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विकास के दौर में पीछे छूट चुका है गांव

आबादी : 5000 मतदाता : 1400 साक्षरता : 80 फीसद ------------------ शहर के साथ ही शहरीकृत गांवो

By JagranEdited By: Published: Tue, 14 Mar 2017 06:13 PM (IST)Updated: Tue, 14 Mar 2017 06:13 PM (IST)
विकास के दौर में पीछे छूट चुका है गांव
विकास के दौर में पीछे छूट चुका है गांव

आबादी : 5000

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मतदाता : 1400

साक्षरता : 80 फीसद

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शहर के साथ ही शहरीकृत गांवों का भी खूब विकास हुआ। विकास के इस दौर में गांव की जमीन भी हथिया ली गई है। तिलक नगर विधानसभा क्षेत्र के इस गांव का विकास होते-होते रह गया। दिल्ली में तीनों पार्टियों की सरकारें आई और चली गई, लेकिन गांव को मूलभूत सुविधाएं भी नसीब नहीं हुई। अलबत्ता, जब-जब चुनाव आता है पार्टी के प्रत्याशी वोट मांगने जाते हैं। बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन बाद में भूल जाते हैं। हालात यह है कि ग्रामीणों को भी पीने के लिए स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। सीवर व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। सड़कें चौपट हो चुकी है। गांव के प्रवेश द्वार को देखकर पॉश इलाका होने का भ्रम हो सकता है, लेकिन इसके एक तरफ कॉलोनी और दूसरी तरफ यह गांव है। यहां से गांव में आने-जाने का रास्ता तक नहीं है। विडंबना है कि साथ की कॉलोनियों में गाड़ियों की अंबार लगा है। गांव की सड़क व गलियां इस कदर तंग हैं कि इस गांव में गाड़ियां तक नहीं जा सकती है।

ऐतिहासिक विशेषता

400 वर्ष पूर्व यह गांव अस्तित्व में आया था। गांव की बहुसंख्य आबादी त्यागी ब्राह्माणों की है। त्यागी के अलावा गांव में कुम्हार परिवारों की अच्छी खासी संख्या है। ये मूल रूप से मध्यप्रदेश के इंदौर से चले थे। इंदौर के बाद इनके पूर्वज हरियाणा स्थित जींद के पास चीड़ी चांदी में बस गए। इसके बाद ये दिल्ली में आकर बस गए। दिल्ली आने वाले इनके पूर्वज का नाम रायभान के तीसरे बेटे के केशवराम था। इन्हीं के नाम पर इस गांव का नाम केशोपुर पड़ा। केशव के मंझले भाई बाल मुकुंद बुडेला गांव व बड़े भाई हंसराम हस्तसाल गांव में बस गए। केशोपुर, बुडेला व हस्तसाल तीनों गांव भाईचारे के संबंध में जुड़े हैं। गांव में भूमिया बाबा का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर गांव की बसावट के समय ही स्थापित किया गया था।

बदहाल हो रहे हैं पार्क

1974 में सरकार ने इस गांव की खेतिहर जमीन का अधिग्रहण कर लिया। इस जमीन पर आज की विकासपुरी, केशोपुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, केशोपुर बस डिपो व केशोपुर सब्जी मंडी का निर्माण किया गया। गांव में गांव की जमीन पर तीन पार्क बनाए गए थे, लेकिन किसी भी पार्क में हरी घास तो दूर, पेड़-पौधे तक नहीं हैं। गांव में कूड़ेदान नहीं हैं। ऐसे में गांव की गलियों की सफाई कर इन्हीं पार्को में डाल दिया जाता है। हालांकि, गांव की कॉलोनियों में भी सात पार्क हैं। इनमें इक्का-दुक्का पार्क सुंदर बने हुए हैं। शेष पार्क खाली पड़े हुए हैं। एक बड़े से पार्क को पार्किग में तब्दील कर दिया गया है। एक पार्क में पेड़ पौधों की टहनियां काटकर सुखा दी गई है। होलिका दहन के दिन इसमें आग लगाने की तैयारी है।

बंद पड़ चुकी है सीवर लाइन

1984 के दौरान गांव में सीवर लाइन डाली गई थी। आबादी बढ़ने के साथ ही सीवर की क्षमता कम पड़ती गई, जबकि गांव में पहले साथ की कॉलोनी में सीवर लाइन बाद में डाली गई थी। हर साल सफाई होती है, लेकिन गांव के सीवर लाइन की आज तक

सफाई नहीं हुई। अब हालात यह है कि सीवर में गाद भरी पड़ी है। इसलिए सीवर से गंदा पानी नहीं निकलता है। घरों व सड़क की गंदगी सीवर में जरूर चली जाती है। गंदगी सीवर लाइन में पड़ी रहती है, सीवर के ढक्कन से गंदा पानी निकलकर विशेषकर सुबह व शाम सड़कों पर फैलती रहती है। बीच-बीच में सीवर लाइन के ढक्कन भी सड़क में धंस चुके हैं। सीवर लाइन के साथ सड़कें भी अब धंसने लगी है। गांव के लोग शिकायत कर थक चुके हैं, लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता। ऐसे में हालात दिन प्रतिदिन बद से बदतर होते जा रहे हैं।

दूषित जल की होती है आपूर्ति

सीवर लाइन के साथ साथ तीन दशक पूर्व गांव में पानी की पाइप लाइन डाली गई थी। सीवर के साथ पानी की लाइन भी गुजर रही है। इसलिए सीवर कमजोर होने के साथ पाइप लाइन भी कमजोर पड़ चुकी है। इन कमजोर पड़ी पाइप लाइनों में रिसाव होने लगता है ऐसे में सीवर का पानी पाइप लाइन के जरिए घरों में पहुंचने लगता है। पहले गांव में जहां सिर्फ मूल निवासी रहते थे, वहीं अब किरायेदारों की भी अच्छी खासी तादाद है। अब जबकि गर्मी शुरू हो चुकी है। लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी की जरूरत होगी। बगैर नई पाइप लाइन डाले इस समस्या का समाधान होता नहीं दिख रहा है। फिलहाल, नई पाइप लाइन बिछाने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।

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त्यागी समाज के बाद गांव में सबसे ज्यादा आबादी कुम्हारों की है, लेकिन कुम्हारों के लिए शादी या अन्य सामाजिक समारोह के लिए कहीं कोई सुविधा नहीं है। मजबूरी में लोग समारोह पार्क में टेंट लगाकर करते हैं। जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं वे बैंक्वेट हॉल में जाकर समारोह कराते हैं। एक ही दिन शादी होने की स्थिति में पार्को में भी जगह नहीं मिलती। ऐसे में टेंट लगाकर काम चलाना पड़ता है।

रोशनी।

विडंबना है कि जिस गांव की जमीन लेकर सरकार ने विकास के कई कार्य किए। आए दिन सुनने को मिलता है कि सामुदायिक केद्रों में प्रशिक्षण केंद्र खोले जा रहे हैं, लेकिन इस तरह की सरकारी योजनाएं गांव तक नहीं आती है। एक भी ऐसा प्रशिक्षण केंद्र नहीं है जहां उनकी बच्चियां प्रशिक्षण ले सके। आर्थिक रुप से सक्षम नहीं होने के बावजूद उनके उपर काफी रकम खर्च करनी पड़ रही है।

संतोष।

केशोपुर गांव में ग्रामसभा की काफी जमीन है। दिल्ली सरकार स्कूल, अस्पताल व खेल परिसर का विकास कर सकती है, लेकिन गांव वालों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। पांच साल से नगर निगम का कोई काम नहीं हुआ है। दिल्ली सरकार ने भी काम नहीं कराया। वर्तमान सांसद ने भी कभी गांव का हाल चाल नहीं पूछा। जब भी चुनाव आता है वोट मांगने के लिए प्रत्याशी जरूर आ जाते हैं, लेकिन इसके बाद पहचानना भूल जाते हैं।

शिवकुमार त्यागी।

गांव की सफाई होती है। झाड़ू भी लगता है, लेकिन कूड़ा कचरा नहीं उठाया जाता है। कूड़ा उठाने वाली गाड़ियां भी आती थी अब वह गाड़ी भी नहीं आती है। ऐसे में लोगों को पैसे देकर कूड़ा उठवाना पड़ता है। गांव में पशु पालन भी होता है, इनका गोबर भी सड़क पर फैलता रहता है इसकी भी सफाई नहीं की जाती है। निगम व सरकार के प्रतिनिधियों की अनदेखी से अधिकारियों ने भी

गांव से नाता तोड़ लिया है।

जगुती राम।

गांव के एक हिस्से में सीवर लाइन डालने का कोरम पूरा किया गया है। बहते नाले के बीच वही पुरानी पतली सीवर लाइन डाल दी जा रही है। इसका नए सिरे से निर्माण नहीं किया जा रहा है, लेकिन गांव के पिछड़े इलाके में कोई सीवर लाइन नहीं डाली गई। गांव के एक हिस्से में सुविधाएं हैं शेष हिस्से को अधिकारियों के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया। अधिकारियों के इस रवैये से

शांति भंग होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।

रामकिशन कश्यप।

गांवों की इस तरह की दु:खद स्थिति आज से नहीं है, बल्कि कई साल से है। आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद पानी की पाइप लाइन और सीवर लाइनों को बदलने का काम शुरू हुआ। बारी-बारी से सभी कॉलोनियों व गांवों में काम शुरू कर दिया गया। नए वित्त सत्र में इन गांवों का विकास होगा। पानी व सीवर की लाइनें नई बिछाई जाएगी। इसके बाद गांव की सड़कों को भी दुरुस्त कर दिया जाएगा।

जरनैल ¨सह, विधायक।

शहरीकृत गांव होने की वजह से नगर निगम पर काम करने की पाबंदी है। इसके बावजूद जब हम सत्ता में नहीं थे, उन दिनों भी विकास कार्यो को अंजाम दिया गया। विकास कार्यो की धारा लगातार बहती रहती है। गांव में ग्रामसभा की जमीन का अधिग्रहण किया जाना शेष है। इसके ऊपर खेलकूद की व्यवस्था करनी है। दिल्ली विकास प्राधिकरण के सहयोग से इसे विकसित करने की योजना उनकी प्राथमिकता है। पार्को को विकसित किया जा चुका है। सफाई की गांव में कोई समस्या नहीं है।

अमृता धवन, निगम पार्षद।


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