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चेतन के उपन्यास 'फाइव प्वाइंट समवन' डीयू में शामिल करने पर बवाल

डीयू में कार्यकारी समिति के सदस्य डॉ. राजेश झा का कहना है कि पाठ्यक्रम में इस तरह के किसी बदलाव का प्रस्ताव कार्यकारी समिति में नहीं आया था। ऐसे में इस पर संशय है।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 25 Apr 2017 07:41 AM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2017 09:04 PM (IST)
चेतन के उपन्यास 'फाइव प्वाइंट समवन'  डीयू में शामिल करने पर बवाल
चेतन के उपन्यास 'फाइव प्वाइंट समवन' डीयू में शामिल करने पर बवाल

नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में चेतन भगत के उपन्यास 'फाइव प्वाइंट समवन' को शामिल किया गया है। ऐसा कहा जा रहा है कि इसी सत्र से डीयू के छात्र स्नातक में अंग्रेजी विषय में चेतन भगत का उपन्यास पढ़ेंगे। उधर, इसको लेकर मतभेद भी सामने आने लगे हैं। 

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वहीं, इस खबर पर लेखक चेतन भगत ने भी ट्वीट कर इसकी पुष्टि की और डीयू को धन्यवाद दिया। उन्होंने ट्वीट किया, मेरे लिए यह सम्मान की बात है कि डीयू ने मेरे उपन्यास को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है।इस संबंध में जब डीयू में अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष क्रिस्टेल आर डेवाडासन को फोन किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।

वहीं, चेतन भगत के उपन्यास को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर सवाल भी उठने लगे हैं। रामजस कॉलेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक डॉ. देबराज मुखर्जी कहते हैं कि मैं चेतन भगत सहित अन्य लेखकों को शामिल करने के पक्ष में हूं। छात्रों को उपन्यास से उपजे सरोकार और सवाल से जूझना चाहिए। मैं इसके पक्ष में भी हूं कि जब भारत में बड़ी संख्या में अंग्रेजी के लेखक हैं तो पाठ्यक्रम में 50 फीसद लेखक भारतीय हों, लेकिन अमिताभ घोष, टैगोर, मुल्कराज आनंद, सरोजिनी नायडू सहित अन्य लेखकों को छोड़कर चेतन भगत का उपन्यास शामिल करना पूर्व के लेखकों को कम आंकना है।

दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक डॉ. ललित कुमार कहते हैं कि मैं चेतन भगत के उपन्यास को पाठ्यक्रम में शामिल करने को बुरा नहीं मानता। लेखक को खुद पता नहीं होता है कि उसकी कौन सी कृति क्लासिक हो जाएगी।

अपने समय में कई लोकप्रिय लेखक बाद में कम पढ़े गए और पहले जो रचनाएं कम पसंद की गईं वह बाद में क्लासिक साबित हुईं। जैसे कवि विलियम वर्डस वर्थ अपने समय में कम लोकप्रिय थे और साउदे अधिक लोकप्रिय थे। बाद में वर्डस की कृतियों को लोगों ने पसंद किया।

इस बाबत दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यकारी समिति के सदस्य डॉ. राजेश झा का कहना है कि अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में इस तरह के किसी बदलाव का प्रस्ताव कार्यकारी समिति में नहीं आया था।

ऐसे में अभी यह लागू होगा कि नहीं इस पर संशय है। वहीं कुछ शिक्षकों का कहना है कि इस संबंध में अंतिम निर्णय ले लिया गया है और कॉलेजों को यह निर्देश भी दिया गया है कि वे यह उपन्यास पढ़ाएं।


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