कुंडलिनी रहस्य
ऊर्जा कुंडलिनी रहस्य साधक के लिए कुंडलिनी और उसका जागरण सदा जिज्ञासा का विषय रहा है। यह शक्ति और सर्वोच्च वैश्रि्वक ऊर्जा है, जिसे शिवसूत्र में परब्रह्मा की इच्छा शक्ति उमा कुमारी कहा गया है। शरीर में 72000 नाड़ियां होती हैं। इनमें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना प्रधान हैं। ये मेरुदंड या रीढ़ के बीच में स्थित होकर संपूर्ण नाड़ी तंत्र एवं तन को नियंत्रित करती हैं। इसी के नीचे मूलाधार चक्र में तीन इंच लंबी कुंडलिनी चक्र रूप में स्थित रहती है। सुषुम्ना के अंदर भी चित्रिणी नामक एक नाड़ी है। कुंडलिनी जागृत होने पर इसी चित्रिणी के अंदर से सीधी होकर ऊपर को जाकर शिवस्थान पर पहुंचती है। साढ़े तीन चक्र मारे बैठी कुंडलिनी जागरण के विविध उपाय हैं तथा उत्कट भक्ति, यौगिक क्रियाएं, मंत्र, जप, गुरु द्वारा शक्तिपात आदि। कुंडलिनी जागृत होने पर पूर्व कर्मो के प्रभाव बाहर आ जाते हैं तथा व्यक्ति असामान्य आचरण करने लगता है। योग्य गुरु की सहायता बिना कुंडलिनी जागरण की कोशिश खतरनाक सिद्ध हो सकती है। इस योगिक क्रिया में प्रारंभ में तंद्रा सी अनुभूति होती है, लेकिन वह स्वप्नावस्था नहीं होती है। वह जागृत होकर उपरिगामी होती है और सुषुम्ना के छह चक्रों-मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा का भेदन करती है। आज्ञा चक्र दोनों भौहों के बीच का स्थान है जिसे त्रिपुटी भी कहते हैं। तदनंतर नाद और बिंदु उसका गंतव्य है। बिंदु सहस्नों ग्रंथियों वाला सहस्नार है, जहां त्रिकोण में परमशिव विराजमान हैं। वहां कुंडलिनी के पहुंचने पर सहस्नों सूर्यो का शीतल नीला प्रकाश दर्शित होता है। साधक परमानंद में डूब जाता है। मानव मात्र के लिए किसी भी लौकिक सुख के ऊपर ब्रह्मानंद होता है, जो उसे कुंडलिनी जागरण से प्राप्त होता है, तब वह धन्य हो जाता है। ऐसा आत्मज्ञानी व्यक्ति जीवनमुक्त होकर ब्रह्मा से तादात्म्य करता है और इसके फलस्वरूप वसंत ऋतु के समान लोकहित करता हुआ दूसरों को भी तारता रहता है।
[रघोत्तम शुक्ल]
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