आधार दुनिया में सबसे बड़ा अनूठा डिजिटल पहचान प्रोग्राम है। इसने भारत को विश्व में इतने कम समय में ही एक ऐसा डाटा संपन्न देश बना दिया है जिसका हर निवासी डिजिटल पहचान से सशक्त है। इससे देश सुदृढ़ और समृद्ध होने के साथ ही भ्रष्टाचार से भी मुक्त होने की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है। भारत ने आधार कार्यक्रम को सुशासन और अपने गरीब तथा वंचित लोगों के सशक्तीकरण और उनकी सेवा के लिए विकसित किया है। अन्य देशों में बायोमीट्रिक पहचान कार्यक्रम मुख्य तौर पर सुरक्षा जैसे सीमा प्रबंधन दिन के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, जबकि आधार उनसे एकदम भिन्न पहचान प्रोग्राम है। यहां मुझे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की याद आती है जिन्होंने कहा था कि केंद्र से भेजे गए एक रुपये में से सिर्फ 15 पैसे ही लोगों तक पहुंच पाते हैं।

नरेंद्र मोदी सरकार ने आधार के जरिये यह सुनिश्चित किया है कि सरकार द्वारा भेजा गया हर रुपया पूरा का पूरा सीधे करोड़ों लोगों के बैंक खातों में पहुंचे। आधार के जरिये प्राप्त सेवाओं और बैंक खातों में सीधे सब्सिडी का पैसा पाने से करोड़ों गरीब और अन्य तबके के लोग प्रसन्न हैं। इसने देश के गरीब और वंचित लोगों के वित्तीय समावेशीकरण का भी काम किया है और उन्हें मुख्यधारा में लाया है। इसने पांच करोड़ से भी ज्यादा लोगों को बैंक खाते खोलने में मदद की है। अब तक 43 करोड़ से भी अधिक लोगों ने अपने आधार को अपने बैंक खातों से जोड़ दिया है और वे सरकारी लाभ या सब्सिडी सीधे अपने बैंक खाते में प्राप्त कर सकते हैं। आधार प्रोग्राम की शुरुत 2009 में संप्रग द्वारा की गई थी, पर इसके बीज भाजपा सरकार द्वारा 2003 में ही बो दिए गए थे। बहरहाल शुरुआती वर्षो में आधार को आलोचना का सामना करना पड़ा।

आलोचना के कई मसले थे जैसे-आधार का इस्तेमाल किस उद्देश्य के लिए किया जाएगा और किसके लिए नहीं, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीर) बनाम आधार, नागरिकता, डाटा की हिफाजत और निजता के उपायों का अभाव दिखा। जब 2014 में राजग सरकार आई तो उसने तुरंत इनका हल निकालना शुरू किया और आखिरकार 2016 में आधार अधिनियम लेकर आई। इस कानून में स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है कि किन उद्देश्यों के लिए आधार का इस्तेमाल किया जाएगा और कहां इसका इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।1113 करोड़ से भी अधिक लोगों ने आधार के तहत अपना पंजीकरण करा लिया है। वयस्क आबादी के 99 फीसद से भी ज्यादा लोगों के पास आधार है। सरकार ने आधार के इस्तेमाल की शुरुआत पीडीएस, पहल, मनरेगा, पेंशन, स्कॉलरशिप आदि कार्यक्रमों से की थी। अब इसका विस्तार लगभग 100 कल्याण कार्यक्रमों तक कर दिया गया है। इस तरह यह सुनिश्चित किया गया है कि सरकारी लाभ सिर्फ वांछित लोगों को मिले और बेईमान बिचौलियों द्वारा इसे हड़पा न जा सके। इसने परिणाम देना भी शुरू कर दिया है।

आधार ने मनरेगा, पहल, स्कूलों, पीडीएस आदि कार्यक्रमों में करोड़ों फर्जी लाभार्थियों को हटाकर ढाई साल से भी कम वक्त में 49 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा रकम की बचत की है। विश्व बैंक ने गत वर्ष अपनी डिजिटल डिविडेंड रिपोर्ट में कहा था कि अगर भारत सरकार की तमाम योजनाओं में आधार का इस्तेमाल किया जाए तो हर साल 11 अरब डॉलर की बचत की जा सकती है। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री पॉल रोमर ने कहा है, ‘अगर इसे व्यापक रूप से अपनाया जा सके तो यह दुनिया के लिए अच्छा होगा।’ आधार संबद्ध भुगतान प्रणाली ने बैंकिंग सेवाओं को देश के उन ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में पहुंचाया है जहां बैंकों की शाखाएं या एटीएम नहीं हैं। यह अब कैशलेस पेमेंट का भी जरिया बन गया है। सरकार ने विश्व को चकित कर देने वाला भीम-धार पे ऐप जारी किया है जिसके माध्यम से मात्र अंगूठा लगाकर वे लोग भी कैशलेस पेमेंट कर सकते हैं जिनके पास डेबिट कार्ड या मोबाइल नहीं है या जिन्हें डिजिटल पेमेंट के अन्य तरीकों की जानकारी नहीं है।

जीवन प्रमाण पत्र, डिजिटल लॉकर, एनपीएस खाता खोलने के लिए ई-हस्ताक्षर, पैन कार्ड और पासपोर्ट हासिल करने जैसे चंद उदाहरण हैं जहां आधार ने इन सेवाओं तक लोगों की पहुंच आसान बनाई है। आधार ने हालांकि शानदार परिणाम दिए हैं, लेकिन इसके आलोचकों द्वारा कई प्रकार की भ्रांतियां और भ्रम फैलाए जा रहे हैं। इनमें से एक भ्रम यह है कि आधार को मध्याह्न् भोजन, मनरेगा, पीडीएस जैसे कई कार्यक्रमों में अनिवार्य कर दिया गया है और इससे गरीबों को लाभों और सेवाओं से वंचित किया जा रहा है। यह सफेद झूठ है। आधार अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी को भी आधार नहीं होने की वजह से सेवाओं या लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति ने आधार के लिए पंजीकरण नहीं कराया है तो उसे उसकी सुविधा दी जाएगी और जब तक आधार उपलब्ध नहीं करा दिया जाता उसे पहचान के वैकल्पिक तरीकों के जरिये लाभ, सब्सिडी या सेवा मुहैया कराई जाएगी।

आलोचक यह भी कहते हैं कि अधिक उम्र के लोगों और शारीरिक श्रम करने वालों को सरकारी लाभ से वंचित किया जा रहा है, क्योंकि उनकी अंगुलियों के निशान जीर्ण हो जाने कारण मैच नहीं करते हैं। मैं साफ कर दूं कि धार 12 तरीकों से मैच करने की सुविधा देता है। एकदम विरले मामलों में जब कोई भी तरीका काम न करे तो विभागों से कहा गया है कि वे पहचान के वैकल्पिक तरीकों को जमाएं। यह भी सच्चाई है कि आधार नागरिकता की पहचान के लिए मान्य नहीं है। अवैध रूप से देश में घुस गए ऐसे किसी भी व्यक्ति के एक बार आधार की जद में जाने पर उसकी सुविधाएं बंद कर उस पर कानूनी कार्रवाई करना आसान हो जाएगा। आधार प्रणाली के डिजाइन में प्राइवेसी और सुरक्षा मूल तत्व हैं। इसको इस तरह से बनाया गया है कि किसी व्यक्ति की सिर्फ न्यूनतम सूचना ली जाती है और आधार संख्या में कोई गोपनीय सूचना दर्ज नहीं की जाती है।

आधार अधिनियम निवासियों की जाति, धर्म, चिकित्सकीय रिकॉर्ड आदि से जुड़ी कोई सूचना एकत्र करने की इजाजत नहीं देता है। इसके अलावा आधार अधिनियम की धारा-29 इस बात की एकदम मनाही करता है कि एकत्र की गई बायोमीट्रिक जानकारी का इस्तेमाल आधार बनाने और अधिकृत करने के अतिरिक्त अन्य किसी उद्देश्य से किया जाए। इसका उल्लंघन करने वालों पर मुकदमा चलेगा और तीन साल की जेल की सजा मिलेगी। परिणामस्वरूप पिछले सात सालों में यूइडीएइ से डाटा उड़ाने या लीक होने की एक भी रिपोर्ट सामने नहीं आई है।जाहिर है कि आधार ने खुद को एक सुरक्षित, भरोसेमंद और सुविधाजनक डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में स्थापित कर लिया है।

यह न केवल सवा सौ करोड़ भारतीयों की जिंदगी को सशक्त और बेहतर बनाएगा, बल्कि सुशासन और डिजिटल क्रांति के सूत्रधार की तरह एक नए उन्नत, सशक्त, सुदृढ़ और सक्षम भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हुए सरकार के संकल्प ‘सबका साथ, सबका विकास’ से भारत को एक सच्ची डिजिटल क्रांति की ओर ले जाएगा।(लेखक रविशंकर प्रसाद- केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री हैं)