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याद आती है दिल्ली

भोली सी सूरत वाली टीवी ऐक्ट्रेस कृतिका कामरा ने लीक से हटकर निभाए गए किरदारों से युवा वर्ग में लोकप्रियता हासिल की है।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Wed, 08 Mar 2017 06:51 PM (IST)Updated: Thu, 09 Mar 2017 05:10 PM (IST)
याद आती है दिल्ली
याद आती है दिल्ली

टीवी ऐक्ट्रेस कृतिका कामरा किसी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं। सीरियल्स 'कितनी मोहब्बत है' में आरोही और 'कुछ तो लोग कहेंगे' में डॉ.निधि का किरदार निभा कर इन्होंने युवाओं के दिल में अपनी खास जगह बना ली थी। फिलहाल उन्हें 'चंद्रकांता' के लीड रोल में देखा जा रहा है। उनसे हुई एक मुलाकात।

फैशन डिज़ाइनिंग करते हुए ऐक्टिंग के क्षेत्र में कैसे आना हुआ?
मैं क्लास ओवर होने के बाद कॉलेज से बाहर निकल रही थी, वहीं किसी ने मुझसे ऑडिशन के लिए पूछा। ऐक्टिंग में मेरी रुचि शुरू से रही है इसलिए बिना टाइम वेस्ट किए मैं ऑडिशन देने चली गई थी।

मुंबई में दिल्ली की कौन सी चीज़ सबसे ज़्यादा मिस करती हैं?
मुंबई में पूरे वर्ष एक सा मौसम रहता है। मुझे सर्दियों का मौसम बहुत पसंद है इसलिए मैं दिल्ली की सर्दी बहुत मिस करती हूं।

दिल्ली में सबसे ज़्यादा क्या पसंद है?
मैं बहुत फूडी हूं। मुझे छोले-भटूरे, खट्टी-मीठी चाट, रोल्स, मोमोज़... हर तरह का स्ट्रीट फूड बहुत पसंद है। दिल्ली से बेहतर स्ट्रीट फूड कहीं और मिलना मुश्किल है क्योंकि यहां हर तरह का स्वादिष्ट खाना आसानी से मिल जाता है। दोस्तों के साथ खान मार्केट और सीपी जाकर घूमना और शॉपिंग करना भी मुझे बहुत पसंद है। हालांकि, अब यह सब नहीं कर पाती हूं पर वे दिन आज भी याद आते हैं।

अपनी हॉबीज़ के बारे में बताइए।
मुझे फिल्म्स की मेकिंग के विडियोज़ देखने का बहुत शौक है। उसके अलावा ट्विटर पर काफी ऐक्टिव रहती हूं, जिससे कि पॉलिटिकल खबरें मिलती रहें।

मुंबई में सेटल होने में किस तरह की दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा था?
मैं काफी कम उम्र में मुंबई चली गई थी। वहां अकेली रहती थी क्योंकि कोई रिश्तेदार भी नहीं था। शुरू में बहुत अकेलापन लगता था, फिर धीरे-धीरे शूटिंग्स में बिज़ी रहने से सब ठीक होता गया। अब तो मुझे वहां भी बहुत अच्छा लगता है। घर का कोई भी सदस्य इस फील्ड में नहीं था इसलिए सब कुछ सेटल होने में टाइम तो लगा पर मैंने कभी हार नहीं मानी। कल्चर डिफरेंट होना भी परेशानी का एक कारण था। लाइफ गोज़ ऑन... समय के साथ हर जगह खुद-ब-खुद एडजस्टमेंट हो जाता है।

युवाओं के लिए कोई संदेश?
हम जहां रहते हैं, वहां के प्रति हमारी नैतिक जि़म्मेदारी बनती है। लॉ एंड ऑर्डर दुरुस्त रखने या सड़कें सा$फ करने के लिए हमें किसी के आदेश का इंतज़ार नहीं करना चाहिए। हमें एक ऐसा माहौल तैयार करना चाहिए कि लड़का हो या लड़की, हर कोई सिर उठा कर, बिना किसी डर के चल सके।

दीपाली

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