संजय कुमार

आज से सौ वर्ष पूर्व अप्रैल, 1917 में गांधीजी के चंपारण आगमन के साथ ही भारत के आधुनिक इतिहास में एक नए अध्याय का शुभारंभ हुआ। चंपारण में किसानों के शोषण के विरुद्ध गांधीजी ने जिस सृजनात्मक संघर्ष का प्रयोग किया उसे ही ‘सत्याग्रह’ कहते हैं। सत्य, अहिंसा, प्रेम और सदाशयता पर आधारित यह प्रयोग विश्व इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को खुली चुनौती दी थी। गांधीजी ने सत्याग्रह के दौरान चंपारण में हजारों किसानों की पीड़ा जानी, कई गांवों का भ्रमण किया और अंतत: उन्हें शोषण पर आधारित तीनकठिया प्रथा से मुक्ति दिलाई। तीनकठिया व्यवस्था के अंतर्गत अंग्रेज बगान मालिकों ने चंपारण के किसानों से करार कर रखा था। किसानों को अपने कृषिजन्य क्षेत्र के एक हिस्से में नील की खेती करनी पड़ती थी।

19वीं सदी के अंतिम दिनों में जर्मनी में रासायनिक रंगों की खोज और उनके बढ़ते प्रचलन के कारण नील की मांग कम होने लगी। नील बगान मालिक चंपारण में भी अपने नील करखानों को बंद करने लगे। इस प्रकार किसानों के लिए नील का उत्पादन घाटे का सौदा होने लगा। किसान बगान मालिकों से किए गए करार को खत्म करना चाहते थे, पर मालिक उनको इस करार से मुक्त करने के लिए भारी लगान की मांग करने लगे। किसान विद्रोह पर उतर आए। जबरन नील की खेती के अलावा अंग्रेजों ने चंपारण में 42 प्रकार के अतिरिक्त कर लगाए थे। ‘बपहा-पुतहा’ जैसा कर बड़ा ही दमनकारी था। ‘बपहा-पुतहा’ कर यानी पिता की मौत के बाद उसकी जगह बेटा घर का मालिक बनता था तो उसके लिए अलग से कर था।

गांधीजी और चंपारण के बीच सेतु का कार्य स्थानीय किसान नेता राजकुमार शुक्ल ने किया था। शुक्ल 1916 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के समय बाल गंगाधर तिलक को चंपारण आमंत्रित करने के लिए लखनऊ गए थे। तिलक अस्वस्थ होने के कारण यात्र करने में सक्षम नहीं थे। मदन मोहन मालवीय की सलाह पर राजकुमार शुक्ल ने गांधीजी से संपर्क किया। कानपुर और कलकत्ता में मुलाकात के बाद गांधीजी ने चंपारण आने का शुक्ल के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और उसके बाद का घटनाक्रम इतिहास है। गांधी के चंपारण आगमन के बाद ब्रिटिश प्रशासन ने उनके खिलाफ जिला छोड़ने का आदेश जारी करने से लेकर अन्य हथकंडे आजमाए। इस सबके बाद भी सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग सफल रहा।

अंग्रेजी सरकार ने किसानों की समस्याओं की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया। गांधीजी को भी इसका सदस्य बनाया गया। आयोग की सलाह पर तीनकठिया प्रथा को समाप्त कर दिया गया और किसानों से वसूली रकम का भी 25 प्रतिशत वापस कराया गया। बिहार के लोगों के लिए गांधी देवतुल्य हो गए। गांधीजी के कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा नाम से संबोधित किया। तभी से लोग उन्हें महात्मा गांधी कहने लगे। चंपारण का प्राचीन काल से धर्म, ज्ञान-विज्ञान और राजकरण के क्षेत्र में अद्वितीय स्थान रहा है। मेगस्थनीज की यात्र वृतांत ‘इंडिका’ और वर्तमान में पश्चिमी चंपारण के नंदनगढ़ के टीले की खुदाई से आचार्य चाणक्य, चंद्रगुप्त और नंदवंश के संबंध का अनुमान चंपारण से लगाया गया है।

बौद्धकाल में भी चंपारण की महत्ता काफी थी। वैदिक साहित्य में भी चंपारण की जीवनरेखा सदानीरा नदी का उल्लेख है जिसे आज गंडक नदी के नाम से जानते हैं। चंपारण सत्याग्रह की सफलता से स्वतंत्रता संघर्ष में नई ऊर्जा का संचार हुआ। एक दिशा तय हुई, नामी-गिरामी वकीलों तथा अन्य लोगों ने अपने व्यवसाय को छोड़कर बाद में स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता बने। बिहार के प्रथम श्रेणी के वकील जैसे- बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद, रामनवमी प्रसाद, राजेंद्र प्रसाद और धरणीधर बाबू आदि सभी गांधी के करीब आते गए। चंपारण सत्याग्रह से ही अंग्रेजों के विरुद्ध एक निर्धारित रणनीति और उद्देश्य मिला जो खेड़ा और अहमदाबाद में और परिपक्व हुआ।

गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह के साथ-साथ समाज में व्याप्त कुरीतियों पर भी प्रहार किया। जाति-वर्ग, संप्रदाय में भेद किए बिना सबका भोजन एक ही रसोईघर में बनता था। सामाजिक सुधार का यह प्रयोग भविष्य में स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने में सहायक बना। गांधीजी ने स्वच्छता और महिला सशक्तीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। इसके लिए उन्होंने कस्तूरबा गांधी के नेतृत्व में अनेक रचनात्मक कार्य किए। भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के मूल में चंपारण सत्याग्रह ही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी है कि चंपारण सत्याग्रह के दो लक्ष्य थे-आजादी और सफाई।

चंपारण से जगी चेतना से आजादी तो मिल गई पर स्वच्छ भारत का निर्माण अभी बाकी है। जाहिर है कि स्वच्छता का लक्ष्य हासिल करना शताब्दी वर्ष के अवसर पर बापू के प्रति कृतज्ञता होगी।