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Inside Story: पढ़िए- 10 महीने बाद भी क्यों नहीं खिल सका AAP-कांग्रेस गठबंधन का फूल

बीते चार-पांच दिनों से दोनों ही पार्टियों के आला नेताओं के ट्वीट और बयानों से भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि AAP-कांग्रेस में गठबंधन शायद न ही हो पाए।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 12:20 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 01:23 PM (IST)
Inside Story: पढ़िए- 10 महीने बाद भी क्यों नहीं खिल सका AAP-कांग्रेस गठबंधन का फूल
Inside Story: पढ़िए- 10 महीने बाद भी क्यों नहीं खिल सका AAP-कांग्रेस गठबंधन का फूल

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Lok Sabha Election 2019: लोकसभा चुनाव-2019 के तहत 12 मई को दिल्ली  में होने वाले मतदान के लिए तैयारी जोरों पर हैं। जहां आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) उम्मीदवार को ऐलान करके चुनाव प्रचार में जुटी है, तो कांग्रेस प्रत्याशियों का चयन कर चुकी है, बस ऐलान शेष है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) ने उम्मीदवारों को लेकर अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं। इस बीच दिल्ली के मौजूदा सियासी माहौल में AAP-कांग्रेस गठबंधन टूट चुका है।

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दरअसल, जिस सियासी तालमेल के बीज करीब दस माह पहले बोए गए थे, उसमें अभी तक भी फूल नहीं खिल पाए हैं। आलम यह है कि नामांकन के तीन दिन शेष रह गए हैं, जबकि आपसी मतभेदों और सियासी महत्वाकांक्षा के पेच में गठबंधन की फांस फंसती जा रही है। बीते चार-पांच दिनों से दोनों ही पार्टियों के आला नेताओं के ट्वीट और बयानों से भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि AAP-कांग्रेस में गठबंधन शायद न ही हो पाए।

इसलिए बोए गए थे गठबंधन के बीज

AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल का गणित है कि पिछली बार लोकसभा में 46 फीसद वोट भाजपा, 33 फीसद आम आदमी पार्टी को और 15 फीसद वोट कांग्रेस को मिला था। AAP द्वारा ही कराए गए एक सर्वे के मुताबिक, इस बार भाजपा 10 फीसद नीचे जाएगी। अगर यह 10 फीसद कांग्रेस को जाता है तो कांग्रेस 25 फीसद, AAP 33 फीसद और भाजपा 36 फीसद पर आ जाएगी और एक बार फिर से भाजपा जीत जाएगी। वहीं, अगर ये 10 फीसद आम आदमी पार्टी को मिलता है तो आम आदमी पार्टी का वोट 43 फीसद प्रतिशत हो जाएगा। ऐसे में दिल्ली की सातों सीट आम आदमी पार्टी जीत जाएगी। इसी विचार के साथ लोकसभा चुनाव 2019 के लिए AAP-कांग्रेस गठबंधन की सुगबुगाहट पिछले वर्ष जून माह में शुरू हुई थी।

इस तरह बढ़ती गई गठबंधन की सियासी बेल

करीब दस माह पहले इस गठबंधन की चर्चा शुरू हुई तो कार्यकर्ताओं के विरोध के चलते कुछ ही दिनों में इस चर्चा को दबा दिया गया। AAP नेता भी चुप हो गए और तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने तो गठबंधन के खिलाफ बाकायदा प्रस्ताव भी पारित कर दिया, हालांकि दोनों पार्टियों में अंदर ही अंदर गठबंधन की रणनीति बनती रही। दिसंबर में इस चर्चा तो तब फिर हवा मिल गई जब शीला दीक्षित ने एक बयान दे दिया कि अगर पार्टी आलाकमान गठबंधन का निर्णय लेते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। सूत्रों के मुताबिक, गठबंधन की संभावना के चलते ही माकन ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। शीला के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही फिर से गठबंधन की चर्चा शुरू हो गई, लेकिन फरवरी माह में जब दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र में आप ने सिख दंगा प्रकरण में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने का प्रस्ताव रखा तो कांग्रेस में फिर गठबंधन की खिलाफत शुरू हो गई। इसके बाद से लगातार गठबंधन के समीकरण बनते बिगड़ते रहे हैं। चार बार स्वयं राहुल गांधी प्रदेश कांग्रेस के नेताओं संग बैठक कर चुके हैं। वहीं दोनों पार्टियों के नेता भी समय-समय पर बात करते आ रहे हैं।

कांग्रेस का मकसद चुनावी जीत, कांग्रेस का मकसद सियासी विस्तार

कांग्रेस के कुछ नेता इस गठबंधन के जरिये दिल्ली में लोकसभा चुनाव के दौरान अपना खाता खोलना चाहते हैं। दरअसल, दोनों ही पार्टियों का वोट बैंक एक है। ऐसे में फिलहाल दिल्ली की सत्ता में शून्य पर चल रही कांग्रेस का मानना है कि अगर अलग- अलग लड़ेंगे तो वोट भी बंट जाएंगे, जबकि एक साथ लड़ने पर ऐसा नहीं होगा। दूसरी तरफ आप भी इस गठबंधन के जरिये उक्त सोच तो रखती ही है, साथ ही वह अन्य राज्यों में अपना विस्तार भी चाहती है। उसका मानना है कि कांग्रेस की मदद से अगर उसे हरियाणा में एक-दो सीट भी मिल गई तो वहां भी उसका जनाधार बन जाएगा।

गठबंधन के विरोधी और पक्षधर

आम आदमी पार्टी से तो अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, गोपाल राय इत्यादि सभी प्रमुख नेता कांग्रेस से गठबंधन के पक्ष में रहे हैं। इसकी एक प्रमुख वजह दिल्ली में AAP का दिन- ब-दिन गिरता राजनीतिक ग्राफ भी है। दूसरी तरफ कांग्रेस में वरिष्ठ पार्टी नेता अहमद पटेल और कपिल सिब्बल सहित प्रदेश प्रभारी पीसी चाको, पूर्व अध्यक्ष अजय माकन, सुभाष चोपड़ा, अरविंदर सिंह लवली, ताजदार बाबर इत्यादि गठबंधन के प्रबल पक्षधर रहे हैं तो शीला दीक्षित, हारून युसूफ, देवेंद्र यादव, राजेश लिलोठिया, रमाकांत गोस्वामी, मंगतराम सिंघल, योगानंद शास्त्री इत्यादि इसके खिलाफ रहे हैं।

दिल्ली में होगा त्रिकोणीय मुकाबला

अगर AAP-कांग्रेस गठबंधन नहीं होता तो दिल्ली में पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला होगा। AAP ने तो अपने सातों प्रत्याशी घोषित भी कर दिए हैं और उनका नामांकन भी शुरू हो गया है। कांग्रेस संभवत: शुक्रवार को अपने प्रत्याशी घोषित कर सकती है। एक दो दिन में भाजपा के उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी जाएगी।

पीसी चाको ने AAP को घेरा

प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको ने गठबंधन को लेकर AAP पर पूर्व में बनी सहमति से पीछे हटने का आरोप लगाया है। साथ ही उन्होंने आप-कांग्रेस गठबंधन की संभावनाओं को भी लगभग खत्म करार दिया है। बृहस्पतिवार की सुबह गठबंधन के मुद्दे पर चाको ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की। करीब 20 मिनट तक चली इस मुलाकात में चाको ने राहुल को गठबंधन पर पहले बनी सहमति से आप के पीछे हटने के बारे में अवगत कराया। उन्होंने बताया कि कुछ ही दिन पहले AAP सांसद संजय सिंह के साथ हुई बैठक में अकेले दिल्ली के लिए भी सहमति बन गई थी और चार-तीन के फॉर्मूले पर भी। फिर बाद में आप अपनी इस सहमति से पलट गई। अब वह दिल्ली में पांच-दो का फॉर्मूला चाह रही है और दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा में भी गठबंधन करना चाहती है।

मुलाकात के बाद चाको ने पत्रकारों से कहा कि हरियाणा के बाद दिल्ली में भी आप के साथ गठबंधन की संभावना लगभग खत्म हो गई है। उन्होंने कहा, AAP नेता संजय सिंह के साथ चर्चा में तीन-चार के फॉर्मूले पर सहमति बनी थी। लेकिन, आज सुबह आप अपनी उस सहमति से पीछे हट गई। मुझे नहीं पता कि क्या वजह है। AAP को अब दिल्ली की जनता को जवाब देना होगा। पीसी चाको ने कहा कि हमने दिल्ली की सातों सीटों के उम्मीदवार फाइनल कर दिए हैं। सभी सीटों से पार्टी के वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ेंगे। इनकी घोषणा बहुत ही जल्द कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कांग्रेस पार्टी दिल्ली की सातों सीटों पर दमदार तरीके से लड़ेगी और सभी सीटों पर विजय पताका फहराएगी।

गठबंधन पर सहमति नहीं बनने में यह भी रहे हैं पेच

आप द्वारा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित को भरोसे में न लेना भी एक बड़ी वजह रही है। एक अन्य महत्वपूर्ण कारक यह भी रहा कि आप संयोजक अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस के नेता बिल्कुल भी भरोसेमंद नहीं मानते। गठबंधन नहीं करने के पीछे एक तर्क यह भी दिया गया कि दिल्ली का मतदाता हमेशा एकतरफा वोट करता है। अगर वह कांग्रेस से नाराज है तो आप और कांग्रेस के गठबंधन से उसकी नाराजगी खत्म नहीं हो जाएगी। कांग्रेस नेता आप संयोजक केजरीवाल पर भरोसा करने को भी कतई तैयार नहीं है। सन 2013 में सरकार बनाने में केजरीवाल की मदद करने वाले कांग्रेस नेताओं ने बैठक में भी कहा कि केजरीवाल अपनी किसी बात पर कायम नहीं रहते। दिल्ली में पार्टी की घटती विश्वसनीयता और गिरते ग्राफ का तर्क भी दिया गया। यह भी तथ्य रखा गया कि नगर निगम और कई उप चुनावों के बाद कांग्रेस का मत फीसद 26.24 फीसद तक पहुंच गया है। इसके विपरीत आप का मत फीसद पहले से घट गया है। इसलिए केजरीवाल का गणित भ्रामक है, सच्चाई से पूर्णतया अलग है।

पीसी चाको (प्रदेश प्रभारी, दिल्ली कांग्रेस) का कहना है कि भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस ने देश भर में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर गठबंधन की नीति बनाई है। दिल्ली में भी हम चार तीन के फॉर्मूले पर AAP के साथ गठबंधन करने को तैयार हैं। लेकिन, AAP दिल्ली में पांच सीटें मांग रही है तो दिल्ली से बाहर भी गठबंधन करना चाहती है। यह कांग्रेस को स्वीकार नहीं है।

गोपाल राय (प्रदेश संयोजक, आम आदमी पार्टी) के मुताबिक, मोदी और शाह की जोड़ी को हराने के लिए गठबंधन बहुत जरूरी है, लेकिन कांग्रेस को यह समझ नहीं आ रहा। वह केवल दिल्ली में समझौता करके हरियाणा और पंजाब में भाजपा को चुनाव जीतने देना चाहती है। ऐसे में गठबंधन का मकसद ही पूरा नहीं होता।

इस पूरे मसले पर विजय गोयल (केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा) नेता का कहना है कि AAP-कांग्रेस के संभावित गठबंधन में तो पहले से ही इतनी गांठें पड़ चुकी हैं कि आगे क्या होगा, भगवान ही जाने। इनकी नीयत में खोट है। दोनों पार्टियां मिलकर जनता को धोखा देने की कोशिश कर रही हैं। दोनों अपने-अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगे हुए हैं, इसीलिए कुछ तय नहीं कर पा रहे हैं।

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