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राजेश ने लौटाया अकादमी पुरस्कार, मंगलेश भी लौटाएंगे

साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। राजधानी के अशोक वाजपेयी, कृष्णा सोबती के बाद अब मंगलेश डबराल ने भी अपना पुरस्कार वापस करने की घोषणा की है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2015 02:18 PM (IST)Updated: Wed, 14 Oct 2015 07:29 AM (IST)
राजेश ने लौटाया अकादमी पुरस्कार, मंगलेश भी लौटाएंगे

नई दिल्ली । साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। राजधानी के अशोक वाजपेयी, कृष्णा सोबती के बाद अब मंगलेश डबराल ने भी अपना पुरस्कार वापस करने की घोषणा की है।

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जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश के कवि राजेश जोशी ने पुरस्कार लौटा दिया है। दोनों साहित्यकारों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमलों के विरोध में साहित्य सम्मान लौटाने का फैसला किया है। जानकारी के अनुसार अब तक दस से अधिक साहित्यकारों ने पुरस्कार लौटा दिया है। कुछ ने साहित्य अकादमी की आम सभा से इस्तीफा भी दिया है।

राजेश जोशी को वर्ष 2002 में साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजा गया था, जबकि मंगलेश डबराल को वर्ष 2000 में यह पुरस्कार दिया गया था। मंगलेश डबराल का कहना है कि इस समय जो शक्तियां खुलकर सामने आ रही हैं ये फासीवादी और सांप्रदायिक हैं।

दीनानाथ बत्रा का लेखन, डीयू से रामानुजन की रामायण को हटवाना, गुलाम अली के गायन का विरोध, दादरी की घटना, वरिष्ठ लेखक कलबर्गी की हत्या, ये सब सरेआम हो रहा है और सरकार का ध्यान इस पर नहीं है। हमारा विरोध सरकार से है, लेकिन जिस तरह साहित्य अकादमी ने कलबर्गी की हत्या के बाद असंवेदनशीलता दिखाई वह गलत है।

उनकी हत्या के तुरंत बाद साहित्य अकादमी को इसकी भत्र्सना करनी चाहिए थी। देश में इस तरह की घटनाएं हो रही हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस विषय पर चुप्पी भी आश्चर्यजनक है।

वरिष्ठ लेखक राजेश जोशी का कहना है कि देश में लेखकों पर हमले कर उनकी हत्याएं की गईं, मगर सरकार मौन है। एक तरफ देश में जहां असहिष्णुता बढ़ रही है, वहीं अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले किए जा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि विरोध का अपना तरीका होता है, लिहाजा उन्होंने साहित्य सम्मान लौटाने का फैसला किया है।

गौरतलब है कि साहित्यकारों व लेखकों पर हुए हमले और देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में हाल ही में कई साहित्यकार और लेखकों ने अपना विरोध दर्ज कराते हुए साहित्य सम्मान लौटाया है। इस संबंध में दिल्ली ङ्क्षहदी अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा का कहना है कि, हम ने सीखा है - पुरजा पुरजा कटि मरै , तबहुं न छांडै खेत।

मगर, यहां तो लेखक अपनी साहित्य अकादमी को खुद ही छोड़कर भाग रहे हैं। पुरस्कार लौटाकर, जबकि हमें लडऩा चाहिए, यहीं उपस्थिति रखकर। हम चले गए तो बड़ी आसानी से वे अकादमी में अपने लोगों की भर्ती कर देंगे और फिर जम कर मनमानी होगी। सामने रहिए, सामना करने का समय है, साहस की जरूरत है। अपने पुरस्कार का सम्मान कीजिए। जी जान से लडि़ए, अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध। हम अगर लेखक हैं तो योद्धा पहले हैं।

साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कुलबर्गी की हत्या के बाद अकादमी द्वारा शोक संदेश जारी न करने का खंडन करते हुए कहा कि विचारधारा के आधार पर किसी भी लेखक की हत्या किए जाने का हम विरोध करते हैं।

साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ने एक बातचीत में बताया कि कुछ लोग इसे राजनीतिक रंग दे रहे हैं और गलत तरीके से इसे प्रस्तुत किया जा रहा है। अकादमी ने प्रसिद्ध कन्नड लेखक की हत्या के बाद बंगलुरु में ही एक बड़ी शोक सभा का आयोजन किया था, जिसमें साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार, जो स्वयं कन्नड के प्रतिष्ठित लेखक हैं, उन्होंने कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी।


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