गुरुग्राम मेयर चुनाव में महिलाओं ने मारी बाजी, क्या- यही है बदलते समाज का स्वरूप
देश की रक्षामंत्री किसी महिला का बनना, 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ', 'सेल्फी विद डॉटर' जैसी मुहिम ने देश में महिलाओं के प्रति एक नया नजरिया दिया और बदलाव भी देखने के मिल रहा है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। महिलाएं सशक्त होंगी तो पूरा समाज मजबूत बनेगा। महिलाएं किसी भी समाज का मूल हैं और बिना इनकी भागीदारी के समाज की कल्पना ही बेमानी है। आज किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं हैं। कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं और हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है।
भारत में महिलाओं के लेकर नजरिया बदला है। केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद महिलाओं समाज में बराबरी दिलाने के लिए लेकर प्रयासों में तेजी आई है। उदाहरण के तौर पर ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दे को देखा जा सकता है जिसे लेकर भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना नजरिया रखा।
देश की रक्षामंत्री किसी महिला का बनना, 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ', 'सेल्फी विद डॉटर' जैसी मुहिम ने देश में महिलाओं के प्रति एक नया नजरिया दिया और बदलाव भी देखने के मिल रहा है। इसी कड़ी में गुरुग्राम में हुए मेयर चुनाव को भी देखा जा सकता है।
मेयर चुनाव में महिलाओं का कब्जा
गुरुग्राम मेयर चुनाव में तीनों पदों पर इस बार महिलाओं का कब्जा हो गया है। भाजपा की मधु आजाद को सर्वसम्मति से गुरुग्राम की मेयर चुना गया है, जबकि सुनीता यादव को डिप्टी मेयर और प्रोमिला गजे कबलाना सीनियर डिप्टी मेयर चुनी गई हैं। मेयर के लिए मधु आजाद और शीतल बागड़ी नाम शुरू से चल रहा था, लेकिन बाजी मुध ने मारी। सियासी तौर इसे अहम संदेश के तौर पर देखना बेहद जरूरी है। यह पहली बार नहीं है जब भाजपा ने महिला उम्मीदवारों पर भरोसा दिखाया है इससे पहले दिल्ली नगर निगम में भी कमोबेश कहानी कुछ ऐसी ही थी।
क्या कहती है ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट
यहां बता दें कि डब्ल्यूईएफ की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2017 के मुताबिक भारत ने महिला और पुरुषों के मामले में 67 फीसदी अंतर पाटने में सफलता हासिल की है। लेकिन यह सफलता चीन और बांग्लादेश से भी फीकी है। इस इंडेक्स में बांग्लादेश 47वें और चीन 100वें स्थान पर रहा।
भारत की रैंकिंग 2006 के मुकाबले दस पायदान गिरी
भारत की रैंकिंग 2006 के मुकाबले दस पायदान गिरी है। यह इंडेक्स 2006 में ही शुरू किया गया था। इंडेक्स की शुरुआत से पहली बार पूरी दुनिया में जेंडर गैप के मामले में हालात सुधरने के बजाय बिगड़ी है। खासकर स्वास्थ्य, शिक्षा, कार्यस्थल और राजनीति इन चारों क्षेत्रों में महिला व पुरुषों के बीच खाई और चौड़ी हुई है।
महिला व पुरुषों के बीच खाई पाटने में वैश्विक स्तर पर 100 साल लगेंगे
रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक से धीरे-धीरे ही सही लेकिन लगातार खाई कम हो रही थी। लेकिन यह क्रम इस साल टूट गया और पहली बार खाई और चौड़ी होती दिखाई दी। रिपोर्ट का कहना है कि इस साल की रफ्तार को देखकर महिला व पुरुषों के बीच खाई पाटने में वैश्विक स्तर पर 100 साल लगेंगे। जबकि पिछले साल की बेहतर रफ्तार से 83 साल लगते। कामकाज के दौरान बराबरी के मामले में स्थिति और ज्यादा खराब है। इस अंतर को पाटने में 217 साल लगेंगे।
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