कैसे गुजारे पाकिस्तान में एक माह, रोते-रोते उज्मा ने सुनाई अपनी व्यथा
उज्मा ने कहा- पाकिस्तान मौत का कुआं है। वहां जाना बेहद आसान है, लेकिन लौटना नामुमकिन। अब कई सवाल उठते हैं, मसलन कौन है उज्मा ? वो कैसे दिल्ली से मलेशिया और फिर पाकिस्तान कैसे पहुंची ?
नई दिल्ली [ जेएनएन ] । करीब एक महीने तक पाकिस्तान में रहीं दिल्ली की उज्मा अहमद (20) तमाम मशक्कत के बाद भले ही अपने वतन भारत लौट आई हो, लेकिन पाकिस्तान की गंदी यादें उसके जेहन में इस कदर घर कर गई है कि वह उससे मुक्त नहीं हो पा रही है। उज्मा ने कहा- पाकिस्तान मौत का कुआं है। वहां जाना बेहद आसान है, लेकिन लौटना नामुमकिन। अब कई सवाल उठते हैं, मसलन कौन है उज्मा ? वो कैसे दिल्ली से मलेशिया और फिर पाकिस्तान कैसे पहुंची ? वहां कैसे फंसी ? और उसे कैसे भारत लाया गया ?
पाकिस्तान में उज्मा के साथ क्या हुआ
उज्मा ने कहा, पाकिस्तान में ताहिर ने मुझे धोखे से नींद की गोलियां दीं। किडनैप किया और बुनेर ले गया। तीन मई को ताहिर ने बंदूक की नोंक पर निकाहनामे पर साइन करा लिए। फिजिकली और मेंटली टॉर्चर किया। बता दें कि बुनेर पाकिस्तान के कबायली जिले खैबर-पख्तूनख्वा का हिस्सा है। यहां बेहद गरीबी है। यहां आज भी तालिबान और जमींदारों का राज चलता है। उज्मा समझ गईं कि वो यहां बुरी तरह फंस चुकी हैं। लेकिन, उन्होंने बेहद अक्लमंदी से काम लिया।
पाकिस्तानी शख्स के झांसे में कैसे आई उज्मा
उज्मा मूल रूप से दिल्ली की रहने वाली हैं। भारत लौटने के बाद गुरुवार को उज्मा ने बताया, मैं अनाथ और एडॉप्टेड डॉटर हूं। अप्रैल में इंटरनेट के जरिए उज्मा की मुलाकात ताहिर नाम के पाकिस्तानी शख्स से हुई।
ताहिर ने उज्मा को मलेशिया में जॉब का ऑफर दिया। उज्मा मलेशिया पहुंचीं। ताहिर वहां टैक्सी ड्राइवर था। ताहिर से मुलाकात के बाद उज्मा भारत लौटीं। एक मई को वो रिश्तेदारों से मिलने पाकिस्तान गईं। यहां फिर उनकी ताहिर से मुलाकात हुई।
इंडियन हाईकमीशन में कब और कैसे पहुंची उज्मा
उज्मा के इंडियन हाईकमीशन पहुंचने की कहानी दिलचस्प है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उज्मा ने ताहिर से कहा कि उन्हें कुछ डॉक्यूमेंट्स लेने के लिए इंडिया जाना होगा। ताहिर को शक नहीं हुआ क्योंकि उज्मा ने उससे कहा था कि वो उसे भी दिल्ली ले जाएंगी। ताहिर और उज्मा पांच मई को इंडियन एम्बेसी पहुंचे।
उज्मा वीजा विंडो पर पहुंची। ताहिर, बाहर बैठा रहा। उज्मा ने विंडो पर मौजूद स्टाफ से कहा, भारतीय हूं, मदद कीजिए। एक पल चुप रहने के बाद स्टाफ ने उसे एम्बेसी के अंदर ले लिया। वहां जीपी सिंह (डिप्लोमैट) मौजूद थे। उन्होंने उज्मा से पूरी बात पूछी।
उज्मा के मुताबिक, मैं एम्बेसी सिर्फ एक जोड़ी कपड़ों में गई थी। जीपी सर ने मेरे लिए हर तरह का अरेंजमेंट किया। वहां की फीमेल स्टाफ ने मुझे ऐसे रखा जैसे मैं उनके परिवार की ही बेटी हूं।
आखिर कौन है ताहिर
उज्मा एम्बेसी के अंदर पहुंचकर सेफ हो गईं। ताहिर कई घंटे तक बाहर बैठा रहा। बाद में पूछने पर स्टाफ ने उसे बताया कि उज्मा उसके साथ नहीं जाना चाहतीं। ताहिर ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। मामला इस्लामाबाद के लोअर और फिर हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकमीशन ने शाहनवाज को अपना (उज्मा का) वकील बनाया। एक सुनवाई के दौरान तो ताहिर कोर्ट ही नहीं पहुंचा।
पाकिस्तान में धोखे का शिकार हुई उज्मा को बचपन से ही प्यार के लिए दर-दर भटकना पड़ा। बचपन में मां-बाप के आंचल से दूर रही तो शादी के बाद ससुराल वालों के प्यार का सुख नहीं मिल सका। उज्मा जब दो महीने की थी तो उसके पिता उसकी मां को तलाक देकर कामकाज के लिए विदेश चले गए थे।
उज्मा को उसकी दादी ने पाला। यही वजह है कि वह अपने को अनाथ मानती है और माता-पिता को मरा मानकर अपने दादा-दादी को ही माता-पिता मानती है। उज्मा पाकिस्तान को मौत के कुएं जैसा मान रही है, लेकिन उसके करीबी लोगों ने बताया कि उसने अपने घर में ही कम कठिनाई नहीं उठाई।
अनाथ के पीछे का सच
परिवार के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह हैरान है कि उज्मा टीवी चैनल पर बयान दे रही है कि वह अनाथ है, जबकि उसके पिता कबीर अहमद और मां शहनाज जिंदा हैं। वह ब्रह्मपुरी इलाके में रहते हैं।
उन्होंने बताया कि जब उज्मा के पिता ने तलाक दिया था तब वह दो माह की थी। पिता विदेश और मां शहनाज उत्तर प्रदेश स्थित सहारनपुर के एक गांव में अपनी मां के घर चली गई थी।
इसलिए उज्मा की दादी ने ही उसको पाल, इस दौरान विदेश से उज्मा के पिता उसकी पढ़ाई के लिए खर्च भेजते रहे। 18 साल बाद कबीर स्वदेश लौटे और एक बार फिर से शहनाज से शादी रचाई।
शादी के बाद वह तो एक हो गए, लेकिन उज्मा को अपने पास रखने से इंकार कर दिया। इसके पीछे एक पारिवारिक विवाद है।
कबीर से बात करने की कोशिश की तो वह उज्मा का नाम सुनते ही भड़क गए और कहा कि उज्मा से उनका कोई रिश्ता नहीं है, वह हमें मरा हुआ समझती और हम उसे।
माता-पिता के बारे में जब फोन पर उज्मा से दो बार बात की गई तो उन्होंने इसका उत्तर नहीं दिया और कहां वह काफी थक चुकी हैंं, बाद में बात करेंगी।
उज्मा के चाचा वसीम ने कबीर व शहनाज को उज्मा का माता-पिता होने की बात से इंकार किया है, लेकिन उसके परिवार के दूसरे सदस्यों का कहना है कबीर गली नंबर 13 ब्रह्मपुरी में रहते हैं। इलाके के लोगों का कहना है कि जब पिता विदेश से लौटे तभी उज्मा ने उनको पिता मानने से इंकार कर दिया था। इसके साथ वह मां से भी नाराज थी।
डेढ़ साल पहले हुई थी मां से लड़ाई
इस समय जहां पर उज्मा के माता-पिता रहते हैं वहां के स्थानीय निवासियों ने बताया कि करीब डेढ़ साल पहले उज्मा की शहनाज से किसी बात को लेकर गली में ही लड़ाई हुई थी। वजह पारिवारिक थी, लोगों ने दोनों को समझाकर अपने-अपने घर भेज दिया था। पड़ोसी ने बताया कि कबीर कुछ समय पहले ही विदेश से लौटा है और वह अपनी पत्नी के साथ रहता है। उज्मा या अपने किसी रिश्तेदार से नहीं मिलता है।
ऊंचे ख्यालों वाली रही है उज्मा
उज्मा जिस जगह पर अपनी दादी के साथ रहती है वहां के स्थानीय निवासियों ने बताया कि बचपन से ही उज्मा ऊंचे ख्यालों की रही है उसे विदेश घूमना और शॉपिंग करना बहुत पसंद रहा है। अकसर उज्मा विदेश भी जाया करती है।