कोई छोटा कार्य कर रहे हैं, लेकिन हम उसके प्रति पूर्ण मनोयोग से समर्पित हैं और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं तो वह कार्य भी हमारे लिए अतिमहत्वपूर्ण हो जाएगा। कार्य की सफलता की नींव हमारी सकारात्मक सोच पर निर्भर है। स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं। आप जो चाहते हैं वह आपको मिल सकता है, बशर्ते पहले आप कुछ चाहें तो। असल में ज्यादातर लोगों को अपनी सफलता पर संशय रहता है। उन्हें असफलता का भय सताता है और इस वजह से वे कोशिश तक नहीं करते। जब तक असफलता का भय हमारे दिमाग में बैठा रहता है तब तक हमारी सफलता संदिग्ध ही रहती है, लेकिन जब हम इस भय से ऊपर उठ जाते हैं तब हम निर्भीक होकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश करते हैं।
कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती। यदि आप उन लोगों के बारे में जानेंगे जिन्होंने अपने जीवन में बड़े काम किए हैं तो मालूम होगा कि वे लोग सफलता हासिल करने के लिए असफलता का खतरा उठाने से नहीं डरे। असफलता ही हमें सफलता का राज बताती है। कई बार अपनी सफलता के प्रति हम इसलिए भी आश्वस्त नहीं होते, क्योंकि हम अपनी तुलना दूसरों से करने लगते हैं। जीवन में कभी भूलकर भी किसी से अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि आप जैसे हैं इस सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय हैं। ईश्वर की हर रचना अपने आप में सर्वोत्तम और अद्भुत है। महान व आदर्श कार्य करने के लिए आपको इस बात में विश्वास करना होगा कि आप सर्वश्रेष्ठ हैं और आप बहुत कुछ कर सकते हैं। इसका आपके अचेतन मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब हम अपनी सोच बदलते हैं तो हमारी दुनिया ही बदल जाती है। मनुष्य की सफलता-असफलता उसके विश्वासों और विचारों पर ही निर्भर करती है। जब एक ही विचार को हम कई बार दोहराते हैं तो हमारी सोच भी वैसा ही रूप ले लेती है और फिर वही विचार आगे चलकर विश्वास में बदल जाते हैं।
[ विवेक शुक्ला ]