अस्पतालों में हड़ताल
दिल्ली के एक दर्जन सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों का एक साथ हड़ताल पर चले जाना कतई अनुचित है। भले ही डॉ
दिल्ली के एक दर्जन सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों का एक साथ हड़ताल पर चले जाना कतई अनुचित है। भले ही डॉक्टरों की मांग सही हो, लेकिन एक साथ इतनी बड़ी संख्या में अस्पतालों में हड़ताल किया जाना और वह भी उस समय, जबकि दिल्ली स्वाइन फ्लू की गिरफ्त में है, किसी भी स्थिति में सही नहीं ठहराया जा सकता। दवा की कमी व सुरक्षा की मांग को लेकर गुरु तेग बहादुर अस्पताल के डॉक्टरों की हड़ताल के समर्थन में शुक्रवार को 12 अस्पतालों में की गई हड़ताल से इनमें ओपीडी सेवा पूरी तरह चरमरा गई और मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। सफदरजंग और राममनोहर लोहिया जैसे बड़े अस्पतालों में भी रेजिडेंट डॉक्टर हड़ताल पर रहे। कुछ अस्पतालों में आपातकालीन सेवाएं भी प्रभावित रहीं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि धरती पर भगवान कहे जाने वाले चिकित्सकों ने बेबस मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया।
ऐसा पहली बार नहीं है जब डॉक्टरों ने सुरक्षा के मुद्दे पर हड़ताल की है, लेकिन किसी एक अस्पताल तक सीमित रहने वाली यह हड़ताल इस बार एक साथ कई अस्पतालों में की गई। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि सुरक्षा संबंधी डॉक्टरों की मांग जायज है। ऐसा अक्सर देखा जाता है कि मरीज के तीमारदार डॉक्टरों व अस्पताल के अन्य कर्मचारियों से बदतमीजी से पेश आते हैं और मारपीट तक कर बैठते हैं। सरकारी अस्पतालों में सुरक्षा की कमी के कारण डॉक्टरों को ऐसी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। बार-बार ऐसी स्थिति पैदा होने के बावजूद अस्पतालों में सुरक्षा के प्रति उदासीनता बरती जाती रही है। सूबे के स्वास्थ्य मंत्री ने पुलिस को अस्पतालों में सुरक्षा मुहैया कराने के लिए अवश्य कहा है, लेकिन डॉक्टरों की सुरक्षा संबंधी चिंता का स्थायी हल निकाला जाना चाहिए। डॉक्टरों को भी यह समझना चाहिए कि चिकित्सा एक ऐसा पेशा है, जहां जरा सी लापरवाही से किसी की जान तक जा सकती है। ऐसे में अपनी मांगें, भले ही वो कितनी भी जायज हों, मनवाने के लिए डॉक्टरों को हड़ताल का सहारा नहीं लेना चाहिए। उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके कारण किसी मरीज को परेशानी न होने पाए। सरकार और दिल्ली पुलिस को भी डॉक्टरों की मांगों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें भविष्य में हड़ताल जैसा कदम न उठाना पड़े।