Move to Jagran APP

ढाई वर्ष में बन के बिखर गई आप

आशुतोष झा, नई दिल्ली अप्रैल, 2011 में समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा जंतर-मंतर से शुरू किए गए जनलोकप

By Edited By: Published: Sat, 28 Mar 2015 06:59 PM (IST)Updated: Sun, 29 Mar 2015 03:33 AM (IST)
ढाई वर्ष में बन के बिखर गई आप

आशुतोष झा, नई दिल्ली

prime article banner

अप्रैल, 2011 में समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा जंतर-मंतर से शुरू किए गए जनलोकपाल आंदोलन से अरविंद केजरीवाल सुर्खियों में आए। 26 नवंबर, 2012 को केजरीवाल ने अपने कुछ आंदोलनकारी सहयोगियों के साथ मिलकर आम आदमी पार्टी (आप) का गठन किया। लेकिन मात्र ढाई वर्ष में ही पार्टी इस कदर टूट जाएगी शायद इस बात की उम्मीद किसी ने नहीं की थी।

आप के गठन के पूर्व से ही केजरीवाल कहते थे कि राजनीति कीचड़ है और कीचड़ को साफ करने के लिए कीचड़ में उतरना जरूरी है। लेकिन वर्तमान में पार्टी में हुए घमासान से उन्हें एक बात जरूर पता चल गई होगी कि राजनीति आसान नहीं है। नवंबर, 2013 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को अन्य राजनीतिक दलों के नेता कमतर आंक रहे थे। कुछ लोग आप नेताओं को नौसिखिया कह रहे थे तो कुछ इसके सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त होने की बात कह रहे थे। लेकिन आप को 70 में से 28 सीटें मिलीं और इसने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने लेकिन जनलोकपाल बिल पास करने के प्रस्ताव पर समर्थन न मिलने पर केजरीवाल ने मात्र 49 दिन में ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद मई, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान अन्ना खेमे से कई नेता आकर केजरीवाल से जुड़ गए। लोकसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार मिली और मात्र चार सीटों पर पार्टी को विजय मिल सकी। इसके बाद केजरीवाल ने एक बार फिर दिल्ली में पार्टी को मजबूत करने के लिए मेहनत की। फरवरी, 2015 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतकर आप प्रत्याशियों ने कांग्रेस व भाजपा के दिग्गजों को धूल चटा दी।

पार्टी में नहीं थम रहा घमासान

दिल्ली में दोबारा सरकार बनने के बाद पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह चरम पर था। लेकिन गत 26 फरवरी से शुरू हुआ घमासान वरिष्ठ नेता प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर निकाले जाने तक जारी है। हर दिन के साथ आम आदमी पार्टी में विवाद बढ़ते जा रहे हैं। शनिवार को पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में हुए घमासान से यही निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे दलों की तरह ही यहा भी मौकापरस्ती और जोड़तोड़ जैसी करामात करने वाले नेता मौजूद हैं। पार्टी के शीर्ष नेता विधानसभा चुनाव में मिली अभूतपूर्व जीत के खुमार में आपस में भिड़ गए हैं। कहा जा सकता है कि यादव और भूषण को राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से हटाने के बाद शनिवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकाला जाना निश्चित रूप से पार्टी के विभाजन जैसा ही है। इन दोनों नेताओं पर आरोप है कि इन्होंने दिल्ली चुनाव में पार्टी को हराने के लिए काम किया और ये केजरीवाल को पार्टी के संयोजक पद से हटाना चाहते थे। प्रशात भूषण ने अपने ऊपर पार्टी द्वारा लगाए जा रहे हर आरोप को यह कहते हुए खारिज किया है कि उन्होंने पार्टी के हित में कुछ जरूरी सुझाव दिए थे। यह सुझाव पार्टी के उन सिद्धातों और मूल्यों से जुड़े थे जिन पर इसकी नींव रखी गई थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.