जब इस बात की कोई संभावना न हो कि भविष्य में आपके जीवन में क्या होगा, तो आप के पास क्या उपाय बचता है? हममें से बहुत लोग इस विचार बिंदु पर निरुपाय ही रहते हैं, लेकिन यदि हम कुछ अलग तरह से सोचें तो पाएंगे कि यहीं से हममें सभी भौतिक व प्राकृतिक घटनाओं के प्रति एक उन्मुक्त दृष्टि जन्मती है। इसी से हमारे लिए हर जीवन अनुभव नया व विशेष बन जाया करता है। हम अपने परिवेश को उसके पुराने आवरण की तुलना में एक नए स्वरूप में देखने लगते हैं। यह सब कुछ हम सबके दैनिक जीवन में सामान्य रूप से घटता है। आवश्यकता इस घटनाक्रम को विशेष बनाने की होनी चाहिए।
आप स्वयं सोचें कि आखिरी बार आपने अपनी मां को भोजन बनाते हुए कब देखा था? आपके सामने पका हुआ भोजन आ जाता है। आप उसे किसी तरह पेट तक पहुंचाने का ही कष्ट कर पाते हैं। यहां तक कि आप मां द्वारा प्रेमपूर्वक पकाए भोजन का मूल स्वाद भी नहीं चखते। हृदय से सोचें कि मां तरह-तरह के व्यंजन बनाने के लिए कितना परिश्रम करती है। उसके पाककला-कौशल द्वारा पूरे परिवार के भोजन की व्यवस्था करने में उसके उत्तरदायित्व के बारे में सोचें। कभी इस ओर भी ध्यान दें कि आपके सम्मुख बनकर तैयार भोजन कैसे व कितने समय में बना।
इसे बनाने में किन-किन सामग्रियों को कितनी मात्रा में परस्पर मिलाया गया आदि। निश्चित रूप से यह सोचने के बाद आप मां के प्रति सुंदर भावनाओं की एक संपूर्ण नई दुनिया से भर जाएंगे। कितना कुछ है जीवन में। घर व बाहर चारों ओर बहुत कुछ फैला है जो हमें जीवन के बारे में मीठी भावनाओं से उन्मुक्त करने को तैयार है। घर, इसके द्वार व रोशनदान, सूर्य का प्रकाश व चांदनी के घर में बिखरे अमूल्य रत्न, मोहिनी हवा, पक्षियों की चहचहाहट, नीले नभ का शांतिपूर्ण विस्तार, इसमें विचरते पक्षी, धरती के अंदर अपनी समृद्ध जड़ों को गहराई तक फैलाए वृक्ष-वनस्पतियां, जलवायु का आकलन करते धरती से बाहर के इनके पत्र-पुष्प-शाख व उप-शाख, जीवन को सुगम बनाती असंख्य भौतिक वस्तुएं आदि। दृष्टिकोण में थोड़ा सा भी सकारात्मक परिवर्तन हमें सुख-शांति की संवेदनाओं से परिपूर्ण करता है, जो हम जीवन से लगाव रखने के लिए स्वयं निर्मित करते हैं। इस तरह हमारा जीवन नियमित मिलने वाली नकारात्मकता से मुक्त हो जाता है।
[ विकेश कुमार बडोला ]