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प्लास्टिक कप बन सकते हैं जहर के प्याले

शिप्रा सुमन, बाहरी दिल्ली यदि आप प्लास्टिक कप में लंबे समय से चाय पी रहे हैं तो यह आपके स्वास्थ्य

By Edited By: Published: Sat, 18 Apr 2015 06:07 PM (IST)Updated: Sat, 18 Apr 2015 06:07 PM (IST)
प्लास्टिक कप बन सकते हैं जहर के प्याले

शिप्रा सुमन, बाहरी दिल्ली

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यदि आप प्लास्टिक कप में लंबे समय से चाय पी रहे हैं तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकता है। गरम चाय व अन्य खाद्य पदार्थ के संपर्क में आने से प्लास्टिक के कप व अन्य बर्तन से रासायनिक तत्व घुलने लगते हैं। शरीर में जाकर ये गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। शरीर में जाकर ये रासायनिक पदार्थ किडनी, आंत व पेट को नुकसान पहुंचाते हैं। आजकल चाय के साथ चाट-पकौड़े और सूप जैसे अन्य खाद्य पदार्थ भी प्लास्टिक से बने बर्तनों में ही परोसे जाते हैं। इसके अलावा रेहड़ी पटरी पर मिलने वाले ठेलों पर तो इनका प्रयोग और धड़ल्ले से हो रहा है, जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

किस प्रकार हैं नुकसानदेह

-प्लास्टिक के बर्तनों और बोतलों में बिस्फिनॉल-ए और डाईथाइल हेक्सिल फैलेट जैसे रसायन पाए जाते हैं। ये कैंसर, अल्सर व कई प्रकार के त्वचा रोगों को जन्म दे सकते हैं।

- प्लास्टिक के बर्तन में चाय पीने से माइग्रेन सिरदर्द का खतरा बना रहता है।

- इनका प्रयोग महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक है। इससे उन्हें त्वचा संबंधी रोग और अन्य परेशानियां हो सकती हैं।

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प्लास्टिक से बने बर्तनों में मॉलीक्यूलर पाया जाता है, जो पॉलीमर से बनता है। जब हम प्लास्टिक के बर्तन में कुछ गर्म खाते या पीते हैं तो यह हमारे शरीर की हर कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है, जो कोशिकाओं को बूढ़ा करने लगता है। इस तरह यह धीमी गति से कार्य करने वाले जहर की तरह काम करता है। इससे न सिर्फ कार्य क्षमता प्रभावित होती है, बल्कि महिला और पुरुष दोनों के स्वास्थ्य, कार्य और प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है।

-डॉ. शोभा गुप्ता, आइवीएफ (इन वेट्रो फर्टिलाइजेशन) विशेषज्ञ।

मिट्टी के कप अब मिलते नहीं और वे जल्दी टूट जाते हैं। इन्हें संभाल कर रखना मुश्किल होता है। प्लास्टिक के कप आसानी से मार्केट में मिल जाते हैं। साथ ही काफी सस्ते भी होते हैं। इसलिए हमें इनके प्रयोग में आसानी होती है। इन्हें लाना-ले जाना भी आसान होता है।

-रामजीत, चाय विक्रेता।

चाय पीना तो आदत सी हो गई है। रोज दफ्तर से निकलकर इन दुकानों में आकर चाय पीने के लिए आता हूं। दुकान वाले प्लास्टिक के कप का ही अधिक प्रयोग करते हैं। अब तो मजबूरी हो गई है, लेकिन प्रशासन गंभीरता से ध्यान दे तो इसके प्रयोग पर अंकुश लगाया जा सकता है।

-गौरव ¨सह, निजी क्षेत्र में कार्यरत।

कुल्हड़ के प्रयोग को बढ़ावा देना बेहतर

पूर्व केंद्रीय रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव की ओर से रेलवे में चाय के लिए कुल्हड़ को बढ़ावा देने की शुरुआत भले ही अधूरी रह गई हो, लेकिन इस दिशा में नए सिरे से कार्य कर प्लास्टिक के कपों के उपयोग को रोका जा सकता है। इससेउन तमाम कुल्हड़ बनाने वाले कारीगरों के रोजगार को भी संवारा जा सकता है। इसके प्रयोग से न सिर्फ लोग सौंधी खुशबू के साथ चाय का स्वाद ले सकेंगे, बल्कि कई तरह की बीमारियों की आशंकाओं से भी दूर रहेंगे। कुल्हड़ के साथ-साथ किसी अन्य विकल्प की भी तलाश की जा सकती है, जो प्लास्टिक के कप की जगह ले सके और स्वास्थ्य के लिहाज से भी सुरक्षित हो। इस प्रकार चाय के शौकीन लोगों को इसे पीने के बाद सिर्फ इसके लाभकारी गुण मिलेंगे और बिना किसी अतिरिक्त प्रभाव के शरीर में स्फूर्ति और ताजगी का अनुभव होगा।


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