ड्यटी के दौरान मोबाइल पर अनधिकृत बात करना अपराध
अमित कसाना, नई दिल्ली ड्यूटी के दौरान मोबाइल पर महिला की मखमली आवाज भले कानों में शहद घोलती हो लेक
अमित कसाना, नई दिल्ली
ड्यूटी के दौरान मोबाइल पर महिला की मखमली आवाज भले कानों में शहद घोलती हो लेकिन किसी सैन्यकर्मी के लिए लिए यह सुखद अहसास भारी मुसीबत खड़ी कर सकता है। यदि ड्यूटी पर तैनात कोई सैन्यकर्मी मोबाइल पर किसी महिला से अनधिकृत संपर्क स्थापित कर लेता है (जिस महिला से वह बात करने के लिए अधिकृत नहीं है) तो यह अपराध है। सेना अधिनियम, 1950 के सेक्शन 63 इसकी अनुमति नहीं देती है।
यह टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट ने ड्यूटी पर तैनात सैन्यकर्मी द्वारा महिला से फोन पर अनाधिकृत संपर्क स्थापित करने संबंधी याचिका पर सुनवाई करने के दौरान की। हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग व प्रतिभा रानी ने मामले में सैन्यकर्मी पर समरी प्रोसिडिंग के दौरान उसके कमांडिंग ऑफिसर द्वारा की गई कार्रवाई को कायम रखते हुए फैसले को चुनौती देने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया।
मामले में सेना में ड्यूटी के दौरान याचिकाकर्ता को अलग-अलग तीन मामलों में सजा दी गई थी। सजा के रूप में उसके सेवा रिकार्ड में तीन रेड निशान भी दर्ज किए गए थे। नतीजतन, नायक सूबेदार पद पर उसकी पदोन्नति नहीं हो सकी थी। खंडपीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि दोषी ने कभी भी अपना अपराध स्वीकार नहीं किया। उसके लिए दोषी होने का अर्थ बेहद साधारण है। अदालत ने कहा कि कमांडिंग ऑफिसर द्वारा उसे दोषी ठहराते हुए सेवा रिकार्ड में रेड निशान दर्ज किया गया था, तब उस पर किसी तरह का कोई जुर्माना नहीं लगाया गया था। यही कारण है कि उसकी पदोन्नति नहीं हो सकी है।
यह था मामला
याचिकाकर्ता हवप्रेम सिंह के सेना में भर्ती होने के बाद 26 मार्च, 1983 में उसकी 17वीं कुमांऊ रेजीमेंट में तैनाती हुई। ड्यूटी के दौरान उसे हवलदार पद तक पदोन्नति मिली, लेकिन 11 अक्टूबर, 2007 में जब उसकी बारी नायक सूबेदार पद पर पदोन्नत होने की आई तो पदोन्नति रोक दी गई। इसका कारण यह था कि ड्यूटी के दौरान उसे तीन बार अलग-अलग मामलों में दोषी ठहराते हुए सजा हुई थी और उसकी सेवा रिकार्ड में तीन लाल निशान दर्ज किए गए थे। इसमें से 15 मई, 2007 में पिथौरागढ़ में तैनाती के दौरान उसे मोबाइल पर किसी महिला से अवैध रूप से संपर्क रखने के मामले में समरी प्रोसिडिंग (संक्षिप्त कार्यवाही) दोषी ठहराया गया था। इस मामले में समरी प्रोसिडिंग के दौरान खुद को दोषी ठहराने के फैसले को हवप्रेम ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।