दर्पण है आचरण
मनुष्य संपूर्ण सुख-शांति और समृद्धि तभी पा सकता है जब वह अपने लिए जैसा चाहता है वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करे। जब हम आचरण को ही दर्पण मानकर अपना परिष्कार करेंगे तब हममें मानवता से एक कदम आगे देवत्व के गुण विकसित होने लगेंगे। जो इस राह पर चले वे महामानव बनकर अमर हो गए। जितने भी सद्गुण हैं वे सभी हमें मानवता के मार्ग से होते हुए देवत्व की ओर ले जाते हैं। समझदारी, बहादुरी, ईमानदारी और जिम्मेदारी वे चार मजबूत स्तंभ हैं जो हमारे अस्तित्व को कलुषित होने से बचाते हैं। आज के युग में अनेक बाधाओं से गुजरते हुए मनुष्य यदि अपने आपको तमाम दुर्गुणों से बचा ले गया तो यह भी उसके लिए एक उपलब्धि है। जो बातें अब से हजारों साल पहले चलन में थीं, लोगों के आचरण में थीं वे अब असाधारण हो गई हैं। इसका कारण यह है कि हम इनसे दूर होते चले गए और आचरण में न ला सके। हम स्वयं तो गलत आचरण करते हैं और अपने बच्चों और साथियों से अच्छे आचरण की अपेक्षा करते हैं, यह कैसे संभव होगा? ऐसी स्थिति में जब तक हम श्रेष्ठ आचरण के मार्ग पर नहीं चलेंगे तब तक हमसे जुड़े लोग भी उसका अनुसरण नहीं करेंगे। आज के समय में व्यक्ति श्रेष्ठ आचरण के नियमों का अपने स्वार्थ के लिए पूरी तरह उल्लंघन कर रहा है और श्रेष्ठ जीवन मूल्यों को नजरअंदाज कर रहा है। आदर्शो को आचरण में उतारना कोई कठिन कार्य नहीं है, जरूरत है सिर्फ समझदारी और ईमानदारी की। यह कोई कहने और सिखाने की बात नहीं है, बल्कि यह मनुष्य का जन्मजात गुण होता है। फिर भी मनुष्य अपने पथ से भटक जाता है। अच्छाई की जानकारी होना और आचरण में लाना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। संपूर्ण मानव बनने की पहली सीढ़ी है स्वयं के आचरण में सुधार। जब हम सुधरेंगे तभी हम दूसरों को सुधार सकते हैं। अन्यथा हमारी वाणी में वह शक्ति नहीं होगी जो दूसरों को प्रभावित कर सके। ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ संरचना मनुष्य ही है, इसीलिए उसकी भी अपेक्षाएं अपने अनन्य से होना स्वाभाविक है। हमें अपनी पात्रता विकसित करनी है, प्रभु का अनुदान अनवरत बरस रहा है।
[डॉ. राजेन्द्र दुबे]
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