डाटर्स डायरी : सिर झुकाकर सहने के बजाय आवाज बुलंद करें
मैं दिल्ली की रहने वाली लड़की हूं और कॉलेज जाने-आने के लिए सार्वजनिक परिवहन प्रयोग करती हूं।
मैं दिल्ली की रहने वाली लड़की हूं और कॉलेज जाने-आने के लिए सार्वजनिक परिवहन प्रयोग करती हूं। डीटीसी बसें, मेट्रो, लोकल ट्रेन अमूमन इन सभी से मेरा रोज का वास्ता है और जाम, दौड़भाग, भारी भीड़ तो सौगात की तरह मिलतीं हैं। इसके साथ ही हम लड़कियों को कई असहज स्थितियों का सामना करना पड़ता है। ये स्थितियां कभी किसी की नजर से तो कभी किसी की नीयत से पैदा होती हैं। फिर चाहे मैंने पूरे कपड़े पहने हों या लोगों के अनुसार कहे जाने वाले छोटे कपड़े। भीड़ के बीच किसी लड़की का होना ही बदनीयत लोगों के लिए रोमांचक हो जाता है।
बसें, ट्रेनें जब खचाखच भरीं होतीं हैं तो यहां तथाकथित पुरुषों को अपना पौरुष दिखाने का मौका मिलता है। कई बार तो बुजुर्ग भी अपनी उम्र-अनुभव ताख पर रखकर ओछी और अश्लील हरकतों पर उतर आते हैं। समस्या महज परिवहन की होती तो हम ऐसी भीड़ में जाते ही नहीं, लेकिन ये लोग हर जगह फैले हुए हैं। स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, बाजार हर तरफ। जगह का नाम लेते जाइए और बचाव के विकल्प चुनते जाइए। सोशल मीडिया से तो ऊपर वाला बचाए। ये अनसोशल लोगों का सबसे बड़ा अड्डा है। ट्विटर से लेकर क्विकर तक, हर तरफ लड़कियों के लिए भद्दी टिप्पणियां और अश्लील संदेशों की सुनामी उठती रहती है।
विडंबना है कि जो देश शक्ति और भक्ति के लिए मातृ-देवी स्वरूप में दुर्गा व काली मां की आराधना करता है, उसी देश में हमें मौके दर मौके अपमानित होना पड़ता है। सोच कर देखिए, हर 34 मिनट में एक दुष्कर्म, 4 दिन में 92 औरतों से दुष्कर्म कर उनकी इज्जत के साथ खिलवाड़ और छेड़छाड़ के तो अनगिनत मामले। ये वही देश है, जहां सरस्वती, सीता, सावित्री, सती सभी महिलाएं पूजनीय हैं। बस कहने भर को हर लड़की इनका स्वरूप है, लेकिन मानने को कोई तैयार नहीं है।
ऐसा कब तक? कितने दिन और कितनी पीढ़ी तक चलेगा? कुछ कह नहीं सकते। इनके खत्म होने का कोई समय निर्धारित हो तो संतोष कर लें कि चलो इतने दिन और सही, लेकिन ये तो पीढि़यों से चला आ रहा है।
आखिर कब तक कोई लड़की बिना डरे-सहमे घर से बाहर निकलेगी? कब एक लड़की के माँ-बाप बिना किसी तनाव अपनी बेटियों को घर की चौखट से बाहर भेज पाएंगे? कब तक लोग लड़कियों की इज्जत करना सीखेंगे?
सवाल कई हैं, लेकिन इनके जवाब शून्य। फिर भी एक बात है, ये समस्याएं तो हैं हीं, लेकिन इनके खिलाफ हमारा आवाज न उठाना सबसे बड़ी समस्या है। हम हर तकलीफ में बोलना शुरू करें। अपनी आवाज बुलंद करें। चुप न रह जाएं तो ये ऐसी अश्लील ताकतों पर सबसे बड़ी लगाम होगी।
हाल ही कि बात है। मैं अपनी दो सहेलियों के साथ घूमने गई थी। एक जगह हम तीनों सेल्फी ले रहे थे। इतने में मेरी नजर कुछ दूर खड़े दो लड़कों पर गई, जो हमें घूर रहे थे। पहले मैंने उन्हें नजरअंदाज किया, लेकिन मेरी सहेलियों ने भी देखा कि उनका घूरना जारी था। जब पानी सिर से निकल गया तो हमने उन्हें इशारों में डपटते हुए पूछा, क्या देख रहा है? क्या बात है? इतना सुनते ही दोनों सकपका गए और मजाल जो उन्होंने दोबारा देखा हो। तो मेरी प्यारी दोस्तों और बहनों, ऐसी गंदी अश्लील हरकतों के बीच से सिर झुकाकर निकल जाना बहुत हुआ। समय है कि हम मिल कर अपनी आवाज बुलंद करें और ऐसे बेशर्म समाज को जमीन दिखाएं, जो लड़कियों की इज्जत न करना जानता हो। शिक्षा, व्यवसाय, प्रशासन हम हर जगह बेहतर कर रहे हैं तो यहां भी अपनी ताकत पहचान कर आगे बढ़ना होगा।
-सृष्टि माकन
राजधानी कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी