अधिकतर नकदी में लेनदेन करने वाले अधिवक्ता परेशान
जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : नोटबंदी के बाद से सभी की अपनी अपनी तरह की मुश्किलें सामने आ रही हैं
जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : नोटबंदी के बाद से सभी की अपनी अपनी तरह की मुश्किलें सामने आ रही हैं। इसी कड़ी में अधिवक्ताओं को भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन अधिवक्ताओं को सर्वाधिक कठिनाइयां झेलनी पड़ रही हैं जिनका लेनदेन का अधिकतर काम नकदी में होता था। कड़कड़डूमा अदालत में भी बहुत से अधिवक्ताओं को नोटबंदी के निर्णय की वजह से ऐसे ही मुश्किल हालात से दोचार होना पड़ा। यहां जो अधिवक्ता अधिकतर लेनदेन नकदी में करते थे, उन्हें अचानक नोटबंदी के बाद कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ा। इसी में से एक मुश्किल यह भी रही कि कड़कड़डूमा अदालत परिसर में विशेष रूप से अधिवक्ताओं के लिए मुहैया कराई गई यूको बैंक में उन्हीं के काम नहीं हो पा रहे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं कड़कड़डूमा कोर्ट नोटरी बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश गुप्ता का कहना है कि रुपये तो हैं, मगर पुराने नोट हैं जिनका चलन बंद हो गया है। इस कारण वह अपने मुंशी को वेतन तक नहीं दे पा रहे हैं। इसपर अधिवक्ताओं के मुंशियों ने पुराने नोटों में वेतन लेने के बजाए, खाता ही खुलवाकर उसमें पुराने नोट जमा कराने की बात कही। मगर जब मुंशी का खाता खुलवाने का प्रयास किया तो प्रबंधक सप्ताह भर बाद आने को कह दिया। बहरहाल, इन हालात में अधिवक्ताओं के निजी कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा है। इस बारे में जब प्रबंधक से पूछा गया, तो उनका कहना था कि अधिवक्ताओं के सभी तरह के काम हो रहे हैं।
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अधिवक्ताओं का अधिकतर लेनदेन नकदी में ही होता है। नोटबंदी के बाद से बैंकों व डाकघरों भीड़ बढ़ रही है। बैंक और हमारा काम करने का समय तकरीबन एक समान है, काम छोड़कर लाइन में लगकर भी रुपये जमा कराने व निकाल पाने की गारंटी नहीं है। एक अधिवक्ता का कतार में खड़ा होना मतलब अदालती मामलों का प्रभावित होना है। इतना बड़ा निर्णय लेने के लिए यह बेहद जरूरी था कि व्यवस्था बेहतर बनाई गई होती।
- मनीष भदौरिया, अधिवक्ता।
पुराने नोटों का चलन बंद होने से वेतन मिलने पर भी फायदा नहीं होता, ऐसे में हमने सोचा कि बैंक में खाता ही खुलवा लें, मगर यहां तो सप्ताह भर बाद आने को कह दिया गया। इसलिए हमें तो अभी वेतन के लिए और इंतजार करना होगा।
- रवि कुमार, अधिवक्ता के मुंशी।