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तस्वीरों से नुमायां होता दिल्ली का हुस्न

दिल्ली हमेशा से ही फोटोग्राफर्स की पसंदीदा जगह रही है। चाहे यहां की ऐतिहासिक इमारतें हों, खाने-पीने के ठिकाने हों या सांस्कृतिक विरासत, दिल्ली के युवा फोटोग्राफरों ने यहां के कई अनजाने-अनछुए पहलुओं को अपने कैमरे में कैद किया है। कई विलुप्त हो रही सांस्कृतिक विरासतों को फोटोग्राफरों ने अ

By Edited By: Published: Wed, 02 Apr 2014 11:57 AM (IST)Updated: Mon, 07 Apr 2014 11:45 AM (IST)
तस्वीरों से नुमायां होता दिल्ली का हुस्न

दिल्ली हमेशा से ही फोटोग्राफर्स की पसंदीदा जगह रही है। चाहे यहां की ऐतिहासिक इमारतें हों, खाने-पीने के ठिकाने हों या सांस्कृतिक विरासत, दिल्ली के युवा फोटोग्राफरों ने यहां के कई अनजाने-अनछुए पहलुओं को अपने कैमरे में कैद किया है। कई विलुप्त हो रही सांस्कृतिक विरासतों को फोटोग्राफरों ने अपनी तसवीरों में जिंदा रखा है। ज्योति द्विवेदी ने दिल्ली के युवा फोटोग्राफर्स से यहां के फोटोजेनिक अक्स संजोने के

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किस्से जाने।

'ये दिल्ली है मेरे यार बस इश्क मोहब्बत प्यार इसके दाएं तरफ भी दिल है इसके बाएं तरफ भी दिल है

ये शहर नहीं महफिल है.'

जी हां, कुछ ऐसी ही है साड्डी दिल्ली। रोशनियों के रस में डूबी। इबादतों की अर्जियां लगाती हुई। कभी रफ्तार से दिल्लगी करती नजर आती है तो कभी इतिहास की चौहद्दी पर ठिठकी दिखती है। दिल्ली की इन्हीं दिलनशीं अदाओं ने फोटोग्राफरों को अपना दीवाना बना रखा है। दिल्ली ही नहीं, देश के सभी राज्यों और अन्य देशों के फोटोग्राफर भी दिल्ली को अपना पसंदीदा फोटोशूट प्वाइंट मानते हैं। दिल्ली के कई युवा फोटोग्राफरों ने दिल्ली के हुस्न को अपनी तसवीरों में संजोकर रखा है।

हर पल मूड बदलती है दिल्ली

सुबह अंगड़ाइयां लेकर नींद से जागती दिल्ली का नजारा दिन के हर पहर के साथ तब्दील होता जाता है। फोटोग्राफर योगेश कहते हैं, 'यहां की हर सुबह मस्जिद की अजान, चाय की दुकानों की रौनक और काम पर जाते यहां के बाशिंदों की रफ्तार की धुन पर आंखें खोलती है। दोपहर बाजारों में मोलभाव करते भारत से गुलजार रहती है। छोटे शहरों के फुटकर दुकानदारों से लेकर शादी की शॉपिंग करने आई लड़कियों तक का तांता लगा रहता है। सरोजिनी नगर हो, नई सड़क हो या खान मार्केट- यहां हर किसी को उसकी जेब के हिसाब से मनचाहा सामान मिल जाता है। कम पैसों में अत्याधुनिक परिधान मिलने के बाद जनपथ में खरीदारी करने आई छोटे शहर की लड़कियों के चेहरे के भाव ऐसे होते हैं, मानो उन्हें कोहिनूर का हीरा कौडि़यों के मोल मिल गया हो। वहीं दिन ढले यहां जश्न और पार्टियां शुरू हो जाती हैं। इन पार्टियों में हजारों वॉट के संगीत पर थिरकते युवाओं को देखकर कोई नहीं कह सकता कि इनमें से किसी का सुबह ब्रेकअप हुआ था। या इनमें से किसी को दिन में बड़ा बिजनेस लॉस हुआ था। दिल्ली के इन बदलते मूड्स को कैमरे में कैद करना हर बार एक अलग अनुभव होता है।'

हेलो भी, आदाब भी

दिल्ली की एक और खासियत जो फोटोग्राफर्स का ध्यान खींचती है, वह है नई और पुरानी दिल्ली की साझा संस्कृति। जहां पुरानी दिल्ली हवेलियों, मस्जिदों और पुरानी गलियों के साथ आदाब अर्ज करती नजर आती है। वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स के हाथों तराशी गई नई दिल्ली मेट्रो और मॉल कल्चर के साथ हेलो करती दिखती है। इस बारे में बताते हैं फोटोग्राफर मल्कियत सिंह, 'दिल्ली की संस्कृति और इतिहास बेहद समृद्ध रहा है। महाभारत काल में दिल्ली पाण्डवों की राजधानी थी और इसे इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था। मुगलकाल में बादशाह शाहजहां ने चारदीवारी से घिरी अपनी राजधानी शाहजहानाबाद की नींव डाली जो आज पुरानी दिल्ली के नाम से जानी जाती है। आज भी पुरानी दिल्ली के कई इलाकों में चारदीवारी के अवशेष बाकी हैं। कश्मीरी गेट, अजमेरी गेट, तुर्कमान गेट और दिल्ली गेट भी मुगिलकालीन सल्तनत के गवाह हैं। साल 1911 में अंग्रेजों ने भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित किया। मुख्य आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियन की अध्यक्षता में नई दिल्ली का निर्माण किया गया। नई दिल्ली को अंग्रेजों ने भारत पर अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए ही बेहद आधुनिक रूप दिया था। वहीं पुरानी दिल्ली में आज भी गंगा-जमुनी तहजीब देखने को मिलती है। दिल्ली के ये दो रूप फोटोग्राफरों की तसवीरों को वह गहराई बख्शते हैं, जिसकी उन्हें तलब होती है।'

शहरों का शहर है दिल्ली

दिल्ली के फोटोग्राफर्स का ऑल टाइम फेवरिट शहर होने की सबसे बड़ी वजह यहां की सांस्कृतिक विविधता है। यहां आपको कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से हिमांचल प्रदेश तक के लोग मिलेंगे। फोटोग्राफर गुलजार सेठी कहते हैं,'मुझे फोटोग्राफी के लिए दिल्ली से मुफीद कोई शहर नहीं लगता। इसे 'शहरों का शहर' यूं ही नहीं कहा जाता। चितरंजन पार्क में बंगाली, पटेल नगर, तिलक नगर, कीर्ति नगर में सिख, दरियागंज में मुस्लिम, मॉनेस्ट्री में बौद्ध, करोलबा़ग में गढ़वाली, महरौली में जाट तो लक्ष्मीनगर में मिश्रित समुदायों के लोग रहते हैं। फोटोशूट की थीम के मुताबिक मुझे जिस सामुदायिक परिवेश की दरकार होती है, मैं वहीं चला जाता हूं।' वैसे विभिन्न प्रदेशों के लोग मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में भी हैं। लेकिन दिल्ली इन सभी मेट्रो शहरों से अलग है क्योंकि मुंबई में मराठी, कोलकाता में बंगाली तो चेन्नई में तमिल समुदाय का दबदबा है। जबकि दिल्ली में किसी एक विशेष समुदाय का दबदबा नहीं है। यहां सभी समुदाय को-एग्जिस्ट करते हैं। विभिन्न समुदायों पर आधारित फोटोशूट करने वाले फोटोग्राफर्स के लिए यहां बहुत कुछ है। पिछले 10सालों से दिल्ली के सिख समुदाय पर शोध कर रहे फोटोग्राफर मल्कियत सिंह बताते हैं, 'दिल्ली में दस गुरुद्वारे हैं, जिनमें से छह गुरुओं से जुड़े हैं। ऐसे में मुझे दिल्ली में सिखों पर शोध कर फोटोग्राफी करने के लिए काफी अच्छा मटीरियल मिल गया।'

फूड फोटोग्राफी का गढ

फूड फोटोग्राफर्स के लिए भी दिल्ली में कई मशहूर ठिकाने हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि यहां फूड आयटम्स की रेसिपी में समय-समय पर इनोवेशन तो की ही जाती है, साथ ही खाने के लुक को टेंप्टिंग बनाने के लिए भी खासी कवायद की जाती है। पुरानी दिल्ली की कई दुकानों में आज भी कई साल पुरानी रेसिपीज से बनी डिशेज परोसी जा रही हैं। तो फाइव स्टार होटेल्स में क्विजींस की भरमार है।

फोटोग्राफर गुलजार बताते हैं,'दिल्ली में खाना परोसने का ढंग इतना नायाब होता है कि उसे देखते ही खाने का दिल कर जाता है। और यह फूड फोटोग्राफी की पहली शर्त है। पराठेवाली गली के पराठे, जामा मस्जिद के पास स्थित करीम्स फूड ज्वाइंट की मटन करी, दरीबाकलां की बड़े आकार की जलेबी और रबड़ी, भागीरथ पैलेस का कांजी वड़ा, भगीरथ पैलेस के रामलडू और चांदनी चौक स्थित हाजी शॉप की नल्ली निहारी फूड ़फोटोग्रा़फर्स की फेवरिट हैं। दरीबाकलां में तो इंडिया गेट और कुतुब मीनार के जलेबियां डिजाइन वाली सर्व की जाती हैं।' इन विभिन्न खूबियों के चलते ही दिल्ली न सिर्फ हिंदुस्तानी, बल्कि विदेशी फोटोग्राफर्स के भी दिल की रानी है।


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