88 साल की उम्र में पूर्व संयुक्त सचिव को मिली सजा
संदीप गुप्ता, नई दिल्ली राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि इस संसार में इतने संसाधन उपलब्ध हैं
संदीप गुप्ता, नई दिल्ली
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि इस संसार में इतने संसाधन उपलब्ध हैं जिनसे सभी लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है, लेकिन लोगों के लोभ व लालच को पूरा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन नहीं हैं। यही लालची प्रवृत्ति भ्रष्टाचार को जन्म दे रही है। यह कहते हुए तीस हजारी की एक विशेष सीबीआइ अदालत ने भारत सरकार के एक पूर्व अधिकारी (88 ) को भ्रष्टाचार के मामले में सजा सुनाई है। विशेष सीबीआइ जज संजीव अग्रवाल ने वाणिज्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव रह चुके श्रीकृष्ण बहादुर को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धाराओं के तहत दोषी करार देते हुए एक साल कारावास की सजा सुनाई। उन पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। दोषी के घर रेड के दौरान बरामद हुई करीब 27 लाख रुपये की रकम को सरकारी खजाने में जमा करने का भी आदेश दिया गया।
अदालत ने कहा कि अपराध दोषी की अधिक उम्र होने के चलते कम नहीं हो जाता है और न ही निर्णय आने में तीन दशक का समय लगने से इस पर कोई फर्क पड़ता है। दोषी इंडियन लीगल सर्विस का अधिकारी था। वाणिज्य मंत्रालय में बतौर संयुक्त सचिव, चीफ कंट्रोलर ऑफ इक्सपोर्ट-इम्पोर्ट था। पब्लिक सर्वे की परिभाषा ही जनता की सेवा करना है। उक्त मामले में लोगों की सेवा के स्थान पर दोषी केवल अपनी जेब भरने में मशगूल रहा। दोषी ने सजा में रियायत बरतने की अपील की थी। घर में तीन बेटियां, बीमार पत्नी की देखभाल व 88 साल की उम्र होने का हवाला देते हुए कहा था कि मामले में पहले ही वह 29 साल से ट्रायल झेल रहा है।
सीबीआइ का कहना था कि दोषी वर्ष 1969 से 1984 तक सेवाएं देने के दौरान सभी ज्ञात स्रोत से केवल पांच लाख 92 हजार रुपये ही अर्जित कर सकता था। वर्ष 1969 में उनके व उनके परिवार के सभी सदस्यों के पास मिलाकर करीब 20 हजार रुपये की संपत्ति थी, जो वर्ष 1984 में निलंबित किए जाते वक्त 46 लाख पहुंच गई। उनके पास करीब 88 लाख रुपये की सेविंग भी मिली। दोषी के घर पर छापेमारी के दौरान करीब 27 लाख रुपये मिले। वह इसके बारे में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया था।