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देसी कट्टों के सौदागर सहित तीन हत्थे चढ़े

जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : उत्तर-पूर्वी जिला पुलिस की स्पेशल स्टॉफ टीम ने देसी कट्टों के एक

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Jun 2017 01:00 AM (IST)Updated: Tue, 20 Jun 2017 01:00 AM (IST)
देसी कट्टों के सौदागर सहित तीन हत्थे चढ़े
देसी कट्टों के सौदागर सहित तीन हत्थे चढ़े

जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : उत्तर-पूर्वी जिला पुलिस की स्पेशल स्टॉफ टीम ने देसी कट्टों के एक बड़े सौदागर सहित तीन लोगों को धर-दबोचा है। पकड़े गए आरोपियों की पहचान अशोक विहार लोनी निवासी कस्मुद्दीन उर्फ कस्मू (55), मोहन नगर, गाजियाबाद निवासी अजय कुमार (41) और सरस्वती विहार, लोनी, निवासी हाशिम उर्फ सोनू (19) के रूप में हुई है। कस्मू इस गिरोह का सरगना है और उसके नाम पर ही कट्टों की बिक्री होती थी। कस्मू ने लोनी में बकायदा कट्टों की फैक्ट्री बना ली थी। आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने फैक्ट्री पर छापा मारा। पुलिस ने कुल 16 कट्टे, 38 कारतूस, कट्टे बनाने के पा‌र्ट्स और मशीन बरामद की है।

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संयुक्त पुलिस आयुक्त र¨वद्र यादव ने बताया कि पूर्वी रेंज में पुलिस ने अपराधियों पर नकेल कसने के लिए विशेष अभियान चला रखा है। कई अपराधी पकड़े गए हैं। इनके पास से कस्मू नामक कट्टे बरामद हुए। पूछताछ में पता चला कि कस्मू हथियारों का बड़ा सप्लायर है। इस बीच पुलिस को सूचना मिली कि इस गिरोह के कुछ सदस्य सीलमपुर आने वाले हैं। इस पर एसीपी संजय ¨सह की देखरेख में इंस्पेक्टर एशवीर ¨सह एसआइ जितेंद्र ¨सह, प्रमोद सहित अन्य की टीम गठित की गई। टीम ने मौके पर जाल बिछा मोटरसाइकिल पर पहुंचे कस्मू और अजय को दबोच लिया। पूछताछ में कस्मू ने बताया कि लोनी के अशोक विहार में उसकी कट्टे बनाने की फैक्ट्री है। अजय इसे दिल्ली-एनसीआर के बदमाशों को बेचता था। इनकी निशानदेही पर पुलिस ने हाशिम को भी दबोच लिया। बिहार और मध्यप्रदेश के बने हथियार 30 से 40 हजार रुपये में मिलते हैं, जबकि कस्मू का कट्टा चार से पांच हजार रुपये में बदमाशों को मिल जाता था। कस्मू ने बताया कि वह हथियार बनाने का कुछ सामान मेरठ से लाता था, जबकि बाकी वह दुकान पर खुद ही बना लेता था।

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तीन साल पहले लोनी में बनाया ठिकाना

मूलरूप से गांव पालदी, बागपत, उत्तर प्रदेश निवासी कस्मू ने तीन साल पहले लोनी में हथियार बनाने की फैक्ट्री शुरू की थी। कस्मू ने बताया कि कट्टा बनाना उसने अपने मुजफ्फरनगर निवासी साढ़ू रमजान से सीखा था। दस साल पहले रमजान की मौत के बाद कस्मू अपने गांव चला गया था। लेकिन तीन साल पहले वह लोनी में आ गया। यहां उसने कट्टे बनाने शुरू कर दिए।


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