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बिन चिट्ठी आए अब संदेश

सोशल बीइंग होने के नाते लोगों का एक-दूसरे से कम्युनिकेट करना बहुत ज़रूरी होता है। ज़रूरतों व सहूलियत के हिसाब से वे अपने मोड्स ऑफ कम्युनिकेशन तय करते हैं। इस पर एक रिपोर्ट।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Thu, 05 Jan 2017 05:59 PM (IST)Updated: Wed, 11 Jan 2017 04:21 PM (IST)
बिन चिट्ठी आए अब संदेश

कभी घरों में पोस्टमैन के आने का बेसब्री से इंतज़ार किया जाता था। साइकिल की घंटी बजते ही सब में एक अलग सा उत्साह नज़र आता था। गांव में तो वह लोगों को चिट्ठियां पढ़ कर भी सुना दिया करते थे। इंटरनेट के ज़माने में लेटर बॉक्स की जगह इनबॉक्स ने ले ली। पोस्टमैन वाला चार्म कहीं गुम होने लगा क्योंकि चिट्ठियों की जगह ई मेल्स आने लगे। इंपॉर्टेंट डॉक्युमेंट्स के लिए घरों के बाहर लेटर बॉक्स लगवा दिए गए और पोस्टमैन उसी में लेटर्स डालकर जाने लगे। जानते हैं संचार के बदलते तरीकों के बारे में।

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अहमियत संवाद की
ज़माना आज का हो या कल का, कम्युनिकेशन की अहमियत हमेशा से बराबर रही है। रजवाड़े वाले समय में घुड़सवारों के द्वारा संदेश एक राज्य से दूसरे राज्य भिजवाए जाते थे। वक्त के साथ संचार के तरी$के भी बदले। अकेलापन किसी को भी परेशान कर सकता है इसलिए लोग कोशिश करते हैं कि किसी-न-किसी तरीके से एक-दूसरे से कनेक्टेड रहें। बातचीत के लिए बस एक बहाना चाहिए होता है, भले ही फिर वह गॉसिप ही क्यों न हो। आप खुश हो या दुखी, कोशिश करें कि एक ऐसा साथी ज़रूर हो, जिससे आप अपने सुख-दुख बिना किसी हिचक के, किसी भी समय बांट सकें। बातें कैसी भी हों, मन में रखने के बजाय किसी से शेयर करें। अंतर्मुखी व्यक्ति डायरी में रोज़ाना लिखने की आदत डाल सकता है। इससे आप बेहतर महसूस करेंगे।

चिट्ठी आई है..
संचार के विभिन्न तरीकों में चिट्ठियों का अलग ही महत्व रहा है क्योंकि उनमें सिर्फ शब्द ही नहीं, बल्कि उन्हें लिखने वालों के अपनत्व की झलक भी होती है। लोगों को इंतज़ार रहता था कि कब डाकिया उनकी चिट्ठी लेकर आए और उन्हें दूर बसे अपने प्रियजनों का हालचाल मिल सके। पहले गांवों में जो लोग पत्र नहीं पढ़ पाते थे, उन्हें डाकिया खुद ही पढ़ कर सुनाता था। पोस्टकार्ड पर लगे टिकटों को इकट्ठा करना भी लोगों का शौक हुआ करता था। इस शौक ने कइयों को काफी शोहरत भी दिलवाई है। अकसर प्रदर्शनियों में भी टिकट कलेक्शन को जगह दी जाती है। पुराने या खास टिकटों की कीमत कई बार लाखों-करोड़ों तक में आंकी जाती है।

ट्रिन..ट्रिन.. हेलो...
टेलीफोन आने के बाद से चिट्ठियोंं का चलन कुछ कम हो गया। पहले हर घर में फोन नहीं होता था, इसलिए मोहल्ले के जिस घर में भी होता था, वहीं पड़ोसियों के संदेश भी आते थे। फोन की घंटी बजते ही बच्चों और बड़ों, सबमें एक क्रेज़ होता था कि कौन पहले बात करे। जगह-जगह पीसीओ बूथ होते थे, जिनके बाहर लंबी कतार लगी होती थी। पहले बात करने के बाद रुपये देने होते थे, फिर सिक्का डालने के बाद बात करने की सुविधा आ गई थी। पांच मिनट में लोग सारी ज़रूरी बातें खत्म करने की कोशिश करते थे। मोबाइल लॉन्च हो जाने के बाद से लैंडलाइन फोन और पीसीओ की अहमियत घटने लगी। अब तो ज़रूरत पडऩे पर भी मार्केट में पीसीओ बूथ नज़र नहीं आते। पहले मोबाइल फोन के सेट भी महंगे थे और कॉल्स भी, फिर भी हर दूसरे हाथ में फोन नज़र आने लगा था। लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से हर नए बदलाव को आसानी से अपनाते रहे। पहले इंटरनेट कैफे की धूम थी। प्रतिस्पर्धा में कई कंपनियों के आने के बाद कॉल रेट्स घटने लगे और सस्ते मेसेज व इंटरनेट पैक्स भी लॉन्च होने लगे। लोगों में बढ़ती उनकी ज़रूरत व लोकप्रियता के कारण इंटरनेट कैफे से वे दूर होने लगे।

दोस्त बना कंप्यूटर
मल्टीमीडिया फोन के आने के बाद से तो टेप रिकॉर्डर, रेडियो, विडियो गेम्स और कैमरों की अहमियत कम होती चली गई। धीरे-धीरे कंप्यूटर भी घर-घर में दिखने लगे थे। विदेश में बैठे अपने रिश्तेदारों से एक मेल के ज़रिये संपर्क किया जा सकता था। बच्चों को कंप्यूटर कोर्स करवा दिया जाता था, जिससे कि वे नई टेक्नोलॉजी के साथ कदम ताल बैठा सकें। धीरे-धीरे इंटरनेट ने भी घरों में अपनी पहुंच बना ली, जिसके बाद इंटरनेट कैफे की तरफ युवाओं का रुझान कुछ घटने लगा। कोई लैंडलाइन में नेट कनेक्शन लगवा लेता था तो कोई घरों में वाईफाई सिस्टम लगवाने लगा। वे उसकी ज़रूरत को समझते हुए बहुत जल्दी हर नई तकनीक से दोस्ती कर रहे थे। लोग घर पर ही सारी ऑनलाइन सुविधाओं का प्रयोग करने लगे। यहां तक कि ज़रूरत के हिसाब से लोगों ने प्रिंटर तक ख़्ारीद लिए। इससे बच्चों को प्रोजेक्ट्स बनाने में मदद मिलने लगी तो घर के बड़ों के ऑफिस के काम भी आसानी से होने लगे। ज़रा-ज़रा से काम के लिए कैफे जाने की समस्या खत्म होना एक राहत की बात थी।

मार्केट भी हुआ ऑनलाइन
बदलती जीवनशैली और व्यस्त दिनचर्या के बीच लोगों के पास समय का अभाव होने लगा। बाज़ार ने इस नब्ज़ को पकड़ मार्केट में नए-नए प्रोडक्ट्स लॉन्च करने शुरू कर दिए। ऑनलाइन साइट्स के आ जाने से लोग अपनी काफी खरीददारी इसी माध्यम से करने लगे। कपड़े, फुटवेयर, इलेक्ट्रॉनिक सामान, गिफ्ट्स, एक्सेसरीज़, बुक्स जैसी ज़रूरी चीज़ें भी लोग ऑनलाइन ही खरीदने लगे। खाना ऑर्डर करना हो या किसी चीज़ का पेमेंट, इस सुविधा ने हर काम आसान बना दिया। इसका फायदा यह भी हुआ कि घर बैठे एक क्लिक से शॉपिंग होने लगी। इसके कई दुष्परिणाम भी सामने आए पर लोगों में इसका क्रेज़ बढ़ता ही जा रहा है। बैंकों की ऑनलाइन सेवाओं से भी लोगों को बेहद राहत मिली। अब तो अकसर लोग अपने बिलों के भुगतान भी ऑनलाइन करना ही सुविधाजनक समझते हैं।

गढ़ गई अलग इक दुनिया
सोशल साइट्स के अस्तित्व में आने से लोग वहां ऐक्टिव और असली दुनिया से $गायब होने लगे। मोबाइल और कंप्यूटर पर गेम्स खेलने की आदत ने बच्चों को जरूरी ऐक्टिविटीज़ से काफी दूर कर दिया। पार्कों में अब पहले सी रौनक नहीं नज़र आती। पहले जहां लोग मिल-बैठ कर बातें करना पसंद करते थे, वहीं अब वे व्हॉट्सएप या फेसबुक ग्रुप्स पर बातें कर ही निश्चिंत हो जाते हैं। बढ़ते संचार के माध्यमों से लोग आपस में कनेक्टेड तो रहने लगे हैं पर कई मायनों में उनके बीच की दूरियां भी बढ़ती जा रही हैं। शुभकामनाएं भी अब एक मेसेज या वॉइस नोट से ही दे दी जाती हैं। इससे उनका आपस में मिलना-जुलना कुछ कम हो गया है।

हालांकि, संचार के बढ़ते माध्यमों के कई फायदे भी हैं। आप जब, जहां और जैसे चाहें, किसी से भी संपर्क कर सकते हैं। इससे संवाद के लिए उपयुक्त जगह, समय और साधन की चिंता नहीं रहती है। पहले जो सूचनाएं कई दिनों में लोगों तक पहुंचती थीं, वहीं अब वे चंद मिनटों में पहुंचा दी जाती हैं। विकास के बिना दुनिया कहीं ठहर सी जाएगी, इसलिए बेहतर है कि हम ही आगे बढ़ते जाएं। वैसे भी नई तकनीकों को सीखना और समझना तो ज़रूरी है ही, इसलिए ध्यान यह रखें कि उसके साथ ही अपनी परंपराओं और संस्कारों को भी महत्व दें। आभासी दुनिया के साथ ही असली दुनिया में भी अपनी एक पहचान बनाएं।

दीपाली पोरवाल


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