क्रोध एक मनोभाव है और यह लगभग हर व्यक्ति को चपेट में लेता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि क्रोध जब हमारे नियंत्रण में नहीं रहता है तो यह विनाशकारी हो जाता है और तब यह हमारे जीवन को हर तरह से प्रभावित करता है। एक निश्चित सीमा में रहकर क्रोध करना मनुष्य के अस्तित्व की रक्षा के लिए आवश्यक है। हालांकि क्रोध को दर्शाने का सबसे स्वस्थ तरीका यही है कि आक्रामक हुए बगैर अपने क्रोध के भाव को दृढ़तापूर्वक अभिव्यक्त करना। इसका मतलब यही हुआ कि आप अपने व्यवहार में संयम बरतें। आप क्रोध दिलाने वाले कारणों से छुटकारा नहीं पा सकते, लेकिन क्रोध आने पर आप अपनी उग्र प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण जरूर कर सकते हैं। महात्मा बुद्ध कहते हैं कि मैंने पाया कि अद्भुत हैं वे लोग जो दूसरों की भूल पर क्रोध करते हैं। अद्भुत इसलिए कि भूल दूसरा करता है और दंड वे स्वयं को देते हैं। मैं आपको गाली दूं और आप क्रोधित होंगे। आप क्रोध में जलते हैं, राख होते हैं, लेकिन ध्यान इस ओर नहीं जाता है। क्रोध में व्यक्ति को कुछ नहीं सूझता है और वह अपना होश खो बैठता है।
शास्त्रों में क्रोध की तुलना अग्नि से की गई है। यानी अग्नि का कार्य जलाने का है वैसे ही क्रोध मनुष्य को जला देता है। महात्मा बुद्ध कहते हैं कि जो लोग काम, क्रोध और ईर्ष्या का त्याग कर देते हैं वे निर्वाण पाते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार क्रोध पर नियंत्रण पाने के कई उपाय हैं। इनमें से एक उपाय है कि जब आपको क्रोध आए तो उस व्यक्ति को धन्यवाद दें, जिसकी वजह से आपको क्रोध आया। ऐसा इसलिए, क्योंकि उसने आप पर कृपा की कि आपको आत्मनिरीक्षण का मौका दिया। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार उस व्यक्ति को यह कहकर आप वहां से चले जाइए कि मित्र धन्यवाद अपने क्रोध पर ध्यान केंद्रित करके मैं कुछ समय बाद लौटता हूं। इसके बाद आप अपने को एक कमरे में बंद कर लें। आपको भयंकर क्रोध आ रहा है तो उसे आने दें। आपके हाथ-पैर-छाती तन रही है तो इन्हें तन जाने दें। इस बीच जो हो रहा है उसे रोकें नहीं, बल्कि प्रकट होने दें। यही है क्रोध। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट हो जाता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
[ आचार्य अनिल वत्स ]