जब किन्हीं दो पक्षों के बीच आपसी विवाद उठ खडा होता है तो उस विवाद को हल करने का एकमात्र तरीका होता है समझौता। समझौते में यह तय किया जाता है कि हम आपसी लड़ाई-झगडे़ भूलकर शांतिपूर्वक रहेंगे। ऐसा समझौता किसी विवाद का अंत करने के लिए होता है। इसमें दोनों पक्षों को दबकर या अपनी मांगें घटाकर एक-दूसरे के साथ रियायत भी करनी पड़ती है। समझौता अलिखित या मौखिक भी हो सकता है और लिखित भी। लिखित समझौता ही कानूनी क्षेत्र में संविदा कहलाता है। समझौता करने के बहुत सारे फायदे हैं और समझौता न करने के बहुत बड़े नुकसान भी होते हैं जो हमें ही नहीं पूरे देश और समाज को भुगतने पड़ते हैं। इसका एक उदाहरण हम श्रीरामचरित मानस से और एक उदाहरण महाभारत से ले सकते हैं। श्रीरामचरित मानस के किष्किंधा कांड में हनुमानजी ने श्रीराम से कहा था कि हे नाथ सुग्रीव से मित्रता कीजिए और उसे दीन जानकर निर्भय कर दीजिए। वह सीताजी की खोज करवाएगा वह जहां-तहां करोड़ों वानरों को भेजेगा। इस समझौते के निहितार्थ को समझकर और इस पर अमल पर भगवान श्रीराम ने सुग्रीव से समझौता कर लिया। सुग्रीव ने निर्भय होकर वानरों की सेना लेकर सीताजी की खोज की और रावण के साथ युद्ध में श्रीराम का साथ दिया। इस समझौते से दोनों पक्षों का फायदा हुआ।
इसी तरह का एक उदाहरण हम महाभारत से ले सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण पांडवों की तरफ से शांति दूत बनकर दुर्योधन की सभा में गए। उन्होंने दुर्योधन को बहुत समझाया, बार-बार समझौते की बात कर युद्ध को टालने का भरसक प्रयास किया, पर दुर्योधन तो अहंकार में अंधा हो गया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि तुमने समझौता नहीं माना इसलिए अब तो युद्ध होना तय है। समझौता होना बहुत अच्छी बात है, पर शर्त यह है कि समझौता करने की लालसा दोनों पक्षों में हो। एक पक्ष समझौता करना चाहता है, लेकिन दूसरा पक्ष यदि अहंकारी है तो समझौता कभी नहीं हो सकता। यदि समझौता करने में हमारे चरित्र, स्वाभिमान को ठेस पहुंचती है तो समझौता कभी भी नहीं करना चाहिए। जिस समझौते से घर, परिवार, समाज और देश के लोगों का अहित हो रहा हो, ऐसा समझौता कभी न करें। जिस समझौते से व्यक्ति समाज देश का कल्याण हो, ऐसे किए गए समझौते हमेशा याद किए जाते हैं और याद किए जाते रहेंगे।
[ बरजोर सिंह ]