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नए साल में बन जाएं 'नया'

नया साल एक नया जन्म भी है। इस नए जन्म को नया अंदाज़ देते हैं हमारे रिश्ते। वे रिश्ते जो हमारे आसपास हैं और वर्चुअल से एकदम अलग हैं। हर बार नए साल पर हम कुछ न कुछ संकल्प ज़रूर लेते हैं। क्यों न इस साल अपनी संकल्प सूची में वर्चुअल रिश्तों की तरह रियल रिश्तों से जुड़ें और फिर से नई शुरुआत करें, नया बन जाएं! सीमा झा की रिपोर्ट...

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Tue, 03 Jan 2017 06:30 PM (IST)Updated: Thu, 12 Jan 2017 01:20 PM (IST)
नए साल में  बन जाएं 'नया'

'याद है तुम्हें जब मैं और तुम सोना बुआ के बेटे की बर्थडे पार्टी में गए थे। कितना मज़ा आया था न! उसके बाद एक बार भी उनकी खबर नहीं मिली। बुआ ने कितनी बार फोन किया, बुलाया लेकिन मैंने उन्हें मना कर दिया। कितना प्यार करती हैं वे हमें। पता नहीं क्या हो गया है यार, मन ही नहीं करता किसी से मिलने का, कुछ तो करना होगा!' गरिमा ने अपने छोटे भाई साहिल से कहा। गरिमा की तरह ज़्यादातर यूथ को ऐसा ही एहसास होता है। जैसे खुद से खुद तक ही सिमटती जा रही है जि़ंदगी। इसमें एक भूचाल-सा आता है जब मोबाइल पास न हो और इंटरनेट न मिले। ऐसे में हम जहां है वहीं पर जम जाते हैं लेकिन इंटरनेट से पैदा हुए इस ठहराव में जो बेचैनी है, उसे दूर कर सकते हैं हम। वर्चुअल दुनिया से मिलने वाली इंस्टेंट खुशी से अलग खुशी तो तब हासिल होगी जब हम अपनों से जुड़ें। उन्हें प्यार देकर उनका प्यार पा सकें। जैसा कि आईटी प्रोफेशनल दिव्या कहती हैं, 'मन खुश रहता है तो सारे जहां की खुशियां हमारे कदमोंं में जान पड़ती हैं और मन तभी खुश हो सकता है जब हमारे अपने खुश रहें।' तो क्यों न इस साल एक रिज़ॉल्यूशन ऐसा भी हो जो इंटरनेट से पैदा हुए इस ठहराव को गति दे और अपनों के साथ जुड़कर हम तरोताज़ा हो जाएं, नई शुरुआत करें।

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एहसास अपनेपन का
कितना अच्छा लगता है जब कोई अपना मुस्कुरा दे और उसे देखकर हम भी हौले से हंस दें। यह हंसी, ऐसी मुसकान चुपके से गायब हो रही है। इमोजी के ज़रिये जो संवाद हम कर रहे हैं, उसमें वो बात कहां। संवाद यानी कोई दोस्त, भाई या रिश्तेदार पास आकर हाथ पर हाथ रखकर पूछे कि आप आज खुलकर क्यों नहीं हंस नहीं रहे तो यह सोशल मीडिया पर किसी दोस्त से बात करने से एक अलग एहसास होता है। आमने-सामने की बातचीत में स्पर्श शामिल है। जब आप नाराज़ हों और घर का कोई सदस्य चुपके से आपकी खास या कोई मनपसंद चीज़ लेकर हाजि़र हो जाए तो आप सारे गिले-शिकवे भूलकर उनके गले लगना नहीं भूलते। इसकी भरपाई सोशल मीडिया से नहीं हो सकती। स्पर्श से जन्मे एहसासों से जो अपनेपन का एहसास होता है, उसकी बात ही कुछ और है।

आइए पहल करें
टीवी के साथ वक्त बिताना, विडियो गेम खेलना या फिर इंटरनेट पर कुछ सर्च करना चलता है लेकिन यदि आप सोशल प्लेटफॉर्म पर लंबा समय बिताने के आदी हैं तो यह हो सकता है कि आपको इसकी लत लग गई है। इसी लत के कारण अपनी वास्तविक दुनिया से हम कटने लगते हैं और संवाद से दूर हो जाते हैं। संवाद कम करने के कारण ही रिश्तों में गलतफहमियांं पैदा होती हैं। अकसर रिश्तों से मिलने वाली अस्वीकार्यता के अंदेशे के कारण संवाद करने या मिलने-जुलने से भी कतराने या बचने लगतेे हैं हम। इस बात को अगर आप भी महसूस करते हैं तो यह ज़रूरी है कि इस नए साल अपनी पुरानी पड़ चुकी इस आदत में बदलाव लाया जाए।

खुद को दें रिवॉर्ड
एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में कैद हो गई है हमारी दिनचर्या। यह हमारी आदत में शुमार हो चुका है। इस आदत को तोड़ पाना आसान नहीं। इसके लिए कदम दर कदम चलना होगा और मन को इस बदलाव के लिए तैयार करना होगा। कोशिश करें कि यदि संकल्प पूरा हो रहा है तो खुद को रिवॉर्ड दें। फाइन आर्ट की स्टूडेंट अंजू कहती हैं, 'मैंने कई बार कोशिश की कि अब टेक्नोलॉजी की लत के चलते अपनों का साथ मिस नहीं होने दूंगी पर बात नहीं बनी। यह कोशिश तब जाकर रंग लाने लगी जब मैंने खुद को
छोटे-छोटे नियमों में बांधकर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया।'


ऐसे बनेगी बात
-छुट्टियों में मोबाइल-इंटरनेट से दूर अपनों के साथ घूमने निकल जाएं।
-साथ खरीददारी के समय भी बॉन्डिंग को रिफ्रेश कर सकते हैं आप।
-घरेलू समारोहों में हिस्सा लें तो भूले-बिसरे रिश्तेदार-दोस्त से मिल पाएंगे आप।
-मेहमान आएं तो उनसे मेलजोल बढ़ाएं, न कि अपने मोबाइल या लैपटॉप के साथ कमरे में कैद रहें।
-नाराज़गी के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की जल्दबाज़ी न करें।
-गुस्से में कटुता बढ़ाने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
-यदि नाराज़गी की वजह हलकी है तो बस
एक हेलो से बात बन सकती है।
-घर के सदस्यों का प्रतिदिन अभिवादन करना न भूलें।
-चेहरे पर सहज मुसकान रखें और सबसे बात करते रहें।


ब्लॉक-अनफ्रेंड यहां नहीं
आमने-सामने की बातचीत इसलिए भी मुश्किल हो जाती है क्योंकि हमें तुरंत प्रतिक्रिया देनी होती है। हम यह नहीं कह सकते कि बाद में बात करते हैं। बीच में संवाद कम ही रोकते हैं। कहींं न कहींं पूरा करने के बाद ही उसे रोकना सही मानते हैं। दोतरफा संवाद, जो सामने हो, इसकी विशेषता यही है। हम सही-गलत के बारे में सोचते रहते हैं। अपनी बॉडी लैंग्वेज को लेकर सतर्क रहते हैं। आभासी दुनिया की तरह आप उन्हें अनफ्रेंड या ब्लॉक नहीं कर सकते। बेस्ट देना ही होगा और प्रभावी संवाद की कला सीखनी होगी। यही वजह है कि अब यूट्यूब या कुछ वेबसाइट्स की मदद से प्रशिक्षण भी ले रहे हैं लोग। संवाद कला में निपुण बनाने के लिए कोचिंग भी मौज़ूद हैं लेकिन जब इस साल ठान ही लिया है कि अपनों से कनेक्ट होना है तो इसके लिए कोचिंग से अधिक इच्छाशक्ति और थोड़े से अभ्यास की ज़रूरत होगी ।
मनोवैज्ञानिक, गीतिका कपूर


मुश्किल नहीं यदि ठान लें
यह एक कॉमन समस्या है। न केवल यूथ की बल्कि हर किसी के साथ ऐसा है। यदि यूथ चुप है तो उसे इस बात का डर है कि सामने वाले से कोई झगड़ा न हो जाए। वह हमेशा झगड़े से बचना चाहता है इसलिए भी संवाद से झिझकता है। बीच की राह निकाली जा सकती है। सोशल या वर्चुअल दुनिया को हावी न होने दिया जाए। वहां भी मौज़ूदगी रहे और अपनों से कटने के बजाय उनसे जुड़ने के बहाने तलाशे जाएं। मैं इस बात को लेकर गंभीर हूं।
दीप पाठक, अभिनेता


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