यमुनापार के तमाम इलाकों में फिर गहराया जल संकट
जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : चुनावी माहौल के बावजूद यमुनापार में एक बार फिर भीषण गर्मी के चलते प
जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : चुनावी माहौल के बावजूद यमुनापार में एक बार फिर भीषण गर्मी के चलते पेयजल किल्लत की समस्या गहराती जा रही है। दु:खद यह है कि समस्या पिछले कई दिनों से निरंतर बनी हुई है। मगर, चुनावी माहौल देखते हुए न तो सत्ताधारियों ने इस बारे में कुछ करना मुनासिब समझा और न ही विरोधी दलों ने इस ओर ध्यान दिया।
आलम यह है कि खुद जल मंत्री कपिल मिश्रा की विधानसभा के कई इलाकों में पेयजल को लेकर संकट की स्थिति बनी हुई है। इस बारे में लगातार हर हिस्से से शिकायतें भी आ रही हैं, लेकिन सुनवाई करने वाला कोई नजर नहीं आया। हालांकि, मतदान की प्रक्रिया पूरी होते ही जल मंत्री ने दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों के साथ बैठक करने की सूचना जरूर दी। ऐसे में लोगों को थोड़ी उम्मीद तो जगी है, लेकिन इस बैठक का किस हद तक और कितनी जल्दी आमजन को लाभ मिलता है, कहना मुश्किल है।
इन इलाकों में है सर्वाधिक समस्या
यमुनापार में उत्तर पूर्वी दिल्ली के करावल नगर इलाके में समाजसेवी राजीव कुमार मिश्रा का आरोप है कि पश्चिमी करावल नगर बी-ब्लॉक की कुछ गलियों में महीने में चार से पांच दिन पानी की सेवा जानबूझकर बंद कर दी जाती है। आरोप यह भी है कि सर्वाधिक समस्या गली नंबर-9 में उत्पन्न हो रही है। इसके अलावा जिन हिस्सों में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता रहते हैं, वहां पर निरंतर जलापूर्ति दी जा रही है। शाहदरा के वेस्ट गोरख पार्क निवासी दीपक का कहना है कि यहां पिछले कई दिनों से घरों में दिल्ली जल बोर्ड की लाइन से दूषित पानी पहुंच रहा है, लेकिन लगातार शिकायतों में बाद भी मुश्किलों का हल निकालना तो दूर, कोई सुनने वाला भी नजर नहीं आ रहा है। मौजपुर माता मंदिर गली सहित आसपास के कई हिस्सों में भी इन दिनों पेयजल किल्लत बेहद विकट रूप धारण किए है, जहां समाजसेवी र¨वद्र शर्मा की ओर से दी गई शिकायत पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई।
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छज्जू गेट के आसपास के इलाकों में पिछले कई दिनों से पेयजल संकट बना हुआ है। आलम यह है कि हम शिकायतें कर करके हार गए, मगर मुश्किलों का हल निकालने का नाम नहीं लिया जा रहा। निगम चुनाव पर इसका काफी प्रभाव भी पड़ा है।
विनय जोशी
शाहदरा इलाके के कुछ हिस्सों में बीते दो माह से जब चुनावों के दौरान पेयजल संकट से उबारने का प्रयास नहीं हुआ तो सामान्य दिनों में क्या होगा। जिस तरह का रवैया जनप्रतिनिधियों ने चुनाव के उत्साह में अपनाया, लगता है कि सिर्फ कुर्सी कब्जाने भर का ही लक्ष्य बाकी रह गया है।
संजीव कुमार अग्रवाल, समाजसेवी