बुरे हाल में बलूचिस्तान
ऐसा लगता है कि फ्रांस के आकार वाले बलूचिस्तान में बलूच जनता के लिए सबसे बुरे दिन अभी आने वाले हैं। इ
ऐसा लगता है कि फ्रांस के आकार वाले बलूचिस्तान में बलूच जनता के लिए सबसे बुरे दिन अभी आने वाले हैं। इसकी एक झलक पिछले शुक्रवार को दिखाई दी जब सुरक्षा बलों ने महिलाओं के खिलाफ दो कार्रवाइयां कीं। पहली, पाकिस्तान की व्यावसायिक राजधानी कराची में और दूसरी, ईरान के साथ लगती सीमा पर बसे शहर मांड में। ये घटनाएं चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के पाकिस्तान दौरे के तीन दिनों बाद ही हुईं। शुक्रवार की घटनाएं साफ बताती हैं कि पाकिस्तानी सरकार और रावलपिंडी में सेना मुख्यालय ग्वादर बंदरगाह को चीनियों को सौंपने के बलूची विरोध से बहुत ही परेशान हैं और बलूच असंतोष को कुचल देने पर आमादा है, क्योंकि उन्हें डर है कि अगर वे बलूच लोगों को शांत नहीं कर पाए तो अरबों डॉलर उनके हाथ से फिसल जाएंगे। आजाद विचारों की मुखर समर्थक 40 साल की सबीन महमूद की शुक्रवार रात कराची में गोली मारकर हत्या कर दी गई। इससे पहले उन्होंने दक्षिणी पश्चिमी प्रांत में रहस्यमय ढंग से गायब हुए लोगों की त्रासदी को सामने लाने के लिए अनसाइलेंसिंग बलूचिस्तान नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। करीब आठ साल पहले महमूद ने गंभीर मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए कराची के पॉश रक्षा क्षेत्र में सेकेंड फ्लोर या टी 2 एफ नाम के एक सामुदायिक केंद्र की स्थापना की थी। खबरों में बताया गया है कि एक मोटरसाइकिल पर सवार दो बंदूकधारियों ने उन्हें गोली मार दी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। उनकी मां महनाज फाजिल भी इस हमले में घायल हो गईं।
गोली मारे जाने से कुछ ही पहले किए गए उनके अंतिम ट्वीट में अनसाइलेंसिंग बलूचिस्तान कार्यक्रम की चर्चा की गई थी और इसमें शामिल चार लोगों के नाम बताए गए। ये सभी पाकिस्तान में बलूच जनता के बीच खासे प्रतिष्ठित हैं। मामा कदीर और फरजाना मजीद एक संगठन वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स के क्रमश: अध्यक्ष और महासचिव हैं। कदीर बलूच रिपब्लिकन पार्टी के प्रवक्ता रहे जलील रेकी के पिता हैं। रेकी को जबरन गायब कर दिया गया था और उनकी हत्या कर उनके शव को फेंक दिया गया था। फरजाना मजीद बलूच जाकिर मजीद की बहन हैं जो 8 जून, 2009 को गायब हो गए और उनके बारे में अब भी कोई जानकारी नहीं है। बलूचिस्तान में जबरिया गायब कर दिए गए लगभग 20,000 लोगों के दुख-दर्द की तरफ ध्यान दिलाने के लिए ये दोनों वीबीएमपी नेता अन्य बलूच कार्यकर्ताओं के साथ क्वेटा से कराची और फिर कराची सैन्य अत्याचारों के खिलाफ 1973-77 के बलूच विद्रोह के गुरिल्ला नेता रहे हैं और बलूचिस्तान के स्वनिर्णय के अधिकार की मांग उठाने के लिए प्रसिद्ध हैं। वह पूर्व रक्षामंत्री मीर अली अहमद तालपुर के बेटे हैं।
अनसाइलेंसिंग बलूचिस्तान कार्यक्रम मूल रूप से लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेस में करने की योजना थी, लेकिन पाकिस्तानी और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने खबरें दीं कि आइएसआइ प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल रिजवान अख्तर के कथित निर्देश के बाद कार्यक्रम रद कर दिया गया। पिछले महीने मामा कदीर और फरजाना मजीद को भी न्यूयार्क जाते वक्त कथित रूप से आइएसआइ के आदेश पर जिन्ना एयरपोर्ट पर रोक लिया गया था। इस महीने की शुरुआत में एलयूएमएस में कार्यक्रम रद किए जाने की तरह महमूद की हत्या का आदेश भी आइएसआइ प्रमुख से सीधे ही आया हुआ हो सकता है। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी नृशंसता के खुले आलोचक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक मुहम्मद हनीफ ने द न्यूयार्क टाइम्स से कहा कि बलूचिस्तान समस्या इतनी बड़ी है और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियां इतनी उन्मादी हैं कि वे एक कमरे में बैठे लोगों को भी बातचीत की अनुमति नहीं देंगी, किसी टीवी चैनल या अखबार की तो बात ही छोड़िए। मीर तालपुर ने अखबार से कहा कि यह बिना किसी उद्देश्य के किया गया काम नहीं है, बल्कि यह पेशेवर तरीके से किया गया है। बलूच की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे नेताओं के अनुसार पाकिस्तानी सेना, आइएसआइ, सैन्य गुप्तचर और फ्रंटियर कॉर्प्स युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध कर रहे हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे मानवाधिकार संगठन उन पर बलूचिस्तान में कुख्यात ढंग से मारो और फेंक डालो की नीति अपनाने का आरोप लगाते हैं।
ईरान सीमा पर स्थित सुदूरवर्ती मांड शहर में शुक्रवार सुबह हुई दूसरी घटना में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने मार डाले गए एक बलूचिस्तानी स्वतंत्रता सेनानी के घर पर छापा मारा और उनकी विधवा सलमा बलोच के बारे में पूछा। एक दैनिक अखबार के अनुसार महिला सैनिकों के साथ आए सैनिक दो बख्तरबंद गाड़ियों में थे। उन लोगों ने बलूच नेशनल मूवमेंट (बीएनएम) के मार डाले गए अध्यक्ष गुलाम मोहम्मद बलूच के घर में उत्पात मचाया और वहां महिलाओं और बच्चों के साथ बदसलूकी की। उन्होंने पूछा कि उनकी विधवा कहां हैं और धमकी दी कि वे अधिकारियों के सामने आकर आत्मसमर्पण करें। सैनिकों ने महिलाओं से कहा कि तुम्हारा घर बलूच स्वतंत्रता संग्रामियों का शिविर है और तुम लोग वस्तुत: खराब लोग हो, जो किसी तरह की मुरव्वत के हकदार नहीं हैं।
सलमा बलूच बीएनएम की केंद्रीय नेता हैं। जिस वक्त छापा मारा गया उस वक्त वह घर पर नहीं थीं। बीएनएम का गठन करने वाले गुलाम मोहम्मद बलूच ने बलूचिस्तान की आजादी के लिए अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष किया। उन्हें उनके वकील और पूर्व मंत्री कचकोल अली के चैंबर से उनके सहायक लाला मुनीर बलूच और बलूच रिपब्लिकन पार्टी के नेता शेर मोहम्मद बलूच के साथ अगवा किया गया। पांच दिनों बाद पिडरक में अपनी भेड़ें चरा रहे स्थानीय लोगों ने इनके क्षत विक्षत शव पाए थे। आइएसआइ और सैन्य गुप्तचरों से धमकियों के बाद उनके अधिवक्ता कचकोल अली को पाकिस्तान से भाग जाना पड़ा। अब वह ओस्लो, नार्वे में निर्वासन में रहते हैं। जबकि पूर्व मंत्री ने जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के एक कार्यक्रम को जब संबोधित किया था तो उसके बाद पिछले साल 30 अगस्त को गायब हुए लोगों की याद में मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय दिवस के दिन ही उनके बेटे को गुप्तचर सेवा ने गायब कर दिया। हाल के वषरें में बलूचिस्तान ने जबरन गायब किए जाने के मामले में बदनाम अजर्ेंटीना और चिली को भी पीछे छोड़ दिया है। गुलाम मोहम्मद बलूच के घर पर छापे की निंदा करते हुए कचकोल अली ने कहा कि बलूचिस्तान में सरकारी आतंकवाद अपने चरम पर है। उन्होंने कहा कि एक विधवा के घर पर छापा और महिलाओं के साथ बदसलूकी सुरक्षा बलों की क्रूरता है और पाकिस्तानी सैनिक जो कर रहे हैं वह मानवीयता और इस्लाम की हिदायतों के खिलाफ है।
पाकिस्तान के सरकारी आतंक का पर्दाफाश करने के लिए वार्ता आयोजित करने वाली सबीना महमूद की हत्या की निंदा करते हुए उन्होंने इसके विरोध के लिए बलूच पार्टियों का आह्वान किया। इस बीच कुछ सूत्रों ने यह भी बताया है कि अमेरिका से आपूर्ति किए गए हेलीकॉप्टरों का उपयोग करते हुए पाकिस्तानी सुरक्षा बल पास के शहरों में अभियान चला रहे हैं। बलूच राष्ट्रवादियों का कहना है कि उसी मेजर जनरल अकबर खान के निर्देश पर 27 मार्च, 1948 को उनकी मातृभूमि पर अवैध ढंग से कब्जा कर लिया गया जिसने ऑपरेशन गुलमर्ग में भारत के कश्मीर क्षेत्र से एक तिहाई हिस्सा हथिया लिया। तब से पांच बार हुए विद्रोह में हजारों बलूच देशभक्त और पाकिस्तानी सैनिक मारे जा चुके हैं।
[लेखक अहमर मुस्तिखान, बलूच पत्रकार हैं और वर्तमान में वाशिंगटन में रह रहे हैं]