अध्यात्म का रहस्य
आध्यात्म ही जीवन का मूल है। आध्यात्म की पराकाष्ठा चिंतन, मनन, सृजन, चेतनता, पर निर्भर करती है। हम अपने जीवन में संपूर्ण विधाओं को एक नया आयाम देते हैं तथा उस मूलबिंदु से परम शाश्वत सत्य की ओर उन्मुख होते हैं। अध्यात्म की शुरुआत वहीं से प्रारंभ होने लगती है। जीवन को जगाने की प्रक्रियाओं में जिज्ञासा का प्रादुर्भाव होना एवं उपासना की ओर अग्रसर होना, साधना में प्रवृत्त हो जाना अध्यात्म तक पहुंचने का क्रम है। जीवन के अनूठे क्रिया-कलापों में निरंतर परिवर्तन प्रकृति की कार्य विधाओं पर निर्भर करता है। स्वाध्याय चेतना को जागृत करता है और आत्मा को परमात्मा की विधाओं में समाहित करने के लिए प्रेरित करता है। परमतत्व का साकार स्वरूप निराकार की उपासना से ही प्राप्त होता है। जीवन की मौलिक विधियों में ब्रšांड की शक्तियों का मूलत: समावेश है, क्योंकि जहां तक हमने साधना के क्रम में यह अनुभव किया है कि मानव मात्र का जीवन एवं पंचमहाभूत तत्व से बना शरीर पूर्णरूपेण ब्रह्मांड है। यह भी शाश्वत सत्य है कि जब हम पंचमहाभूत तत्व में आते हैं तो हमारे साथ हमारी हर विधाओं में माया लिप्त होती है। माया का अर्थ है 'नहीं', क्योंकि इसका कोई अस्तित्व नहीं होता है। जो अस्तित्वविहीन है हम उसी को श्रेष्ठ समझ कर उसके द्वारा प्रेरित अपनी संपूर्ण कार्यप्रणालियों को साकार मान बैठते हैं। हमें जो भी प्रेरणा मिलती है वह आत्मचेतनाओं के ऊपर निर्भर करती है। हमारा शरीर असीम शक्तियों का पुंज है, जिसकी ऊर्जा निरंतर प्रवाहित होती रहती है, परंतु हम उसे समझ नहीं पाते। ब्रह्मा और शक्ति स्वरूप क्या है? आत्मचिंतन से प्राप्त करने की उत्कंठा ब्रह्मा है और उसे तत्व में स्थापित करने की जो विधा है वह शक्ति है। हम ब्रह्मा और शक्ति के रहस्यों को समझ नहीं पाते हैं और उसकी खोज में लगे रहते हैं। सूर्य की एकात्मकता स्वयं उसकी किरणों का प्रवाह ब्रह्मांड और शक्ति के स्वरूप में है, जो शाश्वत सत्य है। इन सभी रहस्यों को हम तभी जान पाते हैं जब हमारे अंदर चैतन्यता आ जाती है।
[संत दिवाकरजी महाराज]
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