इंस्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी के छात्रों का भविष्य अधर में
विजयालक्ष्मी, नई दिल्ली : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) में विशेषज्ञों को जगह देने के मकसद से सं
विजयालक्ष्मी, नई दिल्ली : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) में विशेषज्ञों को जगह देने के मकसद से संस्कृति मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए इंस्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी के अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे हैं। साल 1958 में शुरू हुए इस इंस्टीट्यूट के छात्रों को अब अपनी भविष्य की चिंता सताने लगी है। इन छात्रों को एएसआइ में ही तरजीह नहीं दी जा रही है। भर्ती नियमों में बदलाव के चलते इन छात्रों को एएसआइ में ही जगह नहीं मिल रही जिससे इनका भविष्य अधर में लटक गया है। छात्रों ने इस संबंध में एएसआइ के महानिदेशक डॉ. राकेश तिवारी और संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा को भी पत्र लिखा है। छात्रों के मुताबिक अगर उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वे जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन करेंगे।
साल 2011 में यहां से डिप्लोमा प्राप्त डॉ. दिलीप कुमार बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्किल डेवलपमेट की बात करते हैं लेकिन संस्कृति मंत्रालय के तहत आने वाले इंस्टीट्यूट के छात्रों को एएसआइ में ही जगह नहीं मिल रही है जबकि एएसआइ में कई पुरातत्वविदों के पद रिक्त हैं। वे बताते हैं कि एएसआइ के इंस्टीट्यूट में दो साल के इस कोर्स के लिए कड़ी परीक्षा और साक्षात्कार देने के बाद देश भर से सिर्फ 15 छात्रों का चयन होता है। इन दो सालों में पुरातत्व विभाग के हर पहलू से छात्रों को अवगत कराया जाता है। लेकिन दो साल पूरे होने के बाद एएसआइ उनसे पल्ला झाड़ लेता है। इन छात्रों को भी पुरातत्व विभाग में विशेषज्ञों के लिए क्लर्क की तरह परीक्षा देनी होती है। छात्र प्रिया शर्मा ने बताती हैं कि यहां के छात्र दो साल तक सिर्फ और सिर्फ आर्कियोलॉजी पढ़ते हैं और इन विभागों में भी पुरातत्व विशेषज्ञों की तरह ही काम करना होता है। फिर भी इन छात्रों को भी गणित, सामान्य ज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों की परीक्षा देनी पड़ती है। छात्रों से आर्कियोलॉजी से संबंधित सवाल किए जाने चाहिए। यहां के छात्र अपने जीवन के महत्वपूर्ण दो साल संस्थान को देते हैं। इस ट्रेनिंग पर संस्कृति मंत्रालय प्रति छात्र कम से कम 9-10 लाख रुपये खर्च करता है। छात्रा श्वेता सिंह बताती हैं कि इस इंस्टीट्यूट में दाखिला मिलना आसान नहीं होता। इसके लिए देशभर से सिर्फ 15 छात्रों का चयन होता है और सार्क देशों से भी दो छात्र लिए जाते हैं। अगर एएसआइ को विशेषज्ञों की आवश्यकता नहीं है तो इस डिप्लोमा कोर्स को बंद कर देना चाहिए। कम से कम छात्रों का भविष्य तो खराब नहीं होगा।
क्या कहते हैं निदेशक
इंस्टीटूयूट ऑफ आर्कियोलॉजी के निदेशक डॉ. संजय कुमार मंजुल ने बताया कि इंस्टीट्यूट के छात्रों की मांग जायज है। शुरुआत से ही एएसआइ में पुरातत्व विशेषज्ञों की भर्ती के लिए यहां का डिप्लोमा अनिवार्य रखा गया था, लेकिन साल 1995 में भर्ती नियमों में बदलाव करते हुए इस डिप्लोमा के अनिवार्यता के नियम को बदल दिया गया। अब कई सालों बाद पुरातत्वविदों के पदों की भर्ती की जानी है, लेकिन वहां भी इस इंस्टीट्यूट के छात्रों को कोई वरीयता नहीं देने से छात्र मायूस हैं। इस संबंध में महानिदेशक को अवगत कराया गया है और जल्दी ही कोई हल निकलने की उम्मीद है।