इन आंखों में रोशनी नहीं, सवेरा ही सवेरा है, साथियों का भी खूब मिला साथ
छात्रावास में न केवल जरूरतमंद युवतियों के निशुल्क रहने और खाने-पीने की व्यवस्था है, बल्कि पढ़ाई और नौकरी के लिए भी हरसंभव सहायता की जाती है।
नई दिल्ली [संतोष शर्मा]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में कहा था कि शारीरिक रूप से विकलांगता कमजोरी नहीं, बल्कि ऐसे लोगों में अतिरिक्त शक्ति होती है। इसी अतिरिक्त शक्ति का भान करा रहे हैैं नेत्रहीन अनिल कुमार वर्मा।
राजधानी आने के बाद उन्हें कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ीं। नेत्रहीन पुरुषों की समस्या समझकर उन्हें नेत्रहीन युवतियों की परेशानियां और बड़ी लगी। यही सोच कर उन्होंने अन्य राज्यों से दिल्ली आने वाली युवतियों का हरसंभव सहयोग करने को अपना लक्ष्य बना लिया।
इस जज्बे को लेकर उन्होंने साथियों से बात की और उनके लिए छात्रावास खोल दिया। उनके द्वारा द्वारका में चलाए जा रहे छात्रावास में न केवल जरूरतमंद युवतियों के निशुल्क रहने और खाने-पीने की व्यवस्था है, बल्कि पढ़ाई और नौकरी के लिए भी हरसंभव सहायता की जाती है।
कंप्यूटर टाइपिंग और ब्रेल लिपि की ट्रेनिंग
दाखिला से लेकर पढ़ाई पूरी करने के बाद वे क्या करें, इस संबंध में उनको अनिल वर्मा परामर्श देते हैं, साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों के बारे में भी बताया जाता है। कंप्यूटर टाइपिंग और ब्रेल लिपि की ट्रेनिंग भी दिलाई जाती है। नतीजतन छात्रावास की 40 युवतियां वर्तमान में सरकारी नौकरी कर रही हैं। अस्पताल में टेलीफोन ऑपरेटर, स्कूल में शिक्षिका से लेकर कॉलेज में व्याख्याता के पद पर वे कार्यरत हैं।
नेत्रहीन छात्राओं के लिए छात्रावास
अनिल बताते हैं कि सन 2005 में उन्होंने नेत्रहीन छात्राओं के लिए छात्रावास शुरू किया था। वर्तमान समय में यहां 13 युवतियां हैं, जबकि 60 से अधिक आत्मनिर्भर होकर जा चुकी हैं। अधिकतर युवतियां झारखंड, बिहार, मेघालय के अलावा उत्तर प्रदेश की हैं। नेपाल की दो युवतियां भी यहां रह चुकी हैैं।
ऐसे निकलता है छात्रावास का खर्च
छात्रावास का खर्च अलग-अलग लोग उठाते हैं। कोई दूध व राशन का खर्च तो कोई छात्रावास का किराया देता है। बचा हुआ खर्च अनिल अपनी कमाई से पूरा करते हैं। उन्होंने ब्लाइंड पर्सन एसोसिएशन संगठन भी बनाया है। अनिल वर्तमान में उत्तम नगर स्थित सर्वोदय बाल विद्यालय में उप प्रधानाचार्य हैं। उनके परिवार में नेत्रहीन पत्नी और एक बच्चा है।
अपने प्रयास में सम्मानित भी हुए हैं अनिल
स्कूल और परिवार के बीच से रोजाना कुछ घंटे निकाल कर सुबह व शाम छात्रावास जाना उनकी दिनचर्या में शामिल है। इन प्रयासों से उन्हें कई संगठनों द्वारा प्रशंसा पत्र के अलावा टार्च बेरियर ऑफ द्वारका का सम्मान भी मिल चुका है। अनिल मूल रुप से उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले हैैं। जब वे 5वीं कक्षा में थे तभी उनकी आंख की रोशनी चली गई थी। बाद में उन्होंने लखनऊ अंध विद्यालय से 10वीं जबकि दिल्ली के रामजस कॉलेज से हिंदी में परास्नातक की पढ़ाई पूरी की।
नेत्रहीन युवतियों की कराई शादियां
अनिल ने युवतियों की शादियां भी कराईं। उनकी संस्था 23 नेत्रहीन युवतियों की शादी करा चुकी है। इसके अलावा उन्होंने नेत्रहीनों के अधिकार के लिए कई प्रदर्शन और रैलियां की। अनिल बताते हैैं कि विरोध के बाद राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनों में किराए में नेत्रहीनों को 50 फीसद की छूट दी गई। दिल्ली में नेत्रहीन महिला के लिए छात्रावास के निर्माण की उनकी मांग पर भी काम शुरू हो गया है।
यह भी पढ़ें: ...जब उमड़ पड़े थे आजादी के मतवाले, गूंज उठा था 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा
यह भी पढ़ें: पुरानी दिल्ली को स्वस्थ बना रहे हैं डॉ. जुबेर, 3 साल में 2 लाख लोगों का हुआ इलाज