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भ्रष्टाचार पर वारः केंद्रीय जल आयोग के 14 कर्मचारियों को 7 साल जेल

पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष सीबीआइ अदालत ने भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय जल आयोग के 14 कर्मचारियों को सात साल तक की सजा सुनाई है। सजा पाने वालों में रिटायर्ड अधिकारी भी शामिल हैं। विशेष सीबीआइ जज विनोद कुमार ने सभी को आपराधिक षड्यंत्र, सरकारी कर्मचारी द्वारा आपराधिक विश्वासघात की

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 09 Feb 2016 08:03 AM (IST)Updated: Tue, 09 Feb 2016 08:15 AM (IST)
भ्रष्टाचार पर वारः केंद्रीय जल आयोग के 14 कर्मचारियों को 7 साल जेल

नई दिल्ली। पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष सीबीआइ अदालत ने भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय जल आयोग के 14 कर्मचारियों को सात साल तक की सजा सुनाई है। सजा पाने वालों में रिटायर्ड अधिकारी भी शामिल हैं।

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विशेष सीबीआइ जज विनोद कुमार ने सभी को आपराधिक षड्यंत्र, सरकारी कर्मचारी द्वारा आपराधिक विश्वासघात की धारा के तहत दोषी करार दिया। 14 में से छह को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत दोषी करार दिया गया। 2001 में दर्ज हुए उक्त मामले में तीन आरोपियों की ट्रायल के दौरान मौत हो चुकी है।

दो आरोपियों को तीन साल की सजा सुनाई गई है। अदालत ने 144 पेज के आदेश में कहा कि तीन दोषियों को छोड़कर अन्य सभी ने तथ्यों को गलत तरीके से पेश कर सरकारी धन का उपयोग निजी इस्तेमाल में किया। उन्हें आइपीसी की धारा 403 के तहत दोषी करार दिया जाता है।

सभी लोग इस अपराध में शामिल रहे हैं, उन्हें आइपीसी की धारा 403 और 409 के तहत दोषी करार दिया जाता है। दोषी वायपी शर्मा, ओपी नारंग, जय कुमार सिंगल, जेपी शर्मा, एसके अग्रवाल को सात साल कैद की सजा सुनाई। चंद्रेश्वर मांझी, ओम प्रकाश, शिव सागर नायक, हयात सिंह और ओम प्रकाश नामक एक अन्य को पांच साल की कैद, जीत राम शर्मा और बीएम घोष को 3 साल की कैद और आई यशुदनन और नत्था राम सुमन को एक साल कैद की सजा सुनाई गई।

सजा के अलावा दोषियों पर 2.01 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगाया गया। दोषी जीत राम शर्मा, बीएम घोष, आई यशुदनन और नत्था राम सुमन को हाई कोर्ट में अपील लगाने के लिए 23 मार्च तक जमानत प्रदान कर दी गई।

सीबीआइ ने केंद्रीय जल आयोग के विजिलेंस अधिकारी, तत्कालीन सचिव और अकाउंट्स विभाग के अधिकारियों की शिकायत पर मुकदमा दर्ज किया था। जल मंत्रलय की तरफ से विशेष ऑडिट किया गया था, जिसमें पाया गया कि अकाउंट्स विभाग के कर्मचारियों द्वारा फर्जी पेमेंट की गई।

वर्ष 1999 से 2000 के बीच करीब साढ़े 23 लाख रुपये की रकम कर्मचारियों ने फर्जी तरीके से हड़प ली थी। उक्त रकम में से 19.30 लाख रुपये चालान के माध्यम से वापस लौटा दिए गए थे।

विशेष ऑडिट के दौरान यह दावा खोखला साबित हुआ। ऑडिट के दौरान यह भी पता चला कि अज्ञात लोगों को फर्जी बिलों के आधार पर अकाउंट्स विभाग की तरफ से रकम दी गई थी


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