बाल्यावस्था के बाद मनुष्य की सोच का क्षेत्र बढ़ता जाता है। इस कारण मन में स्वाभाविक प्रक्रिया के अंतर्गत प्रश्नों की लहरें उभरने लगती हैं। जब तक समस्याओं के समाधान मिलते रहते हैं, तब तक मन की जिज्ञासा शांत रहती है, लेकिन जीवन में ऐसी समस्याएं आती रहती हैं, जिनका हल अत्यंत कठिन होता है। यही प्रश्नों को जन्म देती हैं। इनका हल न होना ही मन में अशांति को जन्म देना है। प्रश्नों व समस्याओं की लहरें दिन प्रतिदिन आती ही रहती हैं और यह बढ़ती ही जाती हैं। इसलिए यदि मस्तिष्क को अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त होती रहती है तो उस स्थिति में मन में अशांति नहीं ठहर पाती है। जीवन में अशांति का मुख्य कारण होता है। यद्यपि वह इसे कुछ समय के लिए भूलने का प्रयास करता है और इसे भूलने में सफल भी हो जाता है, लेकिन दूसरे ही क्षण समस्याएं याद आने लगती हैं और पुन: मन अशांत होने लगता है। समस्याओं को कुछ समय के लिए भूल जाना या उनसे दूर हो जाना शांति अवश्य प्रदान कर देता है, लेकिन दूसरे ही क्षण मन पहले से भी अधिक अशांत हो जाता है मस्तिष्क में समस्याओं का स्थाई समाधान ही अशांत मन को शांत करता है।
यदि समस्याएं हल होती रहती हैं तो आनंद की अनुभूति भी होती रहती है और समस्याएं समस्याओं के रूप में दिखाई नहीं देती हैं बल्कि ऐसी समस्याओं को सुलझाने में आनंद की अनुभूति होने लगती है। जब समस्याएं समस्याओं के रूप में नहीं दिखाई देती बल्कि उन्हें हल करने में आनंद की अनुभूति होती है, तो यह समझ लें कि आत्मिक ऊर्जा प्रचुर मात्रा में प्राप्त होने लगी है। यह ऊर्जा यदि एक बार मिलना प्रारंभ हो जाती है तो यह मिलती ही रहती है और मस्तिष्क को बल प्रदान करती रहती है जिससे प्रश्नों का समाधान मस्तिष्क में स्वत: होता रहता है और मन अशांति की स्थिति में नहीं पहुंच पाता है। अशांति खत्म होते ही आनंद की अनुभूति होने लगती है, लेकिन यह तभी संभव है जब मस्तिष्क को बलशाली ऊर्जा प्राप्त होती रहे। बलशाली ऊर्जा तभी प्राप्त हो सकती है जब मस्तिष्क को कुछ क्षणों के लिए ध्यान स्थिति में ले जाया जाए। इससे आध्यात्मिक ऊर्जा मस्तिष्क में प्रवेश करने लगती है जिससे अशांत मन शांत हो जाता है और इसके शांत होते ही मस्तिष्क को आनंद की अनुभूति होने लगती है।
[ वी.के. जायसवाल ]