पेरिस में हुए भयावह आतंकी हमले के फलस्वरूप जहां सवा सौ से अधिक निर्दोष लोग मारे गए वहीं सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए। इस हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने इसे पहली आंधी बताते हुए फ्रांस को वेश्यावृत्ति और अश्लीलता की राजधानी बताया है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने इसके प्रत्युत्तर में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ बिना किसी दयाभाव के बदला लेने की बात कही है। संभावना है कि आगामी कुछ सप्ताह में फ्रांस आइएस के अद्र्धशासित क्षेत्रों में संगठित सैन्य और खुफिया अभियानों के माध्यम से अपने हमलों में और तेजी लाएगा। यह भी माना जा रहा है कि तुर्की में जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में सभी सदस्य देशों ने फ्रांस को अपना सहयोग-समर्थन देने की पेशकश की। इस दौरान इस पर भी ध्यान दिया जाएगा कि मास्को भी इन आतंकी हमलों से पीडि़त है। अभी कुछ दिन पहले ही एक रूसी यात्री विमान मिस्न के शर्म-अल-शेख से उड़ान भरने के थोड़ी देर बाद ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हालांकि इस मामले में आइएस का हाथ होने का स्पष्ट सुबूत मिलना अभी भी शेष है, लेकिन रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन ने पीडि़तों से वादा किया है कि उन्हें न्याय मिलेगा और इसके लिए दोषी लोगों को दंडित किया जाएगा।

पेरिस आतंकी हमले अथवा 13/11 की घटना का सबसे गहरा प्रभाव राजनीति और यूरोप के सामाजिक संबंधों या ताने-बाने पर पड़ेगा। यह प्रभाव विशेषकर पश्चिम एशिया से यूरोप में पहुंच रहे वर्तमान शरणार्थियों पर होगा। यूरोप के विभिन्न हिस्सों में पहुंच रहे मुस्लिम अप्रवासियों के प्रति लोगों के गुस्से और घृणा का अनुमान इटली के अखबारों में छप रही खबरों से भी लगाया जा सकता है। पेरिस हत्याकांड की रिपोर्टिंग करते हुए इटली के एक दक्षिणपंथी दैनिक अखबार-द लिबेरो ने बहुत ही कठोर शीर्षक लगाया है और यह लोगों में बढ़ रहे गुस्से अथवा रोष का एक उदाहरण है, जो यूरोप के एक बड़े हिस्से में भी अब प्रतिध्वनित होता दिख रहा है। यहां की स्थानीय आबादी के बीच मुस्लिम अप्रवासियों और अब सीरियाई शरणार्थियों के प्रति असंतोष बढ़ रहा है। यहां तक कि फ्रांस में भी दक्षिणपंथी लोगों का रुख अब अधिक कटु है ओर नेशनल फ्रंट के नेता मैरीन ली पेन ने मांग की है कि पेरिस अपनी सीमाओं पर वापस बंदिश लगाए और फ्रांस के सभी इस्लामिक संगठनों को प्रतिबंधित करे। बाहरी अज्ञात लोगों के प्रति कड़ा रुख रखने वाले ली पेन ने कथित रूप से कट्टरता को बढ़ावा देने वाले धर्मस्थलों को बंद करने और घृणा का प्रसार करने वाले विदेशियों तथा सभी अवैध अप्रवासियों को निष्कासित करने की मांग की है। इस क्रम में अंतिम मांग यह है कि वैसे फ्रांसीसी मुस्लिम नागरिकों जिन्होंने फ्रांसीसी नागरिकता के साथ अपनी दोहरी राष्ट्रीयता की पहचान बरकरार रखी है, उन्हें निर्वासित किया जाए, लेकिन सवाल है कि कहां?

फ्रांस में अलग-अलग समूहों के करीब पचास लाख मुस्लिम रहते हैं। इनमें से एक बड़ी संख्या ऐसे मुस्लिम युवाओं की है जिनका जन्म फ्रांस में ही हुआ है। फिर उन्हें कहां वापस भेजा जा सकता है? कुल मिलाकर आज फ्रांसीसी लोगों की मनोदशा गुस्से वाली है और इस क्रम में तर्क और न्याय पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यह भावना केवल फ्रांस और जर्मनी तक सीमित नहीं है। जर्मनी में चांसलर एंजेला मर्केल एक उदारवादी नीति पर चलती रही है। उनके विरोधी भी बेचैनी दिखा रहे हैं। वे खतरा जता रहे हैं कि अगला जिहादी हमला जर्मनी में हो सकता है। यूरोप वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के परिप्रेक्ष्य में कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। यूरोपीय संघ में असंतोष के अनेक स्वर सुनाई दे रहे हैं। इस परिदृश्य में विदेशी बहुत आसानी से असंतोष का निशाना बन जाते हैं। इसके चलते घृणा फैलाने वाले तत्वों और आक्रामक राष्ट्रवाद के बीच तनाव बड़े ही खतरनाक रूप से सतह पर आ जाता है। क्या यूरोप की राजनीति और आइएस सरीखे आतंकी संगठनों की विचारधारा तथा उसके समर्थकों के कारण उभरे संकट से निपटा जा सकता है। फिलहाल तो इसकी संभावना कम नजर आती है, क्योंकि चुनौती बहुत बड़ी है। आइएस इस्लाम के नाम पर दुष्प्रचार करने और घृणा फैलाने में जुटा हुआ है। आइएस ने अपने जिहाद को इस्लामिक आस्था पर आघात से जोड़ दिया है। अलग-अलग यूरोपीय देशों में खुले सामाजिक-राजनीतिक वातावरण के खिलाफ जिहादी भावना को खड़ा कर दिया गया है। फ्रांस इस मामले में एक विशिष्ट उदाहरण है।

फ्रांस अपने उपनिवेशवादी समय से ही अलग-अलग धर्मों, जातियों और नस्लों के साथ साझा तरीके से रहने का आदी रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों से यूरोप के तमाम हिस्सों में मुस्लिम समुदाय खुद को अलग-थलग महसूस करने लगा है। मुस्लिम समुदाय अपवाद का प्रतीक बन गया है और शरणाथियों का मौजूदा प्रवाह अब एक और बड़े आतंकी हमले के बाद इस भावना को और अधिक मजबूत करेगा। जी-20 सम्मेलन में भी पेरिस हमले पर गहन विचार-विमर्श किया गया। राजनीतिक स्तर पर इस मामले में विएना में विदेश मंत्रियों की बैठक में भी चर्चा होगी। पेरिस पर हमला करने वाले एक आतंकी के शव के पास जिस तरह सीरियाई पासपोर्ट पाया गया उससे पश्चिम एशिया और अफ्रीका की अशांति और यूरोप में सुरक्षा और स्थिरता के बीच सीधे संबंध की एक झलक मिलती है। यूरोप ही नहीं पूरी दुनिया को इस विकराल समस्या के ठोस समाधान की राह तलाशनी होगी, क्योंकि पेरिस की घटना ने आतंकवाद की भयावहता का फिर से अहसास करा दिया है।

[लेखक सी. उदयभाष्कर, सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं और इंस्टीट्यूट फार डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसेस के निदेशक रहे हैं]