एक और मोदी प्रभाव
ब्रिस्बेन में हालिया जी 20 शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजनीतिक रॉक स्टार
ब्रिस्बेन में हालिया जी 20 शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजनीतिक रॉक स्टार के रूप में चित्रित किया गया। साथ ही, निवेशकों और विश्लेषकों के बीच हुए एक सर्वे में उन्हें उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं में सबसे लोकप्रिय माना गया। आमतौर पर किसी महत्वपूर्ण विदेश यात्रा पर जाने वाले नेता को उसके देश में अच्छी-खासी मीडिया कवरेज मिलती है। म्यांमार में पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन और इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में जी 20 शिखर सम्मेलन में मोदी ने भारतीय मीडिया का खूब ध्यान खींचा। किंतु जब यही लोकप्रियता विदेशी मीडिया और लोगों में भी दिखाई दे तो यह किसी नवनिर्वाचित नेता की वैश्रि्वक मंच पर पहचान की द्योतक बन जाती है। इंग्लैंड के गार्जियन में छपी दिलचस्प टिप्पणी गौरतलब है-कभी बहिष्कृत नरेंद्र मोदी 14 नवंबर को जी 20 शिखर सम्मेलन में एक राजनीतिक रॉक स्टार की तरह पहुंचे। सबसे बड़े लोकतंत्र के नए प्रधानमंत्री के रूप में इस 64 साल के व्यक्ति में कुछ ऐसा था, जिसकी दूसरे नेतागण सप्ताह भर कामना करते रहे।
व्यक्तिगत छवि और राजनीतिक प्रतीकात्मकता के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी 20 में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं। भले ही ब्रिस्बेन शिखर वार्ता की कोई खास उपलब्धि न रही हो, किंतु अंत में जो प्रस्ताव पेश किया उसमें कुछ ऐसे मुद्दे भी शामिल किए गए जो मोदी ने उठाए थे। औपचारिक रूप से 1999 में गठित जी 20 विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओंका साझा मंच है। इसमें 19 देश और सामूहिक रूप से यूरोपीय संघ शामिल हैं। जी 20 शिखर सम्मेलन बीजिंग में अपेक और म्यांमार में ईएएस शिखर सम्मेलनों के बाद आयोजित हुआ और इसके प्रमुख फैसलों में वैश्रि्वक अर्थव्यवस्था में सुधार के प्रति प्रतिबद्धता, जलवायु परिवर्तन पर एकमत होने के उपाय तलाशना और विश्व के धनी वगरें द्वारा करवंचना रोकने के उपाय तलाशना था।
संयुक्त बयान में जी 20 की जीडीपी में 2018 तक कम से कम दो प्रतिशत तक अतिरिक्त वृद्धि का महत्वाकांक्षी लक्ष्य पेश किया गया। इसमें कहा गया-दो प्रतिशत की वृद्धि से वैश्रि्वक अर्थव्यवस्था में 2000 अरब डॉलर जुड़ जाएंगे और करोड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि विश्व की शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं के नेता वृहद आर्थिक नीतियों में समन्वय लाने पर एकमत हुए हैं ताकि विकास में सहयोग मिल सके और समावेशी विकास संभव हो सके। इससे असमानता और गरीबी उन्मूलन में भी मदद मिलेगी। अगला जी 20 शिखर सम्मेलन अगले साल के अंत में तुर्की में होगा और इससे अगला 2016 में चीन में, जहां ब्रिस्बेन में हुई बातचीत और सहमति के क्रियान्वयन का सही ढंग से आकलन किया जाना संभव होगा।
भारत के परिप्रेक्ष्य में और घरेलू प्राथमिकताओं के मद्देनजर करचोरी और काले धन का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण है। यह संतोषजनक है कि संयुक्त बयान में अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली में उचित सुधार सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया है। साथ ही एक अहम राजकोषीय वचनबद्धता की गई कि लाभ पर कर उन देशों में ही लगना चाहिए जहां आर्थिक गतिविधियां की जा रही हैं और जहां मूल्यवर्द्धन किया जा रहा है। सर्वविदित है कि बहुत सी बड़ी कंपनियां और इकाइयां कर से बचने के लिए कुछ छोटे टैक्स हैवेन देशों में कंपनी रजिस्टर्ड करा देती हैं और इस प्रकार जिन देशों में ये कंपनियां कारोबार करती हैं वहां कर देने से बच जाती हैं। इस प्रस्ताव से यह उम्मीद जगती है कि साल 2015 तक कोई न कोई ऐसा वैश्रि्वक राजकोषीय ढांचा तैयार हो जाएगा जो बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (बीईपीएस) की कार्ययोजना के तहत विद्यमान अंतरराष्ट्रीय कर नियमों में सुधार कर पाएगा। विदेश में अवैध रूप से बड़ी धनराशि जमा की है। इस धन का अलग-अलग कामों में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें चुनाव लड़ने से लेकर आतंकवाद फैलाना तक शामिल है। इसमें संदेह नहीं है कि धनबल और बाहुबल भारतीय लोकतांत्रिक अनुभव का अभिशाप बन गए हैं। अगर भारत नरेंद्र मोदी की जीत से उभरी अभिलाषाओं की पूर्ति चाहता है तो पूरे तंत्र में फैल गए भ्रष्टाचार और इसकी उपज काले धन पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी है। इसके बिना समर्थ-समृद्ध भारत का सपना पूरा नहीं किया जा सकता।
वैश्वीकरण की वर्तमान व्यवस्था में कोई भी देश चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, इस स्थिति में नहीं कि वह काले धन की बुराई से अकेला निपट सके। इसलिए करचोरी और काले धन पर अंकुश लगाने संबंधी जी 20 की प्रतिबद्धता सराहनीय है। किंतु जैसा कि हमेशा होता आया है, जी 20 में शामिल देशों की सर्वसम्मति की सफलता तभी मानी जाएगी जब तमाम राष्ट्र इन प्रस्तावों को ईमानदारी और संकल्प के साथ क्रियान्वित करे। ब्रिस्बेन शिखर सम्मेलन को वृहद राजनीतिक-कूटनीतिक घटनाक्रम के लिए भी याद किया जाएगा, जिसके कारण रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने निर्धारित कार्यक्रम से पहले ही रूस लौटने का फैसला लिया। हालांकि उन्होंने व्यंग्यात्मक रूप से यह दलील दी कि नींद पूरी करने के लिए वह पहले जा रहे हैं, लेकिन पूरी दुनिया ने महसूस किया कि यूक्त्रेन मसले के कारण पुतिन ने बीच में ही लौटने का फैसला किया। यूक्त्रेन के मुद्दे पर रूस और अमेरिका-यूरोपीय संघ-जापान में तनाव वैश्रि्वक समुदाय के सामने दु:साध्य सामरिक चुनौती बना हुआ है। पुतिन का अजीबोगरीब अंदाज में रूस लौटना इस बात का संकेतक है कि जी 20 समूह की वैश्रि्वक पंचायत एक प्रमुख शक्ति के हितों से जुड़ी इस सामरिक गुत्थी को सुलझाने में विफल रही है। ब्रिस्बेन ने एक और दु:साध्य चुनौती की ओर ध्यान आकर्षित किया है- यह है दक्षिण चीन सागर व जापान से लगे समुद्र में चीन का दावा। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि नरेंद्र मोदी ने म्यांमार में ईएएस शिखर सम्मेलन में तमाम देशों से समुद्र में लागू अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के नियमों का पालन करने का अनुरोध किया था। ब्रिस्बेन में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने नौसैनिक सुरक्षा के संदर्भ में अलग से बैठक की थी। इन देशों के सीधे निशाने पर चीन की मनमानी ही थी।
भारत के लिए जी 20 एक पसंदीदा मंच है। यह संयुक्त सुरक्षा परिषद की तुलना में अधिक समावेशी और प्रतिनिधिक है। जी 20 में प्रभावशाली उपस्थिति से भारतीय प्रधानमंत्री ने बता दिया है कि वह बहुपक्षीय मंचों पर अपनी छाप छोड़ने में सक्षम हैं। तुर्की और चीन में होने वाले अगले दो जी 20 शिखर सम्मेलनों में भारत के पास वैश्रि्वक मुद्दों पर रचनात्मक और समावेशी ढंग से अहमियत जताने का मौका होगा। फिलहाल तो सबसे बड़ी चुनौती यही है कि किस तरह रूस, चीन, अमेरिका और भारत जैसी बड़ी शक्तियों को कायदे-कानून के अनुसार चलने के लिए तैयार किया जाए और उनके अंदर यह भाव पैदा किया जाए कि ताकत जिम्मेदारी और इंसाफ के साथ आती है।
[लेखक सी. उदयभास्कर, सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]