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समावेशी विकास की कुंजी

विदेशों में रह रहे लोगों से भारत को भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा हासिल होती है। वर्ष 2013-14 में इस

By Edited By: Published: Thu, 06 Nov 2014 06:14 AM (IST)Updated: Thu, 06 Nov 2014 05:46 AM (IST)
समावेशी विकास की कुंजी

विदेशों में रह रहे लोगों से भारत को भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा हासिल होती है। वर्ष 2013-14 में इस तरह से भारत को कुल 70 अरब डॉलर की राशि प्राप्त हुई जो हमारी जीडीपी का करीब 3.5 फीसद है। इस तरह देश में आई कुल राशि में से 30 फीसद पश्चिम एशिया के देशों से तथा 30 फीसद उत्तारी अमेरिका से आई। उत्तारी अमेरिका से आने वाली राशि में हाल के वषरें में सर्वाधिक वृद्धि देखी गई है। यदि हम चीन की तुलना में देखें तो भारत में विदेशों से भेजी जाने वाली राशि एफडीआइ अथवा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की तुलना में सतत रूप से ऊंची बनी हुई है और भुगतान संतुलन की स्थिति को नियंत्रित रखने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। वास्तविकता यही है कि दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में सर्वाधिक विदेशी धन भेजा जाता है जो हमारे आर्थिक, जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक फैलाव को दर्शाता है। फिर बात चाहे प्रशिक्षित आइटी कर्मियों की हो, निर्माण कायरें में लगे अकुशल मजदूर वर्ग की हो अथवा घरेलू काम करने वाले लोगों की हो, ये दुनिया के विभिन्न भागों में फैले हुए हैं। इस तरह विदेश में कार्यरत आबादी में काफी विविधता है।

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देश की अर्थव्यवस्था को इसका सकारात्मक लाभ मिलने के अलावा विदेश से आने वाला धन देश के कुछ हिस्सों के लिए बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ है। इससे संकटकाल में मदद मिली है। इस संबंध में केरल सर्वाधिक उपयुक्त उदाहरण है। इस राज्य की शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद अथवा एनएसडीपी का 30 फीसद हिस्सा विदेशों में रह रहे करीब 25 लाख प्रवासी कामगारों से प्राप्त होता है जिनमें से अधिकांश पश्चिम एशियाई देशों में रहते हैं। इसलिए इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि राज्य में प्रति व्यक्ति आय में करीब 30 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। तिरुअनंतपुरम स्थित सेंटर ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज अथवा सीडीएस के केसी जकारिया और एस इरिदुया राजन ने कुछ वर्ष पहले विदेश से प्राप्त होने वाले धन के प्रभाव का विश्लेषण किया तो उन्होंने पाया कि यह राज्य सरकार द्वारा बाकी सभी स्त्रोतों से हासिल होने वाले राजस्व की तुलना में तकरीबन दो गुना था और राज्य सरकार द्वारा वर्ष में खर्च की जाने वाली राशि की तुलना में भी दोगुना से अधिक था। अपने विश्लेषण में उन्होंने पाया कि केंद्र से राज्य सरकार को जो धन मिलता है उसकी तुलना में विदेशों से मिली राशि तकरीबन छह गुना थी। सीडीएस के विश्लेषण से इस बात का भी पता चलता है कि विदेशों से भेजी जानी वाली राशि वास्तविकता में कहीं बहुत अधिक होती है जो राज्य के तकरीबन 17 फीसद परिवारों तक सीमित है। इतना ही नहीं विदेशों से प्राप्त धन के मामले में क्षेत्रीय असमानता के साथ-साथ धार्मिक स्तर पर भी असमानता तेजी से बढ़ी है।

इस अध्ययन से एक अन्य बात का भी खुलासा होता है कि प्रवासी लोग राज्य में आय की असमानता को बढ़ाने में बड़ा योगदान कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि प्रवासी लोगों और उनके परिवारों की जीवनशैली अपेक्षाकृत अधिक बेहतर है। अध्ययन से इस बात का भी पता चलता है कि केरल का खाड़ी देशों से संबंध अथवा जुड़ाव बहुत जल्द ही एक नई ऊंचाई पर पहुंच जाएगा। इन सबके बावजूद यह भी सही है कि विदेशी प्रवासियों से आने वाला धन प्रमुख खबर बनती है, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं का ध्यान आकर्षित करती है। इस क्त्रम में हम आंतरिक धन की निकासी पर बहुत ही कम ध्यान देते हैं। एक आकलन के मुताबिक किसी एक राज्य में कार्यरत लोगों द्वारा दूसरे अन्य राज्यों में अपने परिवारों को भेजी जाने वाली कुल राशि अथवा आंतरिक निकासी करीब 75,000 करोड़ रुपये सालाना होती है। यह विदेशों से भेजे जानी वाली कुल राशि का छठवां हिस्सा है। मात्रात्मक रूप से यह भले ही बहुत कम है, लेकिन सामाजिक-आर्थिक प्रभाव की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। यह महज संयोग ही है कि एक-तिहाई से भी कम आंतरिक धन की निकासी का प्रवाह बैंक जैसे औपचारिक सांस्थानिक माध्यमों से होता है और इसमें आधार अथवा विशिष्ट पहचान संख्या का बहुत ही सकारात्मक प्रभाव है।

इस प्रकार आंतरिक प्रवास स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को टिकाए रखने के लिहाज से महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए तकरीबन तीन दशकों से बिहार और पूर्वी उत्तार प्रदेश से कामगार वर्ग पंजाब और हरियाणा में खेतों पर काम करने के लिए जाते रहे हैं। इसी प्रकार ओडिशा से बड़ी तादाद में लोग टेक्सटाइल उद्योग का हिस्सा बनने, हीरे की कटाई और पॉलिश का काम करने के लिए गुजरात में प्रवासित हुए। एक राज्य के भीतर भी प्रवास कि प्रक्त्रिया चलती रहती है। कृषि की कटाई और बुआई आदि के मौसम में भी यह होता है। उदाहरण के लिए श्रीकाकुलम से पूर्व और आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले में यह प्रवृत्तिदेखने को मिलती है। महाराष्ट्र में गन्ना उत्पादक क्षेत्रों जैसे बीड़ आदि में यह बड़े पैमाने पर होता है। पिछले वर्ष जारी यूनेस्को की रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रत्येक 10 में से 3 भारतीय किसी न किसी रूप में आंतरिक प्रवास करते हैं। इनमें महिलाओं का आंतरिक प्रवास अनुपात 70 फीसद है। धन की आंतरिक निकासी पर बहुत कम अध्ययन किया गया है। इस तरह की निकासी कितनी महत्वपूर्ण है इस पर तिरुअनंतपुरम स्थित गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन के डी नारायण और सीएस वेंकटेश्वरन ने एक रोचक अध्ययन किया। इस अध्ययन से पता चलता है कि दूसरे राज्यों के करीब 25 लाख लोग केरल में विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। निर्माण कार्य, सेवा क्षेत्र, घरेलू काम और कृषि क्षेत्र से वर्ष 2013 में 17,500 करोड़ रुपये की राशि अर्जित की गई। यह केरल को विदेशों से प्राप्त होने वाली राशि का एक-तिहाई है।

आंतरिक प्रवासी अल्प और दीर्घकाल तक निवास करते हैं। ज्यादातर अल्पकालिक प्रवासी अर्जित राशि अपने परिवारों को भेज देते हैं जबकि दीर्घकालिक प्रवासी काम का मौसम खत्म होने पर अपनी बचत घर ले जाते हैं। अल्पकालिक प्रवासी अधिक मुसीबत में होते हैं। हाल के वषरें में मनरेगा शुरू होने के बाद अल्पकालिक प्रवासियों की मुसीबतें कम हुई हैं। अब पंजाब और हरियाणा के तमाम किसानों की शिकायत यही है कि बिहार और पूर्व उत्तार प्रदेश से सस्ते श्रमिक कम उपलब्ध हैं। निश्चित रूप से आंतरिक प्रवास ने तमाम सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को पैदा करने का काम किया है, लेकिन इसके लिए राजनीति भी कम जिम्मेदार नहीं है। यूनेस्को रिपोर्ट की यह बात सही है कि हमें बहुत जल्द राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर सुशासन स्थापित करना होगा, क्योंकि जनसांख्यिकीय स्थानांतरण के साथ-साथ आर्थिक अवसरों में भी असमानता तेजी से बढ़ी है।

[लेखक जयराम रमेश, पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं]


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